भ्रष्टाचार हमारे बीच में से शुरू होता है, हम अक्सर अपने आस-पास इसे फलते-फूलते हुए देखते हैं। बल्कि अक्सर स्वयं भी किसी ना किसी रूप में इसका हिस्सा होते हैं। लेकिन हमें यह बुरा तब लगता है जब हम इसके शिकार होते हैं। हम नेताओं, भ्रष्ट अधिकारी इत्यादि को तो कोसते हैं, लेकिन हम स्वयं भी कितने ही झूट और भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं? सबसे पहले तो हमें अपने अंदर के भ्रष्टाचार को समाप्त करना होगा। शुरुआत अपने से और अपनों से हो तभी यह भ्रष्टाचारी दानव समाप्त हो सकता है। भ्रष्ट नेता या अधिकारी कोई एलियन नहीं है, बल्कि हमारे बीच में से ही आते हैं, इस समाज का ही हिस्सा हैं। जब कोई छात्र लाखों रूपये की रिश्वत देकर दाखिला पाता है, उसके बाद फिर से रिश्वत देकर नौकरी मिलती है, तो ऐसा हो नहीं सकता कि वह नौकरी मिलने के बाद भ्रष्टाचार में गोते ना लगाए। अगर कोई शरीफ भी होता है, और हालात की वजह से रिश्वत देता है तो शैतान उसको समझाता है कि तू रिश्वत दे रहा है, जब तेरी बारी आएगी तो रिश्वत मत लेना। नौकरी लगने पर सबसे पहले वह सोचता है कि अपने पैसे तो पूरे कर लूँ, फिर धीरे-धीरे उसे आदत ही लग जाती है। क्योंकि एक बार हराम का निवाला अन्दर गया तो ईश्वर का डर अपने-आप बहार आ जाता है।
आज हर छोटे से छोटा तथा बड़े से बड़ा व्यक्ति भ्रष्टाचार में लिप्त है, चाहे वह बिना मीटर के ऑटो रिक्शा चलने वाला हो, या मिलावटी दूध या कोई और खाद्य पदार्थ बेचने वाला हो या फिर किसी सरकारी अथवा गैर सरकारी पद पर आसीन व्यक्ति। यहाँ तक कि लोगो ने धर्म को भी अपना व्यवसाय बना लिया है। हर दूकानदार किसी भी वस्तु को बेचने के लिए हज़ार तरह के झूट बोलता है। यदि उसने कोई सामान बाज़ार से ख़रीदा है 15 रूपये में तो वह बताएगा 20 रूपये, इस पर यह जवाब कि अगर झूट नहीं बोलेंगे तो काम कैसे चलेगा। यह नहीं सोचते कि जो ईश्वर अरबों-करोडो जानवरों, पेड़-पौधों को खिला कर नहीं थका, वह क्या एक इंसान को खिलाने से थक जाएगा?
असल बात यह है कि पाप पर होने वाले ईश्वर के गुस्से का डर हमारे अन्दर से निकल गया है। जिस दिन यह डर बिलकुल ही समाप्त हो जाएगा, दुनिया का अंत हो जाएगा। पश्चिम ने अध्यात्म की तरफ लौटना शुरू कर दिया है, अगर हम भी समय रहते जाग जाएँ तो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भारत बना सकते हैं। वर्ना भ्रष्टाचार में लिप्त दीमक लगा भारत छोड़कर जाएँगे और वह इसे और कमज़ोर ही बनाएँगे।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
ठीक कहा हम भी समय रहते जाग जाएँ तो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भारत बना सकते हैं
ReplyDeleteमेरा यह मानना है कि विचारों में चाहे विरोधाभास हो, आस्था में चाहे विभिन्नताएं हो, परन्तु मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि बात के महत्त्व का पता चल सके। अहम् को छोड़ कर मधुरता से सुवचन बोलें जाएँ तो जीवन का सच्चा सुख मिलता है।
ReplyDeleteआपही की प्रोफाइल से उप्तोक्त सन्देश लिया है... अब बात आपकी पोस्ट पे:::
ReplyDeleteभ्रष्टाचार आज हमारी नस नस में इस तरह बस चुका है जैसे हमारे शरीर में खून... और जब खून ही हराम की खाने लगे तो आने वाली नस्ल तो हरामी ही निकलेगी न... और यही हो ही रहा है.
waise ye post bhi akhbaar men zaroor chhapegee..insha ALLAH
ReplyDeleteभ्रष्टाचार की जड़ें इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि इस पेड़ को कोई अकेले नहीं उखाड सकता....
