नफरत की राजनीति और उसका परिणाम?

कल फिर बुलंदशहर में दो लोगों को नफरत की इस राजनीति ने लील लिया, केवल शक के कारण बवाल हुआ, भीड़ में खुद से सज़ा देने की मानसिकता को भरा गया, जिसका हर्जाना दो लोगो को अपनी जान की कुर्बानी देकर चुकाना पड़ा।

नफरत की राजनीति का मकसद यह होता है कि लोगों को आपस में दो जगह बाँट दिया जाए। उनके सोचने की ताकत को खत्म कर दिया जाए उनके अंदर इतनी नफरत भर दी जाए कि वह कत्ल जैसे संगीन क्राइम में भी अपना पराया देखने लगे। अगर कहीं कोई हादसा होता है, या कहीं एक्सीडेंट होता है तो एक आम इंसान का क्या कर्तव्य होता है, वह फौरन घायलों की मदद करता है। पर जब समाज के अंदर नफरत पैदा हो जाती है तो ऐसे हादसों में भी सबसे पहले यह देखा जाने लगता हैं कि घायल हिंदू है या मुसलमान है। जब हमारे अंदर यह सोच पैदा होने लगे तो हमें विचार करना पड़ेगा, क्योंकि हमारे अंदर से इंसानियत खत्म होती जा रही है और इंसानियत को खत्म किया जा रहा है, हमारे अंदर जहर भरा जा रहा है।
अगर आप नफरत की राजनीति करने वालों की गतिविधियों पर ध्यान देंगे तो आपको पता चलेगा कि यह लोग धार्मिक नहीं है बल्कि यह धार्मिक कट्टरता को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने वाले लोग हैं। अगर आप बड़े परिपेक्ष में देखेंगे तो इसके पीछे आर्थिक वजह होती हैं जिससे कि समाज के ऊपर अपना अधिपत्य जमाया जा सके और इसके पीछे की असल वजह यह है कि करप्शन आसानी के साथ किया जा सके। लोग उनकी कट्टरता पर चर्चा करेंगे, या फिर उनकी नफरत की बातों के खिलाफ होंगे, या नफरत भरी बातों में आकर उनके समर्थक होंगे, लेकिन कोई भी उनके करप्शन पर बात नहीं कर रहा होगा। यही वह चाहते हैं और यह काम पूरी तैयारी के साथ होता है।
यह लोग अपने समर्थकों को अंधभक्त इसलिए बनाते हैं जिससे कि अगर उनका करप्शन सामने आ भी जाए तो लोग उस पर विश्वास नहीं करें। ऐसे अंधभक्त अक्सर स्वभाव से कट्टरपंथी होते हैं, कट्टरपंथी होने का मतलब यह है कि धर्म या विचार के मामले में यह लोग सोचते हैं कि उनकी राय ही सर्वोपरि है और हर एक को उसी राय को हर हाल में मानना पड़ेगा। नफरत फैलाने वाले अक्सर ऐसी सोच वालों के दिमाग को अपना गुलाम बना लेते हैं। इस तरह की बातें फैलाई जाती हैं, झूठ को प्रपोगेट किया जाता है कि अंधभक्त या अंध समर्थक वही सोचते हैं जो कि नफरत की राजनीति करने वाले चाहते हैं।
आज हमारे समाज को कट्टरपंथ की जगह उदारवाद की जरूरत है, परेशानी का सबब यह है कि देश के 80 परसेंट उदारवादियों की आवाज केवल 20% कट्टरपंथियों की तेज आवाज के सामने मध्यम हो जाती है। बल्कि यूं कहूं कि छुप जाती है। हमें शांतिपूर्ण तरीके से उस आवाज को सामने लाना होगा और आज वह मेहनत करनी होगी की उदारवाद की आवाज जन जन तक पहुंच सके। देश में बदलाव लाने के लिए यह बेहद जरूरी है, खासतौर पर आज के नौजवानों को यह प्रयास करना होगा कि नफरत की राजनीति के पीछे छुपे मकसद को समझ कर समाज में जागरूकता की कोशिश करें।
अगर हमने आज कोशिश नहीं की तो हमारी आने वाली पुश्तें हमें माफ नहीं करेंगी। हमें आज यह तय करना होगा कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक सशक्त हिंदुस्तान देना चाहते हैं या फिर नफरत और भ्रष्टाचार में डूबा हुआ एक कमजोर देश…
हमें आज ही तय करना होगा इस नफरत की भेंट कोई जुनैद यह कोई अंकित सक्सेना फिर ना चढ़े। जरा सोचिए इन की मांओं ने कैसे पाल-पोसकर इन्हें बड़ा किया होगा, कैसे इनकी बहनों ने इनके नखरे उठाए होंगे, कैसे बाप ने इनके सुनहरे भविष्य के सपने देखे होंगे… और चंद पलों की नफरत ने इनसे सारे सपने छीन लिए। अगर हम आज चुप रहेंगे तो कल को माएँ बच्चे पैदा करते हुए इसलिए भी डरेगी कि कहीं यह भी नफरत के शिकार ना हो जाए, सोचिए और आवाज उठाइए।
और हां समाज को याद रखना पड़ेगा कि यह लड़ाई इस देश के आम नागरिक को खुद लड़नी है। इस देश से नफरत मिटाने की लड़ाई… और यह मोहब्बतों को बांटकर और नफरतों की साजिश करने वालों को कमजोर करके ही लड़ी जा सकती है। हमें नफरत करने वालों को यह एहसास दिलाना पड़ेगा कि उनकी डाल अब नहीं गलेगी। क्या तैयार है? अगर हां तो आज ही प्रयास शुरु कीजिए, सबसे पहले तो अपने जानने वालों में से ऐसे लोगों को समझाना शुरू कीजिए जो कट्टरपंथ की राह में आगे बढ़ रहे हैं।
जय हिंद!

