मेरी नज़र में बुराई इन लोगो में नहीं बल्कि कहीं न कहीं हमारे अन्दर है, हम ऐसे लेखों को जहाँ दूसरों को गलियां दी जा रही हो, मज़े ले-लेकर पढ़ते हैं. क्या कभी हमने विरोध की कोशिश की? आज समय दूसरों को बुरा कहने की जगह अपने अन्दर झाँक कर देखने का है, मेरे विचार से शुरुआत मेरे अन्दर से होनी चाहिए.
दुनिया में कोई भी मस्जिद या मंदिर किसी एक इंसान की इज्ज़त से बढ़कर नहीं हो सकता फिर जान से बढ़कर कैसे हो सकता है?
मैं एक मुसलमान हूँ इसलिए उपरोक्त वाक्य कुरआन और हदीस की रौशनी में बता रहा हूँ, आपका सम्बन्ध जिस धर्म से हैं, अगर आप उसमे किसी भी ऐसी बात की जानकारी रखते हैं तो उसे यहाँ अवश्य लिखें, ताकि पुरे समाज में जागरूकता लाई जा सके.
सुज्ञ के अनुसार:
पूरे जगत में धरती का कोई कण ऐसा नहिं है,जहां से महापुरूषों ने जन्म धारण न किया हो,या ऐसा कोई अणु नहिं जिसका उपयोग महापुरूषों नें ग्रहण व विसर्जन करने में न किया हो।
अर्थार्त जगह विषेश किसी भी कारण से पूज्य या अपूज्य नहिं हो जाती।
धर्म स्थलों का उद्देश्य मानव के हितार्थ,शान्त चित से चिन्तन मनन के हेतू है। मानवता को उंचाईयां प्रदान करने हेतू साधना आराधना करें।
यही लक्षय है,और इसी कारण से महत्व होना चाहिए।
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