(दैनिक हरिभूमि के आज [10 अगस्त] के संस्करण में प्रष्ट न. 4 पर मेरा लेख)
आज सारे विश्व को आतंकवाद ने घेरा हुआ है। अलग-अलग देशों में हिंसक गतिविधियों के अनेकों कारण हो सकते हैं, परन्तु आमतौर पर यह प्रतिशोध की भावना से शुरू होती है। प्रतिशोध के मुख्यतः दो कारण होते है, पहला कारण किसी वर्ग विशेष अथवा सरकार से अपेक्षित कार्यों का ना होना तथा दूसरा कारण ऐसे कार्यों को होना होता है जिनकी अपेक्षा नहीं की गई थी। मगर आमतौर पर ऐसे प्रतिशोधिक आंदोलन अधिक समय तक नहीं चलते हैं। हाँ शासक वर्ग द्वारा हल की जगह दमनकारी नीतियां अपनाने के कारणवश अवश्य ही यह लम्बे समय तक चल सकते है। ऐसे आंदोलनों में अक्सर अर्थिक हितों की वजह से बाहरी हस्तक्षेप और मदद जुड़ जाती है और यही वजह बनती है प्रतिशोध के आतंकवाद के स्तर तक व्यापक बनने की। इन हितों में राजनैतिक, जातीय, क्षेत्रिए तथा धार्मिक हित शामिल होते हैं। कोई भी हिंसक आंदोलन धन एवं हथियारों की मदद मिले बिना फल-फूल नहीं सकता है। बाहरी शक्तियों के सर्मथन और धन की बदौलत यह आंदोलन आंतकवाद की राह पर चल निकलते हैं और सरकार के लिए भस्मासुर बन जाते हैं। तब ऐसे आंदोलन क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं रह जाते, बल्कि संगठित होकर सशक्त व्यापार की तरह सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ाए जाते हैं।
आतंकवाद के व्यापक स्तर पर बढ़ने में बेरोज़गारी भी काफी हद तक सहायक होती है। बेरोज़गार के साथ-साथ विलासिता का जीवन जीने के इच्छुक लोग भी असानी से आतंकवादी संगठनों के शिकार बन जाते हैं। परिवार के भरण-पोषण की चिंता तथा भोग विलास की आशा इन्सान को आसानी से हैवानियत की राह पर ले चलती है। वहीं हवाला का देशी-विदेशी नेटवर्क आसानी से आतंकवादी संगठनों के पैसे की आवश्यकता को पूरा कर देता है। आतंकवाद के पोषकों में एक और अहम कड़ी है 'भ्रष्टाचार', इसके बिना आतंकवाद के नेटवर्क का पूरा होना मुश्किल है। आतंकवाद से लड़ाई में यही वह क्षेत्र जिसमें सबसे अधिक मेहनत की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार के कारण ही आतंकवादी संगठन बहुत आराम से सुरक्षा ऐजेंसियों को धौका दे देते हैं। हथियार से लेकर वाहन तक सभी सुविधाएं पैसे के बल पर आसानी से मुहैया हो जाती हैं।
सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि जिस समुदाय के भी लोग ऐसे मामलों में संलिप्त पाए जाते हैं, उन्हे लगता है कि आरोपी बेकसूर हैं। इस मामले में सुरक्षा ऐजेंसियों तथा सरकार की नियत पर अविश्वास की भावना आग में घी का काम करती है। इसी के चलते समुदायों के नेतागण अन्जाने में ही आतंकवादी संगठनों की मदद कर देते हैं। सुरक्षा एजेंसियों की लापरवाही तथा इस क्षेत्र में फैला भ्रष्टाचार भी ऐसी धारणाओं के बनने में सहायक होता है। पिछली आतंकवादी घटनाओं पर नज़र दौड़ाएं तो पता चलता है कि हड़बड़ी में की गई गिरफ्तारियां तथा पूरे सबूत अथवा सही जांच के अभाव में बहुत से आरोपी बरी हुए हैं। इसके अलावा जो गिरफ्तार होते हैं उनके खिलाफ सबूत ना होने की अफवाहें फैला दी जाती हैं। ऐसी घटनाओं के कारणवश लोगों के हृदय में सुरक्षा ऐजेंसियों के विरूद्ध धारणाए घर बना लेती हैं, जिसका फायदा आतंकवादी संगठन बखुबी उठा लेते हैं।
