घर से अपना चेतक स्कूटर लेकर हम दिल्ली के लिए निकल पड़े। माताजी ने बहुत समझाया कि बेटा बस से चला जा, लेकिन हमने सोचा कि स्कूटर से जाएंगे तो ज़रा रौब पड़ेगा। जैसे-तैसे बार्डर पहुंच गए, परन्तु जैसे ही प्रवेश करने की कोशिश की यातायात पुलिस निरीक्षक ने रोक लिया। सारे पेपर चेक करने के बाद भी जब कुछ नहीं मिला तो लाईट चैक करने लगे। "क्या पहली बार दिल्ली आए हो?" मैंने कहा "नहीं जी आता रहता हूँ"। "फिर भी बिना लाईट की गाड़ी चला रहे हो।" मैंने कहा "अभी तो दिन है, लाईट की क्या आवश्यकता है? घर पहुंच कर ठीक करवा लूंगा"। वह बोले "बेटा रास्ते में रात हो गई तो? मैं क्या वहां पर लाईट चैक करने आउंगा?" फिर बोले कि "पेड़ के पास जो पानी वाला खड़ा है उसे एक हरी पत्ती देकर आ जाओ।" समझ में तो कुछ आया नहीं, सोचा चलो पानी वाले से ही मालूम कर लेता हूं। पानी वाले ने बताया कि भैया हरी पत्ती का मतलब 100 रू वर्ना स्कूटर ज़ब्त। बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाया और भगवान का नाम लेकर आगे चल दिया।
कुछ दूर चलने पर चैक पर लाल बत्ती मिली, हम भी खड़े हो गए। जैसे ही बत्ती हरी हुई, हमने भी चलने के लिए अपने स्कूटर में किक मारी और चलने लगे। मगर यह क्या सामने से एक बाईक धनधनाती हुई हमारे स्कूटर को ज़मीदौज़ करते हुए निकल गई। शायद उस भले आदमी को अपनी लाल बत्ती दिखाई नहीं दी। बड़ी मुश्किल से अपनी चोटों पर करहाते हुए हम भी उठे, अपने प्यारे स्कूटर का हैंडल सीधा किया। अपनी शर्म को छुपाते हुए स्कूटर को किसी तरह स्टार्ट किया और आगे चल दिए।
अभी थोड़ी दूर ही चला था कि एक कैब ड्राइवर हमारे बाएं हाथ की तरफ से हमें ओवर-टेक करते हुए और हमें गालियां देते हुए बड़ी तेज़ी से निकला। "गाड़ी चलानी नहीं आती, तो फिर दिल्ली में आते ही क्यों हों"। हमने बड़ी मुश्किल से अपने स्कूटर को संभाला, लेकिन हज़ार बार सोचने पर भी समझ में नहीं आया कि आखिर हमारी गलती क्या थी। सोचा कि शायद उसने हौर्न दिया होगा और हमें सुनाई ना दिया हो। फिर बेचारा मजबूरी में उलटे हाथ की तरफ से निकलनें के लिए मजबूर हुआ हो! मगर ताऊ तो कहतें हैं कि "तेरे कान बहुत तेज़ हैं, चींटी की आवाज़ भी सुन लेते हैं"। जब समझ के कुएं से पानी नहीं निकला तो हमने आगे चलने में ही भलाई समझी।
अल्ला-अल्ला करते हुए आईटीओ पहुंचे, तभी देखा कि एक कार सवार अपनी कार की रफ्तार के नशे में साईकिल सवार को नहीं देख पाया। वैसे भी गरीबों को देखता कौन है, उसने ही नहीं देखा तो क्या गुनाह किया? बेचारा सड़क पर पड़ा हुआ था और उसकी मदद करने वाला कोई नहीं था। मैंने लोगो से गुहार लगाई कि इसको किसी गाडी या रिक्शा में डालकर अस्पताल ले चलो। तभी एक चिल्लाया "अबे पागल हो गया है क्या? पुलिस के सवालों के जवाब कौन देगा? उलटे हम पर ही केस चल जाएगा।" मैंने कहा कि "भाई हम एक मरते हुए की जान बचा रहें है तो इसमें पुलिस क्यों सवाल करेगी?" एक व्यक्ति ने फिर वही सवाल किया जो दिल्ली में आने के बाद कई बार सुन चुका था, " यार! दिल्ली में नया आया है क्या?" मैंने सोचा कि "इसे कैसे पता चला?" फिर अपनी झेंप मिटाने के इरादे से कहा कि "नहीं भाई आता रहता हूँ" तभी एक तपाक से बोला "तब भी बेवकूफी की बातें कर रहे हो?" वह बेचारा पड़ा हुआ तड़प रहा था। तभी वहां से एक पुलिस की वैन गुज़री, भीड़ देखकर रूक गई। मुझे लगा कि शायद यह ही उसको अस्पताल पहुंचा देंगे। थोड़ी गुहार लगाने पर वह तैयार हो गए। जब पुलिस उसे लेकर चली गई तो मेरी सांस में सांस आई और मैने सोचा कि आगे चला जाए।
