ग़ज़ल: प्यार की है फिर ज़रूरत दरमियाँ

प्यार की है फिर ज़रूरत दरमियाँ 
हर तरफ हैं नफरतों की आँधियाँ 

नफरतों में बांटकर हमको यहाँ 
ख़ुद वो पाते जा रहे हैं कुर्सियाँ 

खुलके वो तो जी रहे हैं ज़िन्दगी 
नफ़रतें हैं बस हमारे दरमियाँ 

जबसे देखा है उन्हें सजते हुए 
गिर रहीं हैं दिल पे मेरे बिजलियाँ 

और मैं किसको बताओ क्या कहूँ 
सबसे ज़्यादा हैं मुझी में खामियाँ 

आंखें, चेहरा सब बयाँ कर देते हैं 
इश्क़ को समझों नहीं तुम बेजुबाँ 

जब मुहब्बत का तेरा दावा है तो 
घूमता है होके फिर क्यों बदगुमाँ 

जो मेरा है वो ही तेरा है अगर 
किसको देता है बता फिर धमकियाँ 

- शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल' 

बहर: बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़ 
अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन 
वज़्न: 2122 - 2122 - 212 

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ग़ज़ल: जिनके लिए लड़ती है उनकी माँ की दुआएँ

उल्फत में इस तरह से निखर जाएंगे एक दिन
हम तेरी मौहब्बत में संवर जाएंगे एक दिन
एक तेरा सहारा ही बहुत है मेरे लिए
वर्ना तो मोतियों से बिखर जाएंगे एक दिन
हमने बना लिया है मुश्किलों को ही मंज़िल
यूँ ग़म की हर गली से गुज़र जाएंगे एक दिन
जिनके लिए लड़ती है उनकी माँ की दुआएँ
दुनिया भी डुबोये तो उभर जाएंगे एक दिन
यह दिल रहेगा आशना तब तक ही बसर है
वर्ना तेरे शहर से निकल जाएंगे एक दिन
- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी 'साहिल'

(बहर: हज़ज मुसम्मिन अख़रब मक़फूफ महज़ूफ)

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दिल्ली की जनता के अधिकार और वोट की कीमत आधी क्यों?

कोई सरकार सिर्फ किसी पार्टी की सरकार भर नहीं होती है बल्कि जनता की प्रतिनिधि होती है और वह अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्षेत्र में काम करती है, उसी के अनुरूप जनता में उसकी जवाबदेही तय होती है और उसी जवाबदेही के अनुसार किये गए कार्यों को लेकर अगले चुनाव में सरकार से संबधित पार्टी मैदान में उतरती है।   इसलिए लोकतंत्र का तकाज़ा यह है कि हर सरकार को उससे सम्बंधित कार्यक्षेत्र में कार्य करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हो, यही जनतंत्र अर्थात जनता का शासन कहलता है।

केंद्र सरकार ने तानाशाही दिखाते हुए दिल्ली सरकार के अधिकारों को समाप्त किया:

केंद्र सरकार ने  दिल्ली सरकार की राह में रोड़ा अटकाने की, कार्यों को रोकने की हर संभव कोशिश की। दिल्ली सरकार से सर्विस मैटर और एंटी करप्शन ब्रांच (ACB) को छीन लिया गया, जिसका मतलब यह हुआ कि अगर दिल्ली सरकार किसी काम को करती है तो उसके लिए अपनी पसंद के अधिकारी अपॉइंट नहीं कर सकती है। अगर अधिकारी काम करने में ढील बरते, काम नहीं करे तो उसके खिलाफ एक्शन नहीं ले सकती है और अगर कोई अधिकारी दिल्ली सरकार के काम करने में रिश्वत लेता है तो उसके खिलाफ जाँच और कार्यवाही नहीं कर सकती है। क्या इस तरह कोई सरकार काम कर सकती है?

सरकारी अधिकारी अगर सरकार की जगह विपक्षी पार्टी के अधीन होंगे तो जनता के काम कैसे होंगे:

सोचिये अगर किसी कॉलोनी में गन्दा पानी आ रहा है और अधिकारी इस समस्या पर ध्यान नहीं दे रहे हैं तो मुख्यमंत्री तक को यह पावर नहीं है कि अधिकारी के विरुद्ध एक्शन ले सके, जबकि जल बोर्ड दिल्ली सरकार के अधीन आता है। अगर सरकार को अपने अधीन आने वाले कार्यक्षेत्र में भी काम नहीं करने वाले या रिश्वत लेकर काम बिगाड़ने वाले सरकारी अधिकारियों पर कार्यवाही करने का अधिकार नहीं होगा तो जनता के काम कैसे होंगे? और फिर यह जनता का राज कहाँ से हुआ?

आप स्वयं विचार करिये कि उन अधिकारीयों/कर्मचारियों को नियुक्त करने का, काम नहीं करने या फिर रिश्वत लेकर काम खराब करने पर जांच करने का, एक्शन लेने का, अधिकार अगर जनता के द्वारा चुने जान प्रतिनिधियों की जगह विपक्षी पार्टी के पास हुआ तो फिर क्या जनता के मत का अपमान नहीं हुआ? और विपक्षी क्यों चाहेगा कि सरकार सही से काम करे? आखिर दिल्ली में यह नियम किस लॉजिक से बनाया गया है?