आज कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हजारों ऐसे आतंकवादी संगठन अपनी दुकाने चला रहे हैं। एक तरफ जहाँ कई संगठन धर्म के नाम पर तो वहीँ दूसरी तरफ नक्सलवादी तथा माओवादी संगठन क्षेत्र, भाषा तथा सामाजिक हित के नाम पर हिंसा फैला रहे हैं. धर्म के नाम पर पनप रहे आतंकवादी वारदातों में संसद भवन पर हमले का नाम सबसे ऊपर आता है, क्योंकि यह देश की अस्मिता और संप्रभुता पर हमला था। वहीँ दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, अजमेर, जयपुर, मालेगांव, वाराणसी, हैदराबाद जैसे देश के विभिन्न शहरों में अनगिनत हमलों का दंश देश झेलता आ रहा है। इस कड़ी में पाकिस्तानी नागरिकों द्वारा मुंबई में हुए हमले को सबसे हिंसक आतंकवादी घटना के रूप याद किया जाता है। महाराष्ट्र, झारखण्ड तथा वेस्ट बंगाल समेत देश के कई राज्यों में माओवादी हमले भी सरकार का सिरदर्द बन गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते धार्मिक आतंकवाद में कुछ कमी दिखाई दी तो माओवादी देश के लिए बहुत बड़ा खतरा बन कर उभर रहे हैं.
बात जब धर्म का नाम लेकर फैलने वाले आतंकवादी संगठनो की होती है तो गहन विश्लेषण से पता चलता है कि ऐसे संगठन धार्मिक ग्रन्थों का अपने हिसाब से गलत विश्लेषण करके धर्म की सही समझ नहीं रखने वाले लोगों को अपने जाल में फांस लेते हैं। इसलिए धार्मिक संस्थाओ की भूमिका बढ़ जाती है, आज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी संस्थाएं धार्मिक ग्रंथो की सही-सही जानकारियों से लोगो को अवगत कराएं। मेरे विचार से यह आतंकवादी संगठनो की जड़ पर प्रहार है।
आंदोलनों चाहे छोटे स्तर पर हों अथवा आतंकवादी रूप ले चुके हों, इनको केवल शक्ति बल के द्वारा नहीं दबाया जा सकता है, बल्कि जितना अधिक शक्ति बल का प्रयोग किया जाता है उतनी ही अधिक ताकत से ऐसे आंदालन फल-फूलते हैं। आतंकवादी संगठन बल प्रयोग को लोगो के सामने अपने उपर ज़ुल्म के रूप में आसानी से प्रस्तुत करके और भी अधिक आसानी से लोगों को बेवकूफ बना लेते हैं। आतंकवादी तथा हिंसक आंदोलनों के मुकाबले के लिए सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा बल प्रयोग जैसे सभी विकल्पों को एक साथ लेकर चलना ही सबसे बेहतर विकल्प है। वहीं हमारा भी यह कर्तव्य बनता है कि पूरे समाज में आतंकवाद के खिलाफ जागरूकता फैलाई जाए। आज ऐसी आतंकवादी सोच के खिलाफ पूरे समाज को एकजुट होकर कार्य करने की आवश्यकता है।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
आज सारे विश्व को आतंकवाद ने घेरा हुआ है। अलग-अलग देशों में हिंसक गतिविधियों के अनेकों कारण हो सकते हैं, परन्तु आमतौर पर यह प्रतिशोध की भावना से शुरू होती है। प्रतिशोध के मुख्यतः दो कारण होते है, पहला कारण किसी वर्ग विशेष अथवा सरकार से अपेक्षित कार्यों का ना होना तथा दूसरा कारण ऐसे कार्यों को होना होता है जिनकी अपेक्षा नहीं की गई थी। मगर आमतौर पर ऐसे प्रतिशोधिक आंदोलन अधिक समय तक नहीं चलते हैं। हाँ शासक वर्ग द्वारा हल की जगह दमनकारी नीतियां अपनाने के कारणवश अवश्य ही यह लम्बे समय तक चल सकते है। ऐसे आंदोलनों में अक्सर अर्थिक हितों की वजह से बाहरी हस्तक्षेप और मदद जुड़ जाती है और यही वजह बनती है प्रतिशोध के आतंकवाद के स्तर तक व्यापक बनने की। इन हितों में राजनैतिक, जातीय, क्षेत्रिए तथा धार्मिक हित शामिल होते हैं। कोई भी हिंसक आंदोलन धन एवं हथियारों की मदद मिले बिना फल-फूल नहीं सकता है। बाहरी शक्तियों के सर्मथन और धन की बदौलत यह आंदोलन आंतकवाद की राह पर चल निकलते हैं और सरकार के लिए भस्मासुर बन जाते हैं। तब ऐसे आंदोलन क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं रह जाते, बल्कि संगठित होकर सशक्त व्यापार की तरह सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ाए जाते हैं।
