कोलकाता के हादसे ने कितने ही लोगो की जान ले ली, बल्कि हमारे देश में तो रोज ही हज़ारों लोग इस तरह की लापरवाही तथा भ्रष्ठ तंत्र के शिकार बनते हैं. 'मेरा काम आसानी से होना चाहिए', और 'यहाँ तो ऐसे ही चलता है' जैसी सोच ही इस लापरवाही और भ्रष्ठ तंत्र की ज़िम्मेदार है.
सरकार अथवा प्रबंधन को कोस कर, कुछ दिन के लिए लोग जागरूक बन जाएँगे. अपने आस-पास की कमियों पर नज़र जाएगी, तब्सरे होंगे, शिकायते होंगी... और उसके कुछ दिन बाद फिर से वही सब पुराने ढर्रे पर चलने लगेगा, अगले हादसे तक...
क्योंकि 'यहाँ तो ऐसे ही चलता है', दुनिया जाए भाड़ में 'मेरा काम आसानी से होना चाहिए'.