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महिला अधिकारों का दमन क्यों होता है?

महिला अधिकारों के हनन के अनेक कारण हो सकते हैं, पर मेरे हिसाब से महिलाओं में शिक्षा तथा आर्थिक सशक्तिकरण की कमी इसके प्रमुख कारण हैं और इनसे भी बड़ा एक वजह है पौरुषीय दंभ। आइये इसी पर चर्चा करते हैं।



शिक्षा के साथ साथ महिलाओं के अधिकारों के दमन में आर्थिक सशक्तिकरण होना या नहीं होना भी एक महत्वपूर्ण कारक होता है। गरीब परिवारों में महिलाएं भी परिवार को चलाने के लिए उपलब्ध आय के स्रोतों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अगर आप देखेंगे तो गरीब किसान परिवारों में महिलाएं फसलों की बुआई तथा कटाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, वहीं गरीब मज़दूर परिवारों में भी महिलाएँ मजदूरी करके परिवार चलाने में अपनी भूमिका निभाती हैं।

वहीं दूसरी तरफ आर्थिक तौर पर मज़बूत अर्थात अमीर परिवारों में भी महिलाएं आर्थिक तौर पर सशक्त होती हैं। और यही कारण है कि गरीब तथा अमीर परिवारों में महिला अधिकारों का दमन उतने बड़े रूप में नहीं होता जितना कि मध्य आय वर्ग में होता है। मध्य आय वर्ग ही वोह समूह है जहाँ महिलाओं के अधिकारों का सबसे ज़्यादा दमन होता है।

इसके अलावा हमारा सामाजिक तानाबाना भी महिला अधिकारों के दमन का जिम्मेदार होता है। एक लडकी अपने माता-पिता के घर मे पली-बढ़ी होती है, और एक कम्फर्ट लेवल का जीवन जी रही होती है, पर शादी के बाद उसे ऐसे घर मे जाना होता है, जिसके बारे में वोह ज़्यादा नहीं जानती। उसे वहाँ ऐसे परिवार के सदस्यों के साथ रहना होता है जो पहले से ही उस परिवार का हिस्सा होते हैं। ऐसे में नए घर के सदस्यों की सोच और नई बहु की सोच में बहुत बड़ा गैप आना स्वाभाविक है। नए परिवार में हर कोई दूसरों को अपने हिसाब से चलना चाहता है, यही घर के क्लेश की वजह भी बनती है और यहीं से महिला अधिकारों के दमनचक्र की शुरुआत भी हो सकती है।

