इश्क़-ऐ-हकीकी
सबब जीने का हमारा है इश्क़
मेरी हस्ती में यह वाबस्ता है मेरी हर शय का नज़ारा है इश्क़
दिलों में बसता है ढ़ूंढने से क्या हासिल
इस गोल सी दुनिया का किनारा है इश्क़
डूबते को तिनका भी नज़र आए साहिल
अंधेरी रात में जलता हुआ तारा है इश्क़
दिल तो खोया हुआ है कब से इसके पहलू में
हमने इस दिल में जबसे उतारा है इश्क़
तेरा बोला हुआ एक लफ्ज़ कयामत ला दे
और चाहत भरा पैगाम तुम्हारा है इश्क़
सिर्फ एहसास है पाकीज़ा खयालातों का
ये जाँ देकर भी जानेजाना गवांरा है इश्क़
कदम तो बढ़ते हैं सदा मंजिल के पाने को
कभी जीता कभी तक़दीर का मारा है इश्क़
हम तो जाना इसे होटो से ही पढ़ लेते हैं
तेरे रूख्सार पर लिखा हुआ सारा है इश्क़
इसे बनाने में ज़रूर खुदा की मर्ज़ी है
अपने ईनाम से उसने ही सवांरा है इश्क़
ये एक पल नहीं सदियों में बनाया होगा
किसी अवतार ने फुर्सत से उतारा है इश्क़
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords:
Gazal, Hindi, Poem, Love, इश्क़
very nice words .
ReplyDeleteबाक़ी हैं कुछ सज़ाएं सज़ाओं के बाद भी
हम वफ़ा कर रहे हैं उनकी जफ़ाओं के बाद भी
हमें अपने वुजूद से लड़ने का शौक़ है
हम जल रहे हैं तेज़ हवाओं के बाद भी
करता है मेरे अज़्म की मौसम मुख़ालिफ़त
धरती पे धूप आई घटाओं के बाद भी
मौत खुद आके उसकी मसीहाई कर गई
बच न पाया मरीज़ दवाओं के बाद भी
लहजे पे था भरोसा , न लफ़्ज़ों पे था यक़ीं
दिल मुतमईं हो कैसे दुआओं के बाद भी
मुन्सिफ़ से जाके पूछ लो ‘अनवर‘ ये राज़ भी
वो बेख़ता है कैसे ख़ताओं के बाद भी
ग़ज़ल
ReplyDeleteआदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा ख़ुदा देगा ।
मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
क्या मेरे हक़ में फ़ैसला देगा ।
ज़िन्दगी को क़रीब से देखो
इसका चेहरा तुम्हें रूला देगा ।
हमसे पूछो दोस्त क्या सिला देगा
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा ।
इश्क़ का ज़हर पी लिया ‘फ़ाक़िर‘
अब मसीहा भी क्या दवा देगा ।
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/gayatri-mantra-is-great-but-how-know.html
Very Nice......
ReplyDeleteहै चाहत इश्क़, यह प्यारा है इश्क़
ReplyDeleteसबब जीने का हमारा है इश्क़
दिलों में बसता है ढ़ूंढने से क्या हासिल
इस गोल सी दुनिया का किनारा है इश्क़
बहुत ही कमाल का लिखा है शाह जी. दरअसल इश्क ही है जो इंसान को खुदा से मिला देता है. कुछ लाइन तो दिल को छू गई. मज़ा आगया
ReplyDeleteदिलों में बसता है ढ़ूंढने से क्या हासिल
ReplyDeleteइस गोल सी दुनिया का किनारा है इश्क़.
और
ये एक पल नहीं सदियों में बनाया होगा
चीज़ दुनिया की नहीं आसमान से आया होगा
किसी अवतार ने फुर्सत से उतारा है इश्क़
शाह जी , बिलकुल सही लिखा हैं कुछ ऐसा ही घटता हैं जब इश्क़ नमक वरदान को हम पते हैं ......
ReplyDeleteकदम तो बढ़ते हैं सदा मंजिल के पाने को
ReplyDeleteकभी जीता कभी तक़दीर का मारा है इश्क़
(क्या खूब लिखा हैं)
इसे बनाने में ज़रूर खुदा की मर्ज़ी है
ReplyDeleteअपने ईनाम से उसने ही सवांरा है इश्क़
Beautiful,
शुक्रिया अनवर जी, अंजुम जी, सुमित खन्ना जी, हरीश भाई तथा संगीता राव जी. बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ऊँची बात कह गए शाह साहब.
ReplyDelete"ये एक पल नहीं सदियों में बनाया होगा
चीज़ दुनिया की नहीं आसमान से आया होगा
किसी अवतार ने फुर्सत से उतारा है इश्क़"
अनवर भाई, बहुत ही ज़बरदस्त ग़ज़ल लिखी है आपने ऊपर. बहुत खूब!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकाबिले तारीफ .........
ReplyDeleteसुंदर , दिल को छू गई.
http://rajdarbaar.blogspot.com/
Bhai Wah....
ReplyDeleteSUBHANALLAH
कदम तो बढ़ते हैं सदा मंजिल के पाने को
ReplyDeleteकभी जीता कभी तक़दीर का मारा है इश्क़
बहुत खूब
Bahut badhia Ghazal hai. Kya baat hai!
ReplyDeleteभाई वाह क्या कहे आपके , लाजवाब लगी हर एक लाईंन , बहुत खूब ।
ReplyDelete