अब यहां शमाँ से परवाने दूर रहते हैं,
यादे महबूबी से दीवाने दूर रहते हैं।
बात अन्जानों की क्या कीजिए इस महफिल में,
नफरत की आग में अपने ही चूर रहते हैं।
प्यार के नाम से मशहूर थी बस्ती अपनी,
अब तो बारूद के गुब्बार घिरे रहते हैं।
हर तरफ आग है, शोलें है और नफरत है,
कौन जाने यहाँ कि 'अमन' किसे कहते हैं।
हर कोई खोद रहा नींव जिस ईमारत की,
उस इमारत में वोह सब के सब ही रहते है।
नज़र लगी है कुछ नापाक खयालातों की,
वीराना देख के सब लोग यही कहते हैं।
कभी तो आएंगी खुशियां हमारे आंगन में,
इसी उम्मीद पे ‘साहिल’ ग़मों को सहते हैं।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'
यादे महबूबी से दीवाने दूर रहते हैं।
बात अन्जानों की क्या कीजिए इस महफिल में,
नफरत की आग में अपने ही चूर रहते हैं।
प्यार के नाम से मशहूर थी बस्ती अपनी,
अब तो बारूद के गुब्बार घिरे रहते हैं।
हर तरफ आग है, शोलें है और नफरत है,
कौन जाने यहाँ कि 'अमन' किसे कहते हैं।
हर कोई खोद रहा नींव जिस ईमारत की,
उस इमारत में वोह सब के सब ही रहते है।
नज़र लगी है कुछ नापाक खयालातों की,
वीराना देख के सब लोग यही कहते हैं।
कभी तो आएंगी खुशियां हमारे आंगन में,
इसी उम्मीद पे ‘साहिल’ ग़मों को सहते हैं।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'
Keywords: Ghazal, India, Shama, आतंकवाद, हिंदी
बहुत ही बढ़िया सन्देश ,धन्यवाद आपका !
ReplyDeleteहर कोई खोद रहा नींव जिस ईमारत की,
ReplyDeleteउस इमारत में वह, सब के सब ही रहते है।
इनको नहीं मालूम की हम इन नींव खोदने वालों का भी इंसानियत के नाते भला चाहते हैं .
क्या करें ?इनकी दुर्दशा लिखी है ये इतना भी नहीं जानते हैं /
बहुत बढ़िया शाहनवाज भाई जी
ReplyDelete"बेगानों का क्या शिकवा करू मैं
मुझे मेरे अमन के गुलशन को आग लगाने वाले अपनों से शिकायत जरुर हैं "
मुझे पसन्द आई तो पसंद के बटन पे चटकारा भी लगा दिया हैं
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ReplyDeleteशाहनवाज भाई जी
ReplyDeleteमेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
क्या गरीब अब अपनी बेटी की शादी कर पायेगा ....!
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/05/blog-post_6458.html
आप अपनी अनमोल प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित कर हौसला बढाईयेगा
सादर ।
नज़र लगी है कुछ नापाक खयालातों की,
ReplyDeleteवीराना देख के सब लोग यही कहते हैं।
कभी तो आएंगी खुशियां हमारे आंगन मे
इसी उम्मीद पे ‘साहिल’ ग़मों को सहते हैं।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
कभी तो आएंगी खुशियां हमारे आंगन में,
ReplyDeleteइसी उम्मीद पे ‘साहिल’ ग़मों को सहते हैं।
जी हाँ यही एक उम्मीद है
बेहतरीन
बात अन्जानों की क्या कीजिए इस महफिल में,
ReplyDeleteनफरत की आग में अपने ही चूर रहते हैं।
कभी तो आएंगी खुशियां हमारे आंगन में,
इसी उम्मीद पे ‘साहिल’ ग़मों को सहते हैं।
behadd khoobsurat ashaar bane hain..
aapke umda khayalaat ko salaam...
tasveer bhi bol uthi hai...
shukriya...!!
nice
ReplyDeleteबात अन्जानों की क्या कीजिए इस महफिल में,
ReplyDeleteनफरत की आग में अपने ही चूर रहते हैं।
अच्छी ग़ज़ल लिखी है शाहनवाज़ जी.