स्टाफ नियुक्त नहीं होने के कारण मौहल्ला क्लिनिक, हॉस्पिटल्स, स्कूलों सहित सभी विभागों में काम बाधित:

आज दिल्ली सरकार के 7०% से ज़्यादा पद खाली पड़ें हैं, अगर यह पद भर जाते हैं तो कई लाख लोगो को रोज़गार मिल सकता है और दिल्ली सरकार के कामों में कई गुना तेज़ी आ सकती है। पर नौकरियां भरने का अधिकार विपक्षी पार्टी को है और यही वजह है कि सरकार के हर डिपार्टमेंट में पद खाली हैं, काम बेहद धीमा है। कई मोहल्ला क्लिनिक बनकर कई महीनों से धूल चाट रहे हैं, कई स्कूलों में टीचर कम होने की वजह से पढ़ाई बाधित है, कई हॉस्पिटल्स में स्टाफ कम होने की वजह से मरीज़ों का नुकसान हो रहा है, इसकी जवाबदेही किसकी है?

सरकार को नीचा दिखाने के लिए बिना सबूत के गिरफ्तारियाँ और सीबीआई रेड की गईं:

दिल्ली की जनता द्वारा चुने गए 25 से ज़्यादा विधायकों को बिना किसी सबूत के सड़क से उठाकर जेल में डाल दिया, मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों पर सीबीआई रेड डलवाकर खुलेआम जनता द्वारा चुनी गई सरकार की बेइज़्ज़ती की गई, पर इसके बावजूद उनके ख़िलाफ़ कोई एक भी सबूत नहीं मिला। गोदी मीडिया द्वारा खूब जमकर ज़हर उगला गया, किसी भी विज़िबल सबूत के ना होने के बावजूद दोषारोपण ऐसे किया गया जैसे दोष साबित हो गया हो, पर हर बार अदालत में आरोपों के झूठा पाए जाने पर मीडिया को साँप सूंघ गया! उसने फिर एक भी स्टोरी नहीं चलाई और ना ही अपनी गलती स्वीकार की।

चुनी गई सरकार के कार्यों को को नियुक्त किये गए LG के माध्यम से रोका गया:

केंद्र सरकार द्वारा LG के माध्यम से दिल्ली की जनता के हर बिल को अटकाया गया, जाँच के नाम पर कई महीने तक दिल्ली सरकार की सारी फाइलें उठाकर दिल्ली के हर काम को रोक दिया गया। यह तो शुक्र है अदालत का जहाँ से न्याय मिला। विधायक बरी हुए और LG के नाम पर केंद्र की दादागिरी काफी हद तक ख़त्म हुई। यह तो सिर्फ दिल्ली की झलक है, देश में जो तानाशाही की गई, वोह तो इससे भी कहीं ज़्यादा बड़ी है।

फिर भी भाजपा समर्थक पूछते हैं कि तानाशाही कहाँ है? यह किस मुँह से केजरीवाल के इस तानाशाही को ख़त्म करने के विरुद्ध किये जा रहे संघर्ष पर सवाल उठा रहे हैं?

विपक्षी पार्टियों और करप्शन पर आम आदमी पार्टी का रुख:

अरविंद केजरीवाल ने कभी नहीं कहा कि कांग्रेस, भाजपा सहित सारी पार्टियों के सभी नेता करप्ट हैं। उन्होंने हमेशा कहा कि जिस भी नेता के विरुद्ध विज़िबल सबूत सामने आए हैं, उनकी लोकपाल जैसी संस्था से निष्पक्ष जाँच कराई जाए और तब तक सरकारी पद से ही नहीं बल्कि उनकी पार्टी द्वारा भी निलंबित किया जाए। आरोप साबित होने पर सख़्त से सख़्त सज़ा दी जानी चाहिए, या फिर बरी होने पर ही सरकारी या पार्टी पद पर वापिस लिया जाना चाहिए।

आम आदमी पार्टी ने अपने मंत्रियों के विरुद्ध भी विज़िबल सबूत सामने आने पर तुरंत कार्यवाही की थी, करप्शन ही नहीं बल्कि कैरेक्टर लेस होने के विज़िबल सबूत सामने आने पर तुरंत ही मंत्रिपद ही नहीं बल्कि पार्टी से भी निलंबित किया था, वहीँ एक पूर्व मंत्री को सीबीआई द्वारा जाँच में बरी होने पर ही पार्टी निलंबन ख़त्म किया है।

पर करप्शन खतरनाक होने के बावजूद ऐसा मुद्दा है जो देश से बड़ा नहीं है, अगर देश में लोकतंत्र समाप्त करने, संविधान को ख़त्म करने, संवैधानिक संस्थाओं को पंगु बनाने की कोशिशें होती हैं, देश को नफरत के नाम पर बाँटने की कोशिश होती है, तो देश के हर व्यक्ति और हर पार्टी का फर्ज है कि देश को बचाने की मुहिम में शामिल हो। उनमें से अगर कोई करप्ट भी होगा तो अगर संविधान बचेगा, लोकतंत्र बचेगा तो लोकपाल जैसी निष्पक्ष संस्था बनाकर, सख़्त नियम कानून और फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट बनाकर, उन्हें सज़ा दी जा सकती है।

करप्शन ख़त्म किया जा सकता है, दिल्ली सरकार ने तो बिना एसीबी जैसी किसी भी जांच एजेंसी के भी ऑटोप्रोसेस, डोर स्टेप डिलीवरी जैसी इनोवेटिव योजनाओं के द्वारा करप्शन पर रोक लगाई है, जबकि दिल्ली के सभी अधिकारियों की रिपोर्टिंग LG को कर दी गई थी।


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