आतंकवाद के व्यापक स्तर पर बढ़ने में बेरोज़गारी भी काफी हद तक सहायक होती है। बेरोज़गार के साथ-साथ विलासिता का जीवन जीने के इच्छुक लोग भी असानी से आतंकवादी संगठनों के शिकार बन जाते हैं। परिवार के भरण-पोषण की चिंता तथा भोग विलास की आशा इन्सान को आसानी से हैवानियत की राह पर ले चलती है। वहीं हवाला का देशी-विदेशी नेटवर्क आसानी से आतंकवादी संगठनों के पैसे की आवश्यकता को पूरा कर देता है। आतंकवाद के पोषकों में एक और अहम कड़ी है 'भ्रष्टाचार', इसके बिना आतंकवाद के नेटवर्क का पूरा होना मुश्किल है। आतंकवाद से लड़ाई में यही वह क्षेत्र जिसमें सबसे अधिक मेहनत की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार के कारण ही आतंकवादी संगठन बहुत आराम से सुरक्षा ऐजेंसियों को धौका दे देते हैं। हथियार से लेकर वाहन तक सभी सुविधाएं पैसे के बल पर आसानी से मुहैया हो जाती हैं।
सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि जिस समुदाय के भी लोग ऐसे मामलों में संलिप्त पाए जाते हैं, उन्हे लगता है कि आरोपी बेकसूर हैं। इस मामले में सुरक्षा ऐजेंसियों तथा सरकार की नियत पर अविश्वास की भावना आग में घी का काम करती है। इसी के चलते समुदायों के नेतागण अन्जाने में ही आतंकवादी संगठनों की मदद कर देते हैं। सुरक्षा एजेंसियों की लापरवाही तथा इस क्षेत्र में फैला भ्रष्टाचार भी ऐसी धारणाओं के बनने में सहायक होता है। पिछली आतंकवादी घटनाओं पर नज़र दौड़ाएं तो पता चलता है कि हड़बड़ी में की गई गिरफ्तारियां तथा पूरे सबूत अथवा सही जांच के अभाव में बहुत से आरोपी बरी हुए हैं। इसके अलावा जो गिरफ्तार होते हैं उनके खिलाफ सबूत ना होने की अफवाहें फैला दी जाती हैं। ऐसी घटनाओं के कारणवश लोगों के हृदय में सुरक्षा ऐजेंसियों के विरूद्ध धारणाए घर बना लेती हैं, जिसका फायदा आतंकवादी संगठन बखुबी उठा लेते हैं।
आज कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हजारों ऐसे आतंकवादी संगठन अपनी दुकाने चला रहे हैं। एक तरफ जहाँ कई संगठन धर्म के नाम पर तो वहीँ दूसरी तरफ नक्सलवादी तथा माओवादी संगठन क्षेत्र, भाषा तथा सामाजिक हित के नाम पर हिंसा फैला रहे हैं. धर्म के नाम पर पनप रहे आतंकवादी वारदातों में संसद भवन पर हमले का नाम सबसे ऊपर आता है, क्योंकि यह देश की अस्मिता और संप्रभुता पर हमला था। वहीँ दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, अजमेर, जयपुर, मालेगांव, वाराणसी, हैदराबाद जैसे देश के विभिन्न शहरों में अनगिनत हमलों का दंश देश झेलता आ रहा है। इस कड़ी में पाकिस्तानी नागरिकों द्वारा मुंबई में हुए हमले को सबसे हिंसक आतंकवादी घटना के रूप याद किया जाता है। महाराष्ट्र, झारखण्ड तथा वेस्ट बंगाल समेत देश के कई राज्यों में माओवादी हमले भी सरकार का सिरदर्द बन गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते धार्मिक आतंकवाद में कुछ कमी दिखाई दी तो माओवादी देश के लिए बहुत बड़ा खतरा बन कर उभर रहे हैं.