कुछ दूर चलने पर चैक पर लाल बत्ती मिली, हम भी खड़े हो गए। जैसे ही बत्ती हरी हुई, हमने भी चलने के लिए अपने स्कूटर में किक मारी और चलने लगे। मगर यह क्या सामने से एक बाईक धनधनाती हुई हमारे स्कूटर को ज़मीदौज़ करते हुए निकल गई। शायद उस भले आदमी को अपनी लाल बत्ती दिखाई नहीं दी। बड़ी मुश्किल से अपनी चोटों पर करहाते हुए हम भी उठे, अपने प्यारे स्कूटर का हैंडल सीधा किया। अपनी शर्म को छुपाते हुए स्कूटर को किसी तरह स्टार्ट किया और आगे चल दिए।
अभी थोड़ी दूर ही चला था कि एक कैब ड्राइवर हमारे बाएं हाथ की तरफ से हमें ओवर-टेक करते हुए और हमें गालियां देते हुए बड़ी तेज़ी से निकला। "गाड़ी चलानी नहीं आती, तो फिर दिल्ली में आते ही क्यों हों"। हमने बड़ी मुश्किल से अपने स्कूटर को संभाला, लेकिन हज़ार बार सोचने पर भी समझ में नहीं आया कि आखिर हमारी गलती क्या थी। सोचा कि शायद उसने हौर्न दिया होगा और हमें सुनाई ना दिया हो। फिर बेचारा मजबूरी में उलटे हाथ की तरफ से निकलनें के लिए मजबूर हुआ हो! मगर ताऊ तो कहतें हैं कि "तेरे कान बहुत तेज़ हैं, चींटी की आवाज़ भी सुन लेते हैं"। जब समझ के कुएं से पानी नहीं निकला तो हमने आगे चलने में ही भलाई समझी।
अल्ला-अल्ला करते हुए आईटीओ पहुंचे, तभी देखा कि एक कार सवार अपनी कार की रफ्तार के नशे में साईकिल सवार को नहीं देख पाया। वैसे भी गरीबों को देखता कौन है, उसने ही नहीं देखा तो क्या गुनाह किया? बेचारा सड़क पर पड़ा हुआ था और उसकी मदद करने वाला कोई नहीं था। मैंने लोगो से गुहार लगाई कि इसको किसी गाडी या रिक्शा में डालकर अस्पताल ले चलो। तभी एक चिल्लाया "अबे पागल हो गया है क्या? पुलिस के सवालों के जवाब कौन देगा? उलटे हम पर ही केस चल जाएगा।" मैंने कहा कि "भाई हम एक मरते हुए की जान बचा रहें है तो इसमें पुलिस क्यों सवाल करेगी?" एक व्यक्ति ने फिर वही सवाल किया जो दिल्ली में आने के बाद कई बार सुन चुका था, " यार! दिल्ली में नया आया है क्या?" मैंने सोचा कि "इसे कैसे पता चला?" फिर अपनी झेंप मिटाने के इरादे से कहा कि "नहीं भाई आता रहता हूँ" तभी एक तपाक से बोला "तब भी बेवकूफी की बातें कर रहे हो?" वह बेचारा पड़ा हुआ तड़प रहा था। तभी वहां से एक पुलिस की वैन गुज़री, भीड़ देखकर रूक गई। मुझे लगा कि शायद यह ही उसको अस्पताल पहुंचा देंगे। थोड़ी गुहार लगाने पर वह तैयार हो गए। जब पुलिस उसे लेकर चली गई तो मेरी सांस में सांस आई और मैने सोचा कि आगे चला जाए।
सड़क पर भीड़ कुछ जयादा ही थी, ऐसा लग रहा था जैसे कोई इनके पीछे पड़ा है या फिर सब के सब जल्द-से-जल्द कहीं दूर भाग जाना चाहते हैं। हर कोई, हर तरफ से गाडी ओवरटेक कर रहा था और मेरे लिया गाड़ी चलाना दूभर होता जा रहा था। सोचा कि दिल्ली जैसे बड़े शहर के शिक्षित लोग भी आखिर क्यों अशिक्षितों की तरह व्यवहार करते हैं? कुछ पलों की जल्दी के चक्कर में अपनी तथा औरों की जान को खतरे में डाल देते हैं। आज केवल दिल्ली में ही सड़क हादसों की वजह से हर साल हजारों लोग अपनी जान गवां देते हैं और कितने ही अपने शरीर के महत्वपूर्ण अंगो से हाथ गवां बैठते हैं। आखिर दिल्ली में बिला वजह ओवर टेकिंग समाप्त क्यों नहीं होती है? आखिर क्यों गाड़ी चलाने वाले अपनी लेन में नहीं चलते हैं? और सबसे बड़ी बात कि आखिर गाड़ी इतनी जल्दी में और गुस्से में क्यों चलाते हैं? दो मिनट की देर में मारने-मरने पर तैयार हो जाते हैं? क्या शहरों में मौत इतनी सस्ती हो गई है?
