गरीबी बचपना आने ही नहीं देती है, बच्चे अपने परिवार का भार उठाने की मज़बूरी में बचपन में ही जवान हो जाते हैं और जवानी से पहले बूढ़े. हालाँकि ध्यान से देखो तो वह बच्चे भी अपने ही लगते हैं, उनमें भी अपने ही बच्चों का अक्स नज़र आता है. कुछ बच्चों के पास सबकुछ है और कुछ के पास है केवल लाचारी...
गरीब बच्चो का
ख्वाब होता है
बचपन
कब पैदा हुए
कब जवानऔर कब चल दिये
अनंत यात्रा पर
याद भी नहीं
क्या है ज़िन्दगी
शायद हसरतो का
नाम है,
या फिर उम्मीदों का
हसरतें
कब किसकी पूरी हुई हैं?
और
उम्मीदें तो होती ही
बेवफा हैं
ऊँची इमारतें की
क्या खता है
आखिर ऊँचाइयों से
कब दीखता है
धरातल
'कुछ' कुलबुलाता सा
नज़र आता है
'कीड़ों' की तरह
या कुछ परछाइयाँ
जो अहसास दिलाती हैं
शिखर पर होने का
किसी का बच्चा
कई दिन से भूखा है
तो हुआ करे
ज़िद करके
मेरे बच्चे ने तो
पीज़ा खा लिया है
ठिठुरती ठण्ड को कोई
सहन ना कर पाया
मुझे क्या,
मेरा बच्चा तो
नर्म बिस्तर से रूबरू है
क्यों ना हो,
आखिर 'हम' कमाते
किसके लिए हैं?
'अपने' बच्चो के लिए ही ना!
जब गरीबों की कोई
ज़िन्दगी ही नहीं
तो 'बचपन' कैसा?
Keywords: kavita, bachpan, gareeb, gareebi, garibi, bachche, life
यह बचपन की नहीं,भविष्य की अनदेखी है।
ReplyDeleteसही कहा राधारमण जी... पता नहीं हम कब तक करते रहेंगे यह अनदेखी???
Deleteउफ़ एक कटु सत्य कह दिया।
ReplyDeleteवंदना जी, यह कटु सत्य हमारी जिंदगी का एक हिस्सा जैसा हो गया है... सबकुछ देखकर भी शायद बहुत ज्यादा असर नहीं होता है...
Delete:-(
सत्य हमेशा ही कटु होता हैं ...शब्दों की प्रस्तुति मन को छू गई
ReplyDeleteपर हर सच का एक दूसरा पहलु भी होता हैं ..
गरीबी और उसके बचपन को तो आपने लिख दिया ..ऐसे बचपन को सवांरने का कोई उपाए भी लिखते
अंजू जी, इसका उपाय तो सबको पता है... लेकिन हमारे अंदर घर कर गई पैसे की बडाई के कारण हमने अपने सामाजिक कर्तव्यों से मुंह मोड रखा है...
Deleteगहन भाव से लिखा है ...गहरी संवेदना ...
ReplyDeleteशुक्रिया अनुपमा जी...
Deleteया कुछ परछाइयाँ
ReplyDeleteजो अहसास दिलाती हैं
शिखर पर होने का
मार्मिक लेकिन सच्ची रचना...
नीरज
सराहना के लिए शुक्रिया नीरज जी...
Deleteलिखना आता तो नहीं है, छोटी सी कोशिश की है...
सच है कि गरीबी का ना तो बचपन होता है और ना ही जवानी। अच्छी रचना है।
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा...
Deleteवाह !!! बहुत ही बढ़िया तरीके से सच को शब्द दिये हैं आपने बहुत खूब ....समय मिले कभी तो ज़रूर आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteजहाँ नित जूझने की पड़ी हो, बचपन की कोमलता वहाँ आने से पहले ही ठिठक जाती है।
ReplyDeleteखतरनाक हालात हैं गरीबी के...
Deleteसंवेदनशील विचार ....सच में यह बहुत दुखद है...
ReplyDeleteदुखद भी और चिंतनीय भी...
Deleteगरीब की कोई आयु नहीं होती शाहनज़ाज़ भाई।
ReplyDeleteबेहतरीन.... बेहतरीन....बेहतरीन
ReplyDeleteशुक्रिया अतुल .भाई..
