जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आते हैं, ठोस मुद्दों की जगह बहला-फुसला कर वोट बटोरने की राजनीति शुरू हो जाती है, उसी तर्ज़ पर आज कल मुसलमानो को आरक्षण के लॉली पॉप पर बहस छिड़ी हुई है। मेरा सवाल है कि आखिर मुसलमानो को आरक्षण क्यों मिलना चाहिए? बल्कि अब किसी को भी आरक्षण की बात नहीं होनी चहिए। इसकी जगह उन्हें उनके अधिकार की बात होनी चाहिए, बराबरी के अधिकार की। और बात अगर पिछड़ों को आगे बढ़ाने की है, तो रोज़गार के अवसरों की बात होनी चाहिए, शिक्षा के स्तर पर मदद होनी चाहिए, स्किल डेवलेपमेंट की बात होनी चाहिए, जिससे किसी बैसाखी की जगह अपने पैरों पर खड़े होकर देश की प्रगति में सहायक बनें।
आज समाज के अनेकों तबकों में शिक्षा को महत्त्व नहीं दिया जाता, बल्कि यह नारा आम कर दिया गया है कि 'पढ़-लिख कर क्या करोगे? तुम्हे कौन सा कोई नौकरी दे देगा?' हालाँकि भेदभाव से इंकार नहीं किया जा सकता मगर इसके बावजूद आज के युग में इस नारे की कोई अहमियत नहीं है। आज जिस तरह से कम्पनियों प्रतिस्पर्धा का दौर आया है उसमें सरकारी भाई-भतीजावाद या फिर लाला कंपनियों के मालिकों / मुंशियों की मनमानी से अलग, नौकरियां का मापदंड काफी हद तक अब 'कुशलता' बन गई है!
आज आवश्यकता इन मुद्दों पर अपने क्षेत्र में जमकर काम करने की है। इसलिए बातें छोड़िये लग जाइए अपने-अपने क्षेत्र में शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने में। बहुत काम है, बहुत मेहनत की आवश्यकता है!!! जो छात्र पढ़ने में रूचि नहीं रखते हैं, या उनके माँ-बाप की रूचि नहीं हैं, उन्हें इसके फायदे गिनाने पड़ेंगे। उनसे मिलिए, मनुहार करिए, बच्चो को स्कूल ले कर आइए!
हालाँकि काफी हद तक आजकल अभिभावक बच्चों को पढ़ाने में रूचि लेने लगे हैं, लेकिन घर में माहौल नहीं होने के कारण बच्चों की रूचि पढ़ाई में बहुत अधिक नहीं रहती है और इस कारण अधिकतर बच्चे प्राथमिक शिक्षा के बाद स्कूल जाना छोड़ देते हैं। अभिभावक भी बच्चे की रूचि का बहाना बना कर पढ़ाई से मुंह मोड़कर अगर लड़का है तो उसे काम-धंधा सिखाने और अगर लड़की है तो घर के कामकाज को तरजीह देते हैं! कुछ बच्चे थोडा और आगे जाते हैं तो वह भी दसवी/बारहवी/स्नातक कॉरेस्पोंडेंस से करने की कोशिश करते हैं, जो बच्चे कॉरेस्पोंडेंस से दसवी/बारहवी या स्नातक करना चाहते हैं, उन्हें समझाइये कि इससे काम नहीं चलेगा!!! रेगुलर पढ़ाई करो, मन लगा कर पढ़ो, बल्कि आज ज़माना प्रोफेशनल पढ़ाई का है। बच्चों को सही विषय चुनने में मदद करिये, विश्विद्यालयों में प्रवेश सम्बन्धी जानकारियाँ उपलब्ध कराइए!
उनको समझाना है कि इसलिए पढ़ाई नहीं करनी क्योंकि नौकरी करना है, बल्कि इसलिए कि आगे बढ़ना है। पढ़ाई पूरी करने के बाद चाहे दूकान सम्भालों, कारोबार करो या नौकरी, यह इच्छा या अवसर का मामला है!
अहसास दिलाना है कि शिक्षा केवल हमारी ज़िन्दगी को ही नहीं बदलने जा रही है, बल्कि इसका असर पुरे परिवार और यहाँ तक की पीढ़ी-दर-पीढ़ी पड़ने वाला है! घर खर्च पढ़ाई के बिना भी जैसे-तैसे चलाया ही जा सकता हैं, लेकिन आज के दौर से कदम-ताल मिलाने में अगर पीछे रह गए तो देश को कुछ दे नहीं पाएंगे, बल्कि देश पर बोझ ही बनेंगे!
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