बात जब धर्म का नाम लेकर फैलने वाले आतंकवादी संगठनो की होती है तो गहन विश्लेषण से पता चलता है कि ऐसे संगठन धार्मिक ग्रन्थों का अपने हिसाब से गलत विश्लेषण करके धर्म की सही समझ नहीं रखने वाले लोगों को अपने जाल में फांस लेते हैं। इसलिए धार्मिक संस्थाओ की भूमिका बढ़ जाती है, आज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी संस्थाएं धार्मिक ग्रंथो की सही-सही जानकारियों से लोगो को अवगत कराएं। मेरे विचार से यह आतंकवादी संगठनो की जड़ पर प्रहार है।
आंदोलनों चाहे छोटे स्तर पर हों अथवा आतंकवादी रूप ले चुके हों, इनको केवल शक्ति बल के द्वारा नहीं दबाया जा सकता है, बल्कि जितना अधिक शक्ति बल का प्रयोग किया जाता है उतनी ही अधिक ताकत से ऐसे आंदालन फल-फूलते हैं। आतंकवादी संगठन बल प्रयोग को लोगो के सामने अपने उपर ज़ुल्म के रूप में आसानी से प्रस्तुत करके और भी अधिक आसानी से लोगों को बेवकूफ बना लेते हैं। आतंकवादी तथा हिंसक आंदोलनों के मुकाबले के लिए सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा बल प्रयोग जैसे सभी विकल्पों को एक साथ लेकर चलना ही सबसे बेहतर विकल्प है। वहीं हमारा भी यह कर्तव्य बनता है कि पूरे समाज में आतंकवाद के खिलाफ जागरूकता फैलाई जाए। आज ऐसी आतंकवादी सोच के खिलाफ पूरे समाज को एकजुट होकर कार्य करने की आवश्यकता है।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords: corruption, Nexals, Religion, Terrorism, आतंकवाद, धार्मिक ग्रंथ, प्रतिशोध, माओवाद, मुंबई हमला, विश्व
तथ्यों पर आधारित बढ़िया...खोजपूर्ण आलेख
ReplyDeleteसुन्दर और विचारपूर्ण आलेख।
ReplyDeleteन्यायायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता का आभाव, न्याय में देरी, शासन और प्रशासन का पक्षपातपूर्ण रवैया आदि कुछ तत्त्व हैं जो आतंकवाद पैदा करने अथवा उसको बढ़ावा देने में सहायक होते हैं. मिसाल के तौर पर फ़ोर्स के ७५ जवानों के क़त्ल के ज़िम्मेदार संगठन के साथ नरमी का बर्ताव किया जाना और दूसरी तरफ पुलिस पर पत्थर फेंकने के जुर्म में ५० लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाना नाइंसाफ़ी का नमूना है. इस प्रकार के रवैये से आतंकवाद पर अंकुश लग सकेगा ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता.