Deleteकटु सत्य ...!
ReplyDeleteआपको शुभकामनायें !
सतीश भाई... सोच तो बहुत लिया, अब करने का वक्त है...
Deletebahut hi katu saty likha hai aapne
ReplyDeletejo dil me ek sihran si mahsus karane ke saath hiaankhon ko bhi man kar jaata hai----
poonam
वाकई अफ़सोस वाली बात है...
Deleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल शनिवार .. 04-02 -20 12 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचलपर ..... .
कृपया पधारें ...आभार .
धन्यवाद अनुपमा जी...
Deleteबहुत संवेदनशील रचना .. गरीब का बचपन सर्दी गर्मी सड़क पर गुज़रता है
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.मन को छू गई,आपको मेरी शुभकामनाएं.
ReplyDeleteशुक्रिया मनोज भाई...
Deletebahut khoob .....f b pr bhi maine apko comment send kiya hai ....apki rachana vakai bahut achhi hai...sadar abhar
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत स्वागत है नवीन जी...
Deleteबेहतरीन मन को छूती सुंदर रचना, बहुत अच्छी प्रस्तुति,
ReplyDeleteMY NEW POST ...कामयाबी...
हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया धीरेन्द्र जी... बस एक छोटी सी कोशिश की है...
Deleteशुक्रिया पियूष जी, आपके ब्लॉग पर अक्सर जाता हूँ...
ReplyDeleteजब गरीबों की कोई
ReplyDeleteज़िन्दगी ही नहीं
तो 'बचपन' कैसा?
गरीबी खुद एक शूल है ,अम्ल शूल जिसके लिए कोई पैन किलर आज तक नहीं बना .सिर्फ हम उसे एक रेखा के ऊपर और नीचे करते रहतें हैं कभी ६६ रूपये शहरी गरीबी के नाम रोजाना और ३५ ग्रामीण गरीबी के .गरीबी हमारी अर्थव्यवस्था को लगा कैंसर है जहां हमारी प्राथमिकताएं भिन्न हैं .आरामदायक कार और स्मार्ट फोन्स अब बेहद ज़रूरी हैं ,चाँद पर पहुंचना भी पर पीने और मल साफ़ करने के लिए हमारे पास जल नहीं हैं जंगल जाने के लिए शौच गृह नहीं है .जंगल तो अब श्यार को भी नसीब नहीं है शहर की और चला आ रहा है वह .मार्मिक रचना शाहनवाज़ साहब आपकी .बधाई स्वीकार करें .
कृपया यहाँ भी पधारें
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
सावधान !आगे ख़तरा है
सावधान !आगे ख़तरा है
http://veerubhai1947.blogspot.in/
रविवार, 29 अप्रैल 2012
परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब
http://veerubhai1947.blogspot.in/
रविवार, 29 अप्रैल 2012
महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला
http://veerubhai1947.blogspot.in/
शोध की खिड़की प्रत्यारोपित अंगों का पुनर चक्रण
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/शुक्रिया .
आरोग्य की खिड़की
न हो कमीज़ तो पांवों से पेट ढक लेंगे ,
ReplyDeleteये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए .
शाहनवाज साहब ,हिन्दुस्तान से उड़ने वाले गिद्ध ही गायब hue हैं कचरा बीनने वाले नन्ने हाथ नहीं और स्विस बेन्किया गिद्ध फूल रहें हैं खा खाके .yahi इस जन निरपेक्ष तंत्र की विडंबना है .आपकी रचना रोक देती है जीवन को .विवश करती है सोचने को .लोग इत्ते gareeb हैं तो हैं क्यों ?
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सोमवार, 30 अप्रैल 2012
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राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर संशोधित_प्रोग्रामिंग परीक्षा -2020 UG/PG भाग 3 वर्ष कला, विज्ञान, वाणिज्य/ M.A, M.Com, M.Sc के साथ देय (Due) पेपर पार्ट 1st -2nd वर्ष बीए, बीएससी, बीकॉम/ M.A, M.Com, M.Sc Pre. अतिरिक्त - नियमित / निजी / गैर-कॉलेज / पूर्व-छात्रों की परीक्षा
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