आज समाज को इस व्यवस्था का हल ढूंढना होगा। ऐसा क्यों होता है कि शादी के बाद लड़की ही अपना घर छोड़कर लड़के के घर जाकर रहे? क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि दोनों एक-दूसरे के घर-परिवार में जाकर रहने की जगह मिलकर एक तीसरा घर बसाएं। पर इस व्यवस्था में हमें लड़के और लड़की के बुजुर्ग माता-पाता के भरण-पोषण और बुढ़ापे में ज़रूरी केयर कैसे मिले, इसके ऊपर भी विचार करना पड़ेगा।

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देश का सबसे बड़े मुद्दा - हमारे न्यूज़ चैनल्स


काफी दिनों से सैफ और करीना खासे परेशान चल रहे थे और उन की परेशानी का सबब था कि देश के इकलौते होनहार बालक तैमूर को पोटी नहीं आना, कई दिनों तक पूरा घर ही नहीं बल्कि पूरा देश परेशान था और देश के न्यूज़ चैनल इस बड़े हादसे को पल-पल कवर कर रहे थे, वोह हम तक यह खबर पहुंचाते रहे कि तैमूर इस वजह से दूध भी नहं पी रहे हैं, जब भी तैमूर को टॉयलेट की तरफ ले जाया जाता था तो हमारे न्यूज़ चैनल चौकस होकर खुशखबरी का घंटो एहसास दिलाते रहते थे, हालाँकि 2 दिन तक देश को मायूस होना पड़ा था, पर आखिरकार 2 दिन बाद तैमूर की पोटी आने की खुशखबरी को सबसे पहले सबसे तेज़ चैनल्स होने का दवा करने वाले न्यूज़ चैनल्स ने सबसे पहले हम तक पहुंचा दिया और देश ने चैन की सांस ली, हालाँकि उन दिनों १३ बैंकों में घोटाले की छोटी-मोती खबर भी यदा-कड़ा सुनाई पड़ी, पर इन छोटी-मोटी ख़बरों पर कौन घंटों बर्बाद करता है?

हमारे न्यूज़ चैनल्स हमेशा देश से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करते हैं मसलन आईपीएल में कौन जीता, किस टीम ने कैसे पार्टी करी, सलमान खान गिरफ्तार होकर रातभर सो नहीं सके, उन्होंने दाल-रोटी नहीं खाई... और हाँ चैनल्स ने इतनी महत्वपूर्ण खबर को भी हम तक पहुँचाया कि उन्होंने पकोड़े खाए, सोचिये देश का कितना उद्धार हुआ होगा जब हमें यह पता चला कि उन्हें ज़मानत मिल गई और घर पहुंचकर वह अपने छत पर आकर फैंस से मिले और उन्हें देश को आगे ले जाने का सन्देश दिया। अगर न्यूज़ चैनल्स ने यह नहीं बताया होता तो आज देश कितना पीछे चला गया होता, इसका आपको अंदाज़ा भी नहीं है.

अभी कल-परसों की बात है, जबकि कांग्रेस के नेता उपवास शुरू करने से पहले सरगी के तौर पर छोले-भठूरे खा रहे थे, आखिर देश के इतने बड़े नुकसान की खबर हमारे न्यूज़ चैनल्स कैसे छोड़ सकते थे, घंटों इस पर विमर्श हुआ, एक-एक छोले और भठूरे का हिसाब लिया गया, हालाँकि चैनल्स 1-2 मिनट के लिए यह भी दिखाया कि उत्तर प्रदेश में जिस युवती का बलात्कार हुआ था, उसे इंसाफ की जगह उसके पिता की हिरासत में हत्या कर दी गई, पर यह न्यूज़ इतने काम की नहीं थी, कौन सा यह हमारे साथ हो रहा था जो हम देखें, हमें क्या फर्क पड़ता है जो किसी को इन्साफ मिले या ना मिले, हमें तो अपना पिज़ा आधे घंटे में मिल जाता है और फिर जो कम्पनियाँ या फिर पार्टियां विज्ञापनों के लिए पैसा देती हैं उनके पक्ष में खबर दिखाना हमारे न्यूज़ चैनल्स का धर्म है, आपने वोह कहावत नहीं सुनी कि ग्राहक ही भगवन होता है.... देखा हमारे न्यूज़ चैनल्स अपनी कर्म के प्रति कितने सच्चे होते हैं? 


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