इन सवालों के साथ आखिर हम अपनी मंज़िल पर पहंच गए। लेकिन कितने लोग रोज़ाना अपनी मंज़िल को पहुंचते होंगे, कभी किसी ने सोचा है?
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
इन सवालों के साथ आखिर हम अपनी मंज़िल पर पहंच गए। लेकिन कितने लोग रोज़ाना अपनी मंज़िल को पहुंचते होंगे, कभी किसी ने सोचा है?
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords:
accident, Delhi, Traffic, Hindi Critics
"दिल्ली जैसे बड़े शहर के शिक्षित लोग भी आखिर क्यों अशिक्षितों की तरह व्यवहार करते हैं। कुछ पलों की जल्दी के चक्कर में अपनी तथा औरों की जान को खतरे में डाल देते हैं। आज केवल दिल्ली में ही सड़क हादसों की वजह से हर साल हजारों लोग अपनी जान गवां देते हैं और कितने ही अपने शरीर के महत्वपूर्ण अंगो से हाथ गवां बैठते हैं। आखिर दिल्ली में बिला वजह ओवर टेकिंग समाप्त क्यों नहीं होती है? आखिर क्यों गाड़ी चलाने वाले अपनी लेन में नहीं चलते हैं? और सबसे बड़ी बात कि आखिर गाड़ी इतनी जल्दी में और गुस्से में क्यों चलाते हैं? दो मिनट की देर में मारने-मरने पर तैयार हो जाते हैं? क्या शहरों में मौत इतनी सस्ती हो गई है?"
ReplyDeleteShahnawaz Bhai, in Sawalo Ke jawab kisi ke bhi paas nahi hai. Sabko Ghar jane ki jaldi hai.
"इन सवालों के साथ आखिर हम अपनी मंज़िल पर पहंच गए।
लेकिन कितने लोग रोज़ाना अपनी मंज़िल को पहुंचते होंगे, कभी किसी ने सोचा है?"
Itna Sochte to Traffic ka yeh haal nahi hota
suprb!!!
ReplyDeleteभाई जान, एक दम सही नजारा पेश किया हैं, मैं भी यही सोचता हूँ कि आखिर सबको इतनी जल्दी क्यूँ हैं??? गाड़ियाँ ऐसे दोडाते हैं जैसे रेस लग रही हो......कॉलेज में नया नया प्रवेश लिया था तब मम्मी ने यामाहा दिलाई थी.....रिंग रोड पर दौड़ती गाड़ियों को एक दूसरे को खतरनाक तरीके से ओवरटेकिंग करते देखा......तो यामाहा घर में ही बंद कर दी गयी.....
ReplyDeleteदिल्ली की सडको का तो ये हाल हैं बंदा ईमानदारी से ट्रेफिक नियमो का पालन करने के बावजूद दुसरो की लापरवाही से दुर्घटनाग्रस्त हो सकता हैं........कैब्स की स्पीड देख कर तो जान ही निकल जाती हैं......
Assalamu alaikum all.......
ReplyDeletewah Shahnawaz bhai wah...
har naye blog ke saath aap to nikharte hi chale ja rahe ho...
yahan tak ki hame comments karne me bhi kami lagne lagi hai...jee chahta hai baar baar vote aur comment dete chale jae...
isi tarah kaam karte rahiye...
Shah ji bahut Mast. Ekdum sahi jagah prahar kiya hai apne.
ReplyDeleteइन सवालों के साथ आखिर हम अपनी मंज़िल पर पहंच गए।
ReplyDeleteलेकिन कितने लोग रोज़ाना अपनी मंज़िल को पहुंचते होंगे, कभी किसी ने सोचा है?
Zabardast! Ekdum sahi!
Guruji kya abhi tak CHETAK Scooter hi chalate ho????????? Nayi Bike le lo bhai!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteReally a great one....
ReplyDeleteहर आदमी भाग रहा है---पता नहीं कहाँ जा रहा है !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहर आदमी भाग रहा है---पता नहीं कहाँ जा रहा है !
ReplyDeleteसोचा है जी
ReplyDeleteऔर सिर्फ सोचा ही है
इसलिए ही तो
यह हाल है।
आपका सवाल भी
यही है
उत्तर वही रहेगा
कि
सोचा है और
सिर्फ सोचा है
सोचते ही रहेंगे
उससे पीछे न हटेंगे
हम तो यहीं डटेंगे।