ReplyDelete"नज़र लगी है कुछ नापाक खयालातों की,
ReplyDeleteवीराना देख के सब लोग यही कहते हैं।
कभी तो आएंगी खुशियां हमारे आंगन में,
इसी उम्मीद पे ‘साहिल’ ग़मों को सहते हैं।"
जी बिलकुल ऐसा ही है जी.............
दर्द को दिखा उस से लड़ने का इशारा बहुत बढ़िया किया है जी आपने..........
कुंवर जी,
nice post
ReplyDeleteआप एक अच्छे लेखक शायर कवि और पत्रकार है आप सामाजिक समस्याओ को बहुत अच्छे ढंग से पेश करते है
ReplyDeleteआपके सामाजिक समस्याओ की तरफ ध्यान दिलाने का तरीका काफी अच्छा है वाकई आप कुशल लेखक कवि शायर और पत्रकार है
ReplyDeleteइसपर मुझे कुछ और याद आ रहा है,
ReplyDeleteचमक रहा है जो दामन पे दोनों फिरकों के
बगौर देखो ये इंसान का लहू तो नहीं!
(कैफ़ी आज़मी से माज़रत के साथ, उनके शेर में मैंने इस्लाम की जगह इंसान कर दिया है.)
Bahut hi sundar gazal. Aap jaise log lage rahe to ek tin khushiyan hamare angan mein zarur aegi.
ReplyDeleteवाह! तुम्हारी.... बात ही अलग है.... भाई.... बहुत शानदार....
ReplyDeleteइसे कहते है रचना। बहुत खूब।
ReplyDeleteZINDABAAD
ReplyDeleteशानदार लिखा है शाह जी.
ReplyDeleteकभी तो आएंगी खुशियां हमारे आंगन में,
इसी उम्मीद पे ‘साहिल’ ग़मों को सहते हैं।
आपने ग़ज़ल में अपने अन्दर का दुःख पूरी तरह दर्शा दिया है.
ReplyDeleteअब यहां शमाँ से परवाने दूर रहते हैं,
यादे महबूबी से दीवाने दूर रहते हैं।
बात अन्जानों की क्या कीजिए इस महफिल में,
नफरत की आग में अपने ही चूर रहते हैं।
देख तेरे इनसान की हालत,
ReplyDeleteक्या हो गई भगवान,
कितना बदल गया इनसान.
कहीं पे झगड़ा, कहीं पे दंगा,
नाच रहा नर होकर नंगा,
सूरज न बदला, चंदा न बदला,
लेकिन कितना बदल गया इनसान...
जय हिंद...
हर कोई खोद रहा नींव जिस ईमारत की,
ReplyDeleteउस इमारत में वह, सब के सब ही रहते है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
इस रचना को हमें पढवाने के लिये शुक्रिया जी
प्रणाम
खूब कहा है!!लेकिन अक्ल हैरान है कि इसे किस सिन्फ़ के ज़मरे में रखूँ.और गर इस से फ़रार ले लूं तो अंदाज़े-बयाँ में शायरी साफगोई से अहम और ज़रूरी बात रख जाती है.
ReplyDeleteशमाँ को शमा या शम'अ कर लें.
Disgusting Meaning in Hindi
ReplyDeleteElaborate Meaning in Hindi
Conveyance Meaning in Hindi
Optimistic Meaning in Hindi
Conflict Meaning in Hindi
Kindly Meaning in Hindi
ourage Meaning in Hindi
Humble Meaning in Hindi
Essential Meaning in Hindi
ReplyDeleteAdmire Meaning in Hindi
Admirer Meaning in Hindi
Negotiate Meaning in Hindi
Crush Meaning in Hindi
Troll Meaning in Hindi
Abandon Meaning in Hindi