दुनिया का हुस्न था कभी और प्यार की बस्ती,
कुम्हला गई है आज यहा फूलों की मस्ती।
कुम्हला गई है आज यहा फूलों की मस्ती।
कुछ लोग मर रहे हैं, कुछ लोगों की खातिर,
कुछ रूहें फिर रहीं है यहां राह भटकती।
कोई शहर छोड़ गया है, कोई ज़िंदगी ‘साहिल’,
कुछ रह गई हैं आंखे यहां राह को तकती।
जन्नत का बाग़ नाम था कश्मीर का कभी,
अपनो ने ही मिटा ली आज अपनी ही हस्ती।
कई तीर चले कमां छोड़, सीना तान के,
रुक-रुक के गिर रहीं है कई लाशे तड़पती।
तकदीर की तो क्या कहें, तदबीर ही सिमट गई,
हर दिल में घर किए हैं कई आंहे सहमती।
जीने के लिए आते थे बीमार यहां पर,
अब मौत हो गई है यहां देखो तो सस्ती।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी "साहिल"
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Ghazal, Kashmir, poem, hindi
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बहुत ही खूबसूरत और हकीकत को बयां करती हुई ग़ज़ल है शाहनवाज़ जी. वाकई, आज कश्मीर जन्नत से जहन्नुम बनने की और बढ़ रही है. वहां के लोगो को अपने और पराये दोनों ने लुटा है.
ReplyDeleteदुनिया का हुस्न था कभी और प्यार की बस्ती,
ReplyDeleteकुम्हला गई है आज यहा फूलों की मस्ती।
वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteजन्नत का बाग़ नाम था कश्मीर का कभी,
ReplyDeleteअपनो ने ही मिटा ली आज अपनी ही हस्ती।
True!
Nice!
क्या बात है लाजवाब भाई , दिल में उतर गयी आपकी रचना , बहुत खूब ।
ReplyDeleteकोई शहर छोड़ गया है, कोई ज़िंदगी ‘साहिल’,
ReplyDeleteकुछ रह गई हैं आंखे यहां राह को तकती।
शाहनवाज़ भाई ! आपकी ग़ज़ल भी आपकी आंखों की तरह ही शरबती है । बहुत रस है आपकी आंखों में और आपकी बातों में भी । बाइ द वे , आपकी शादी वादी हो गयी या यहां किसी की तलाश में ग़ज़लें तराश रहे हैं ?
ReplyDeleteBehtreen Gazal Bhaijan!
ReplyDeleteShah ji tumhari sabhi post achhi hoti hai, me kafi dino se aapka blog padh raha hu. Aapki orkut profile se aapka link mil jata hai. jitni bhi tareef karu kam hai. very good.
ReplyDeleteKashmir ka dard aaj sine me utar aayaa hai. Akhir kab samapt hogi vaha maar-kaat???????????
ReplyDeleteदुनिया का हुस्न था कभी और प्यार की बस्ती,
ReplyDeleteकुम्हला गई है आज यहा फूलों की मस्ती।
कई तीर चले कमां छोड़, सीना तान के,
रुक-रुक के गिर रहीं है कई लाशे तड़पती।
Lajawab.........
Very beautiful.........
ReplyDeleteदुनिया का हुस्न था कभी और प्यार की बस्ती,
कुम्हला गई है आज यहा फूलों की मस्ती।
nice ghazal!
ReplyDeleteशाह जी एक और अच्छी प्रस्तुति के लिए मुबारकबाद! थोड़ी व्यस्तता के करणवश नेट पर कम आती हूँ, आपके नए लेखों के मेस्सेज मुझे मिल जाते है और जैसे ही समय मिलता है मैं देख भी लेती हूँ.
ReplyDeleteक्या मां-बाप को अपने अपाहिज भ्रूण को गर्भ में ही मार डालना चाहिये ?
ReplyDeletehttp://blogvani.com/blogs/blog/15882
A grave in the womb .
क्या बात है/........
ReplyDeleteकई तीर चले कमां छोड़, सीना तान के,
ReplyDeleteरुक-रुक के गिर रहीं है कई लाशे तड़पती।
तकदीर की तो क्या कहें, तदबीर ही सिमट गई,
हर दिल में घर किए हैं कई आंहे सहमती।
जीने के लिए आते थे बीमार यहां पर,
अब मौत हो गई है यहां देखो तो सस्ती।
मैं 15 अप्रैल 2010 को डा. मीनाक्षी राना के केबिन में अपनी पत्नी के साथ था ।
ReplyDeleteमेरी वाइफ़ प्रेग्नेंट है और उनकी तरफ़ तवज्जो देने की ख़ातिर मैंने अपना टी. वी. भी बन्द कर दिया है और अपने इन्टरनेट के सभी कनेक्शन भी सिरे से ही कटवा डाले । जो भी ज़रूरी चीज़ें दरकार हैं तक़रीबन सभी मुहैया करने की कोशिश की । डा. मीनाक्षी अपने पेशेंट्स की 7 वें महीने के बाद अल्ट्रा साउंड रिपोर्ट्स देखकर गर्भ में पल रहे शिशु की सेहत का अन्दाज़ा करती हैं । पहली रिपोर्ट के बाद आज उन्होंने ‘बी‘ लेवल का अल्ट्रा साउंड टेस्ट करवाया था । रिपोर्ट देखकर उन्होंने बताया कि शिशु का दिमाग़ आपस में जुड़ते वक्त थोड़ा ओवरलेप करके जुड़ा है , उसकी रीढ़ की हड्डी भी तिरछी है और उसकी कमर में एक रसौली भी है । डा. मीनाक्षी ने मुझे सारी कैफ़ियत बताने के बाद कहा कि मेरी राय में आप......
www.vedquran.blospot.com
इसे‘ टर्मिनेट करा दीजिये ।
ReplyDeleteमैंने उन्हें क्या जवाब दिया और क्यों दिया , यह तो मैं आपको बाद में बताऊंगा लेकिन पहले मैं आपका जवाब जानना चाहता हूं कि अगर पेट में पल रहा बच्चा अपाहिज हो और पैदा होने के बाद भी वह आजन्म अपाहिज ही रहे तो क्या उसकी मां की कोख को ही उसकी क़ब्र बना दिया जाए ?
subhanallah
ReplyDeleteबहुत खूब...कश्मीर का दर्द समेटे हुए है ये ग़ज़ल
ReplyDeleteआपने हकीकत बयाँ कर दी. कभी कभी ऐसा लगता है कि --
ReplyDeleteकुछ पता नहीं आखिर हम क्या चाहते हैं
क्या हम हैवानों की तरह रहना चाहते हैं
मजहब है बड़ा पाक ये मान लिया "नाशाद" लेकिन
इसके लिए क्या हम इंसानों को मारना चाहते हैं