निर्भया केस में रेपिस्टों के वकील ने अपने घटिया बयान में क्या गलती की है? वह तो उसी सोच को ज़ाहिर कर रहा है जो इस पुरुष प्रधान समाज ने बनाई है। वह ही क्या बल्कि अधिकतर पुरुष सोचते है कि औरतें मर्दों की ग़ुलाम हैं।
उनके हिसाब से बलात्कार के केस में गुनाहगार लड़की ही होती है। वह अकेली बाहर निकलेगी तो उस 'बेहया' की बोटियाँ नोचना मर्दों का हक़ बनता है। समाज चाहता है कि औरत पहले पति की गुलाम बने और उसके बाद बेटों की। और अगर पति या बेटे ना हों तो समाज के ठेकेदारों या फिर जिस्म के दलालों की ग़ुलामी करें, नहीं तो उन्हें पेट्रोल छिड़क कर जला दिया जाएगा या फिर तेज़ाब से झुलसा दिया जाएगा।
यक़ीन मानिये निर्भय केस पर भी अगर मिडिया/सोशल मिडिया और सड़क पर नौजवानों के द्वारा आन्दोलन नहीं चलाया गया होता तो इस केस का हाल भी अन्य लंबित केसों जैसा ही होता।
जिन लोगो को उसके बयान पर शर्म आ रही है, तो पहले वोह अपने समाज की सोच बदलने की चिंता करें, क्योंकि यह हमारे समाज की दबी हुई या छुपी हुई आवाज़ है।