ReplyDeletehttp://haqnama.blogspot.com/2010/08/terrorism-and-its-solution-sharif-khan.html
बेहद सच्चा लेख
ReplyDeleteधन्यवाद राजीव जी, प्रवीण जी और महक भाई. मेरा यह मानना है कि आतंकवादी सोच के खिलाफ पूरे समाज को एकजुट होकर कार्य करने की आवश्यकता है। इसके लिए सबसे पहला और बुनियादी कार्य आपसी भाईचारे को बढ़ाना तथा भ्रष्टाचार को समाप्त करना है।
ReplyDeleteNice thoughts
Deleteसुन्दर लेख...
ReplyDeleteएक बेहतरीन आलेख
ReplyDeleteआतंकवाद : कारण और निवारण पर बढिया नजर है
प्रणाम स्वीकार करें
Nice Post
ReplyDeleteसटीक लेख
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पढ़े drayazahmad.blogspot.com
ReplyDeleteतिशोध के मुख्यतः दो कारण होते है, पहला कारण किसी वर्ग विशेष अथवा सरकार से अपेक्षित कार्यों का ना होना तथा दूसरा कारण ऐसे कार्यों को होना होता है जिनकी अपेक्षा नहीं की गई थी। मगर आमतौर पर ऐसे प्रतिशोधिक आंदोलन अधिक समय तक नहीं चलते हैं। हाँ शासक वर्ग द्वारा हल की जगह दमनकारी नीतियां अपनाने के कारणवश अवश्य ही यह लम्बे समय तक चल सकते है। ऐसे आंदोलनों में अक्सर अर्थिक हितों की वजह से बाहरी हस्तक्षेप और मदद जुड़ जाती है और यही वजह बनती है प्रतिशोध के आतंकवाद के स्तर तक व्यापक बनने की। इन हितों में राजनैतिक, जातीय, क्षेत्रिए तथा धार्मिक हित शामिल होते हैं।
ReplyDeleteआज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी संस्थाएं धार्मिक ग्रंथो की सही-सही जानकारियों से लोगो को अवगत कराएं। मेरे विचार से यह आतंकवादी संगठनो की जड़ पर प्रहार है।
ReplyDeleteबेहद , क्या कहते हैं हाँ !! to the point आपने बात कही है.
mind blowing :)
ReplyDeleteek kadwa sach udela hai shah nawaaz ji....
aatank-waadi peda nahi hote, balki banaye jaate hai majburiyo dwara...
well great thought...isse tarah likhte rahiye...
god bless you...
Nice post
ReplyDeleteबहुत ही उत्तम विचार ,सार्थक प्रस्तुती ...आज समाज में अविश्वास फ़ैल नहीं रहा है बल्कि फैलाया जा रहा है जिससे एकजुटता को बनने से रोका जा सके और ऐसा वो लोग कर रहें हैं जो भ्रष्ट और लालची हैं | इस दिशा में गंभीरता से सोचने तथा सरकारी कार्यों में निगरानी व पारदर्शिता लाने के लिए सामाजिक जाँच को हर-हाल में जरूरी किया जाना भी जरूरी है | आज सरकार में बैठा कोई भी व्यक्ति अपने मन मुताबिक प्लान बनाकर अड्बों रुपयों को फिजूल के कामो में लगाकर खर्च कर देता है वहीँ दूसरी और नागरिकों के मूलभूत जरूरतों की और ध्यान ही नहीं दिया जाता है ,जिससे लोगों में सरकार है भी या नहीं का भ्रम पैदा हो गया है ..आम लोग टेक्स देने के लिए मजबूर तो हैं लेकिन नागरिक सुविधा के नाम पर उनको ठगा जाता है ..
ReplyDeleteएक बेहतरीन और सामयिक लेख लिखने के लिए बधाई शाहनवाज भाई !