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा शाहनवाज जी आपने आज तो सत्य और न्याय के लिए भी रिश्वत देना पड़ता है / इससे ज्यादा इंसानियत क्या शर्मसार हो सकती है / ऐसे व्यवस्था को क्या इंसानों की व्यवस्था कहा जा सकता है / आप ईमेल जरूर भेजते रहिएगा और अपने दोस्तों से भी ईमेल करने का आग्रह कीजियेगा ,हमलोगों का ईमानदारी से जाँच के लिए दवाब ही शायद अपराधियों को पकरने के लिए पुलिस अधिकारीयों को प्रेरित कर सके /
ReplyDeleteएक बेहद इमानदारी और बेबाकी लिखी गयी पोस्ट!शाहनवाज भाई आपने बहुत अच्छा और सच्चा विश्लेषण किया है!
ReplyDeleteजरूर नेता हम ही में से निकले है,लेकिन हम केवल इस अपराध में ही फस कर संतुष्ट है की 15 की चीज को 20 का बेकना है!जबकि वो हजार-हजार करोड़ को ऐसे निगल जाते है जैसे प्यासा आदमी शीतल जल को!बस उसे तृप्ति नहीं होती!
क्योकि हमारे पास अवसर नहीं है ना उतने के!
सोचने पर मजबूर कर दिया आपने...
कुंवर जी,
आपसे बिलकुल सहमत हू शाहनवाज भाईजान
ReplyDeleteबोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए.
ReplyDeleteभाई साहब ! आज आदमी ने अपने जीवन का मक़सद ही रूपया और ऐश बना ली है । इसी लिए वह दो बच्चे पैदा करता है । रिश्वतें लेकर और हराम माल कमाकर उन्हें डाक्टर इंजीनियर बनाता है । लड़की के विवाह में खूब दहेज देकर उम्दा सा दूल्हा ख़रीदता है । लड़का समाज में जिस भी पद पर बैठता है , वह समाज से अपनी एजुकेशन में आया खर्च सूद समेत वसूल करता है । हरेक आदमी आज अपनी ऐश के लिए दूसरों के हिस्से का सुख भी छीन लेना चाहता है और अपने हिस्से का दुख भी वह दूसरों पर डाल देना चाहता है । रूपया देकर अमीर आदमी आज ग़रीबों के गुर्दे तक निकलवा कर अपने लगवा लेते हैं । इनसान बनने के लिए इनसान को अपने मालिक के हुक्म को मानना पड़ेगा लेकिन क्या आज का आदमी इसके लिए तैयार है ?
ReplyDeletehttp://vedquran.blogspot.com/2010/05/hope-for-life.html
न हम सुधरते हैं न जग सुधरता है...
ReplyDeleteसमाज मे तीन तरह के लोग होते है: एक, वे जो बुराई करते हैं। दो,वे जो अच्छाई करते है। तीन, वे जो अच्छाई करते है और बुरे लोगों को रोकने की कोशिश करते है।खुदा को यही तीसरी तरह के लोग सबसे ज्यादा पसंद है।खुदा का जब अज़ाब आता है तो इन्ही लोगों को बचाया जाता है।
ReplyDeletegre8!!!!!!!!!!!!!!!!1
ReplyDeleteजी सही कहा...
ReplyDeleteवैसे आप रविवार को होने वाले ब्लोगर्स मीटिंग में जरुर आईये. हम स्वागतोत्सुक हैं.
जाट धर्मशाला, नांगलोई मेट्रो स्टेशन के पास.
रविवार २३ मई समय सायं ३ - ६ बजे
@ शाहनवाज़ भाई
ReplyDeleteइस भ्रष्टाचार के बारे में कही हुई आपकी एक-२ बात सच है, इतना अच्छा लेख लिखने के लिए धन्यवाद, आगे भी ऐसे मुद्दों को उठाते रहे, हम सब आपके साथ हैं . जब तक इन भ्रष्टाचारियों को कठोर से कठोर दंड देकर समाज को एक कड़ा सन्देश नहीं दिया जाता तब तक इसका अंत होना मुश्किल है .
आपसे बिलकुल सहमत हू
ReplyDeleteaap shi frmaa rhe hen agr hm khud bhrstaahaar ko maanyta nhin denge to kyaa mjaal ke bhrshtaachaar pnp jaaye. akhtar khan akela kota rajsthan
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