इक पैकर-ए-जमाल नज़र आ रहा था वोह
जोड़े में लाल, ‘लाल’ नज़र आ रहा था वोह
हर ज़ुबां पर तारीफ थी रूख्सार-ए-यार की
'साहिल' तेरा अशआर नज़र आ रहा था वोह
औरों की तरह हम भी खिल्द-ए-ख्वाह हैं यारो
मेरी नज़र में खिल्द नज़र आ रहा था वोह
महफिल में सब मसरूफ थे मेरी ऐबज़ूई में
मायूस सा मगर क्यों नज़र आ रहा था वोह
इल्म दरसे-नसीहत का हमें याद कराके
रू-पोश धीरे-धीरे होता जा रहा था वोह
चेहरे से तो खुशहाल नज़र आ रहे थे हम
आसूदगी दिल से मिटाता जा रहा था वोह
आसूदगी दिल से मिटाता जा रहा था वोह
मन्ज़र ज़रा नाशादे-मुसल्लत था जनाज़े पर
पर खुशी इश्क़-ए-फराग़त मना रहा था वोह
हर निगाह घूमती थी मुक़ामें-अय्यार को
इतना हसीन यार नज़र आ रहा था वोह
- शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'
शब्दार्थ:
पैकर = टुकड़ा
जमाल = ऐसा हुस्न / ख़ूबसूरती जिसे जिस कोण से देखो तो पहले से और भी अधिक खुबसूरत नज़र आए.
लाल = एक कीमती पत्थर का नाम
खिल्द-ए-ख्वाह = स्वर्ग चाहने वाला
खिल्द = स्वर्ग, जन्नत
मसरूफ = व्यस्त
ऐबज़ूई = ऐब निकलना, बुराई करना
इल्म = ज्ञान
दरसे-नसीहत = अच्छी बातों का पाठ
रू-पोश = गायब
आसूदगी = संतोष
नाशाद = दुःख
मुसल्लत = प्रभावी
फराग़त = समाप्त (होना / करना)
मुक़ाम = स्थान, पद इत्यादि
अय्यार = चालाक / बेवक़ूफ़ बनाने वाला / रूप बदलने वाला
keywords: gazal, hindi, urdu Ghazal
shah-nawaj ji achchhe shabdon ka prayog
ReplyDeleteevam shabdon ki jaankri ke liye aabhar
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
vaah vaah
ReplyDeleteBehtrin Ghazal "पैकरे-जमाल". Wah kya baat hai.
ReplyDeleteVAAH VAAH
ReplyDeleteJAY HO
भाई शाहनवाज जी आपकी पोस्ट पढ़कर तो हम उर्दू भी मुफ्त में सिख जायेंगे इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है / हम नांगलोई पहुँच चुके हैं ,आप सब के स्वागत के लिए आप सब कहाँ हैं ?
ReplyDeleteWAH WAH
ReplyDeleteवाह शायर साहब वाह
ReplyDeleteअच्छी रचना.... साधुवाद...
ReplyDeletewaah ji waah
ReplyDeleteUru ke bahut kehre shabdo ka prayog kiya hai aapne, lekin achhi baat yeh hai ki unka matlab bhi likh diya hai. Very Nice.
ReplyDeleteUru=Urdu
ReplyDeletemaf karna, Urudu likhna chah raha tha galti se Uru likha gaya.
Waah Waah
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