एक तरफ तो दिल्ली सरकार कॉमन-वेल्थ खेलों के नाम पर तरक्की के ख्वाब दिखा रही है, वही सिक्के का दूसरा पहलु यह है कि आज दिल्ली जैसे बड़े शहर में पैसे और रसूख के बल पर कुछ भी किया जा सकता है. जहाँ एकतरफ विदेशी मेहमानों की आवभगत के लिए करोडो रुपयों को पानी की तरह बहाया जा रहा है, वहीँ सरकार की नाक के नीचे अपराधिक छवि के लोग अक्सर रसूख रखने वाले लोगों की छत्रछाया में ही पल-बढ़ रहे हैं. कहीं गरीब लोग अमीरों की महंगी गाड़ियों के द्वारा कीड़े-मकोडो की तरह कुचले जाते हैं तो कहीं अपराधियों का विरोध करने पर उनकी दहशत का शिकार हो जाते हैं. हद तो तब होती है, कि आम आदमी की सरकार होने का दावा करने वाली हमारी देश की सरकारे सब कुछ देखते हुए भी आँख मूंद कर बैठी रहती हैं.
घटना दिल्ली के नरेला इलाके की है, जहाँ कुछ अज्ञात बदमाशों ने रात्रि तक़रीबन 8.30 बजे शांति अपार्टमेन्ट, पॉकेट-13 में रहने वाले श्री वैश और उनके परिवार पर जानलेवा हमला कर दिया. उनका कसूर केवल इतना था, कि उन्होंने अकेले ही कुछ अपराधिक तत्वों के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत की थी. अब होना तो यह चाहिए था कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां उनका साथ देते हुए, हमलावरों के खिलाफ कार्यवाही करती, परन्तु सूत्रों से पता चला कि उनकी सुनवाई कहीं भी नहीं हुई है. वह घायल अवस्था में पीतमपुरा के मेक्स अस्पताल में भर्ती हैं.
अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की वजह से उनके ऊपर पिछले वर्ष भी हमला हुआ था. अगर सुरक्षा एजेंसियां सही समय पर कार्यवाही करती तो इस जानलेवा हमले को टाला जा सकता था. लेकिन अपराधिक तत्व खुले आम घूमते रहे और श्री वैश और उनके परिवार का घर से निकलना दूभर बना रहा. किसी तरह की कार्यवाही ना होने पर ही ऐसे अपराधिक तत्वों को बढ़ावा मिलता है. इस केस में भी यही हुआ, कुछ अज्ञात बदमाशों ने अचानक उनपर हमला कर दिया. जब तक उनका परिवार कुछ समझ पता तब तक तो हमलावर उनको बुरी तरह घायल कर चुके थे. लेकिन ऐसा नहीं है कि दुनिया से इंसानियत समाप्त हो गयी है, संवेदनहीनता के इस दौर में भी अक्सर कुछ हाथ मदद के लिए उठ ही जाते हैं. जैसे ही पड़ोसियों को घटना का पता चला उन्होंने जल्दी से उनको अस्पताल पहुँचाया ताकि एक जीवन समाप्त होने से बचाया जा सके.
लेकिन क्या यह फ़र्ज़ केवल उनके पड़ोसियों का ही है? क्या हर पढने-सुनने वाले का यह फ़र्ज़ नहीं है कि इंसानियत को बचाया जाए? क्यों नहीं हम ऐसे लोगो की मदद करते हैं जिनको हमारी मदद की आवश्यकता होती है? क्या हम अपने ऊपर ऐसी दुर्घटनाओं के घटने का इंतज़ार करते हैं? आखिर हम कब जागेंगे?
घटना दिल्ली के नरेला इलाके की है, जहाँ कुछ अज्ञात बदमाशों ने रात्रि तक़रीबन 8.30 बजे शांति अपार्टमेन्ट, पॉकेट-13 में रहने वाले श्री वैश और उनके परिवार पर जानलेवा हमला कर दिया. उनका कसूर केवल इतना था, कि उन्होंने अकेले ही कुछ अपराधिक तत्वों के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत की थी. अब होना तो यह चाहिए था कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां उनका साथ देते हुए, हमलावरों के खिलाफ कार्यवाही करती, परन्तु सूत्रों से पता चला कि उनकी सुनवाई कहीं भी नहीं हुई है. वह घायल अवस्था में पीतमपुरा के मेक्स अस्पताल में भर्ती हैं.
अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की वजह से उनके ऊपर पिछले वर्ष भी हमला हुआ था. अगर सुरक्षा एजेंसियां सही समय पर कार्यवाही करती तो इस जानलेवा हमले को टाला जा सकता था. लेकिन अपराधिक तत्व खुले आम घूमते रहे और श्री वैश और उनके परिवार का घर से निकलना दूभर बना रहा. किसी तरह की कार्यवाही ना होने पर ही ऐसे अपराधिक तत्वों को बढ़ावा मिलता है. इस केस में भी यही हुआ, कुछ अज्ञात बदमाशों ने अचानक उनपर हमला कर दिया. जब तक उनका परिवार कुछ समझ पता तब तक तो हमलावर उनको बुरी तरह घायल कर चुके थे. लेकिन ऐसा नहीं है कि दुनिया से इंसानियत समाप्त हो गयी है, संवेदनहीनता के इस दौर में भी अक्सर कुछ हाथ मदद के लिए उठ ही जाते हैं. जैसे ही पड़ोसियों को घटना का पता चला उन्होंने जल्दी से उनको अस्पताल पहुँचाया ताकि एक जीवन समाप्त होने से बचाया जा सके.
लेकिन क्या यह फ़र्ज़ केवल उनके पड़ोसियों का ही है? क्या हर पढने-सुनने वाले का यह फ़र्ज़ नहीं है कि इंसानियत को बचाया जाए? क्यों नहीं हम ऐसे लोगो की मदद करते हैं जिनको हमारी मदद की आवश्यकता होती है? क्या हम अपने ऊपर ऐसी दुर्घटनाओं के घटने का इंतज़ार करते हैं? आखिर हम कब जागेंगे?
-शाहनवाज़ सिद्दीकी
विस्तृत जानकारी एवं मदद के लिए निम्नलिखित लेख पढ़ें:
http://jantakifir.blogspot.com/2010/05/blog-post_17.html
हम सब का फर्ज है इन्सानियत को बचाया जाये, हम जरूर जागेगें बस आप जैसा जगाने वाला मिलता रहे
ReplyDeleteबस्तर के जंगलों में नक्सलियों द्वारा निर्दोष पुलिस के जवानों के नरसंहार पर कवि की संवेदना व पीड़ा उभरकर सामने आई है |
ReplyDeleteबस्तर की कोयल रोई क्यों ?
अपने कोयल होने पर, अपनी कूह-कूह पर
बस्तर की कोयल होने पर
सनसनाते पेड़
झुरझुराती टहनियां
सरसराते पत्ते
घने, कुंआरे जंगल,
पेड़, वृक्ष, पत्तियां
टहनियां सब जड़ हैं,
सब शांत हैं, बेहद शर्मसार है |
बारूद की गंध से, नक्सली आतंक से
पेड़ों की आपस में बातचीत बंद है,
पत्तियां की फुस-फुसाहट भी शायद,
तड़तड़ाहट से बंदूकों की
चिड़ियों की चहचहाट
कौओं की कांव कांव,
मुर्गों की बांग,
शेर की पदचाप,
बंदरों की उछलकूद
हिरणों की कुलांचे,
कोयल की कूह-कूह
मौन-मौन और सब मौन है
निर्मम, अनजान, अजनबी आहट,
और अनचाहे सन्नाटे से !
आदि बालाओ का प्रेम नृत्य,
महुए से पकती, मस्त जिंदगी
लांदा पकाती, आदिवासी औरतें,
पवित्र मासूम प्रेम का घोटुल,
जंगल का भोलापन
मुस्कान, चेहरे की हरितिमा,
कहां है सब
केवल बारूद की गंध,
पेड़ पत्ती टहनियाँ
सब बारूद के,
बारूद से, बारूद के लिए
भारी मशीनों की घड़घड़ाहट,
भारी, वजनी कदमों की चरमराहट।
फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?
