कहो कब तलक यूँ सताते रहोगे
कहाँ तक हमें आज़माते रहोगे
सवालों पे मेरे बताओ ज़रा तुम
यूँ कब तक निगाहें झुकाते रहोगे
हमें यूँ सताने को आख़ीर कब तक
रक़ीबों से रिश्ते निभाते रहोगे
वो ग़म जो उठाएँ हैं सीने पे तुमने
बताओ कहाँ तक छुपाते रहोगे
- शाहनवाज़ 'साहिल'