बस एक बेहद खामोश धमाका,
पेड़ों पर फलो की तरह
लटके मानव मांस के लोथड़े
पत्तियों की जगह पुलिस की वर्दियाँ
टहनियों पर चमकते तमगे और मेडल
सस्ती जिंदगी, अनजानों पर न्यौछावर
मानवीय संवेदनाएं, बारूदी घुएं पर
वर्दी, टोपी, राईफल सब पेड़ों पर फंसी
ड्राईंग रूम में लगे शौर्य चिन्हों की तरह
निःसंग, निःशब्द बेहद संजीदा
दर्द से लिपटी मौत,
ना दोस्त ना दुश्मन
बस देश-सेवा की लगन।
विदा प्यारे बस्तर के खामोश जंगल, अलिवदा
आज फिर बस्तर की कोयल रोई,
अपने अजीज मासूमों की शहादत पर,
बस्तर के जंगल के शर्मसार होने पर
अपने कोयल होने पर,
अपनी कूह-कूह पर
बस्तर की कोयल होने पर
आज फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?
अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार, कवि संजीव ठाकुर की कलम से
very good post
ReplyDeleteI really think the same as you....... its aor moral duty to stand against such activity to make our surrounding a safe place to live.
ReplyDeleteGreat for writing and leting everyone know about this......
good efforts...
ReplyDeleteI don't know the government will take it seriously.......may be when it happens with them.
ReplyDeleteNICE
ReplyDeleteबहुत ही दुःख भरी खबर है, भगवन ने चाहा तो वैश जी जल्दी ही ठीक हो जाएँगे. शाहनवाज़ जी प्रिंट मीडिया में इस खबर को उठाया जाए तो अवश्य मदद मिलेगी.
ReplyDeleteशाहनवाज जी इंसानियत को बचाने के इस मुहीम को प्रभावी बनाने के लिए आपका धन्यवाद / इसके लिए इंसानियत और मेरे जैसे लोग आपके सदा ऋणी रहेंगे / आशा है जब श्री वेश्य अस्पताल से घर आ जायेंगे तो आप जैसे लोग उनसे मिलकर तथ्यों पे आधारित सबूतों के आधार पर दिल्ली पुलिस को लिखकर ,पुलिस को हर हल में कार्यवाही के लिए बाध्य कर देंगे / इंसानियत को सिर्फ और सिर्फ एक जुटता से ही बचाया जा सकता है / आपके इस प्रयास की जितनी तारीफ की जाय वो कम ही होगी ,और लोगों को भी इस मुहीम में शामिल होना चाहिए /
ReplyDeleteआपके प्रयास सरहानीय है.....
ReplyDeleteकुंवर जी,
@ शाहनवाज़ साहब यह समस्या केवल दिल्ली ही की नही पूरे देश की समस्या है यहाँ मुँह मे 'राम' बगल मे छुरी रखने वाले का कुछ नही बिगड़ता है यह आपने तहलका आजतक प्रकरण के बाद जारी हुई आतंकवादी संगठनो की लिस्ट मे देख लिया होगा इस लिस्ट मे जाली राष्ट्रवादी संगठनो के नाम ही नही है जबकि हकीकत खुल कर सामने आ चुकी है पर लगता नही इनका कुछ बिगड़ेगा जबकि एक मौलाना का सिर्फ इंग्लिश मे TAKE OF कहने के बजाए उड़ना कह देने भर से पकड़ लिया जाता है और बेगुनाह साबित होने पर भी उन पर मुकदमा कर दिया जाता है और एक दिन जेल मे भी रखा जाता है अब आप क्या उम्मीद कर सकते है
ReplyDeletesahi kaha UMAR bhai ne
ReplyDeleteहम सब का फर्ज है इन्सानियत को बचाया जाये, हम जरूर जागेगें बस आप जैसा जगाने वाला मिलता रहे
ReplyDeleteLogo ke andar auro ki madad ki bhawna utpann ho jae, to samjho mehnat safal ho gayi. Very Good!
ReplyDeleteAapne ek sashakt mudda utha hai Shah ji aur aapmein aise mudde uthane ki kabliyat bhi hai. Aapke jaisa mitr hona mere liye Garv ki baat hai.
ReplyDeleteEk bat aur...... Guru ji bhi apke lekho ke barey mein sun kar bahut khush hue hain.
hummmm ab pata chala...
ReplyDelete...बात में दम है,प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteजनाब जो दौलत के लिए जीते हों और मरने से डरते हों तो वे भला बदमाशों का मुक़ाबला कैसे करेंगे ?
ReplyDeletehttp://blogvani.com/blogs/blog/15882
नई कालोनियों में यह ज्यादा देखने में आ रहा है की पडोसी भी पडोसी की खबर नहीं रखता.
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