ReplyDeleteकहते हैं रहीम जिसे वही राम है
ReplyDeleteनेकी ही फ़क़त बन्दे का काम है।
जब तक आदमी में यह भाव नहीं जगेगा राजनेता और मतांध भेड़िये जनता को आपस में लड़ाते रहेंगे।
शाहनवाज़ भाई.... बहुत बढ़िया आलेख है आपका.... वीविंग और क्राफ्टिंग बहुत अच्छे से की है... आंतकवाद वहीँ होता है... जहाँ बेरोज़गारी और एजुकेशन नहीं होती है... या फिर धर्मांध ... लोग अपने धर्म को लेकर बहुत पजेसिव होते हैं... असली जड़ आतंकवाद का तो धर्म ही है... और एक बात और अनपढ़ और जाहिल किस्म के लोग धर्म के लिए ज़्यादा हल्ला मचाते हैं...
ReplyDeleteभ्रष्टाचार थोडा डिफरेंट है... आतंकवाद के लिए... इस हिसाब से तो हर कोई आतंकवादी है... हाँ ! यह बिलकुल सही है कि भ्रष्टाचार के सहारे ही आतंकवादी लोग अपनी रोटी सेंक रहे हैं... आपकी लेखनी से पता चलता है कि क्या लेवल है आपका... मुझे बहुत ख़ुशी है कि ... एक और इंटेलेक्चुयल है... ब्लॉग जगत में .... जो दिमाग से बहुत मैच्योर है...
बक अप....
शाह्नवाज़ भाई,
ReplyDeleteवैचारिक तथ्यपूर्ण आलेख,आतंकवाद पर गहरा चिन्तन प्रस्तूत किया।
उम्दा पोस्ट के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteब्लॉग4वार्ता की 150वीं पोस्ट पर आपका स्वागत है
आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार
ReplyDeletebehad umda likha hian.
ReplyDeleteएक अच्छी समीक्षा !
ReplyDeletesamyik alekh...gahan padtal.
ReplyDeleteस्वाधीनता-दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...जय हिंद !!
अच्छा लगा आपका यह तथ्यपरक आलेख
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं
हैपी ब्लॉगिंग
अच्छा लगा आपका लेख, इसीलिए फिर से आना पड़ा. बार-बार पढ़िए...
ReplyDelete_________________________
'शब्द-शिखर' पर प्रस्तुति सबसे बड़ा दान है देहदान, नेत्रदान
धर्म में कचरा । पर आपके और प्रवीण जी के विचार पढे ।
ReplyDeleteनिसंदेह प्रवीण जी दिग्भ्रमित हैं । आपके विचार भले ही आप
पर उन सबके जबाब न हों । पर बेहतरीन और तर्क युक्त हैं ।
धर्म शास्त्रों का सटीक अध्ययन और सही समझ न होना ।
पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर उन्हें पडना । प्रवीण जी जैसी मानसिकता
को जन्म देता है । प्रत्येक धर्मशास्त्र जो मूल है । पूरी तरह वैग्यानिक है ।
सत्य की खोज @ आत्मग्यान
@ mehfooz
ReplyDeleteभाई सेवेन सिस्टर कहे जाने वाले हमारे मुल्क के राज्यों मणिपुर,असाम,मिजोरम,आदि और बस्तर,मध्य बिहार,तेलंगाना,आंध्र प्रदेश आदि में जो आतंकवाद है क्या आप बताएँगे कि उसके पीछे धर्म कहाँ है..
आतंकवाद पनपता है विकास के असमान वितरण से..
धर्म एक महत्वपूर्ण कारण नहीं है इधर दशक भर से पश्चिम की मिडिया ने हमें बतलाया कि धर्म और खासकर इस्लाम इसके पीछे है और हमने मान लिये.
और रही बात धर्म को जान्ने की और न जान्ने की तो आपकी एक भी पोस्ट ऐसी नहीं मिली पढने को जिससे लगे कि इस्लाम के आप बहुत बड़े आलिम फ़ाज़िल हों .
गुस्ताखी मुआफ हो मैं चाह्हता हूँ कि इस्लामी नजरिये को आप भी वक्तन फवक्तन पेश करते रहें ताकि इस्लाम को लेकर जो गलत फहमियाँ हैं लोगों के ज़ेहन से दूर हो.
aap ne koi nayi bat nahi khoj niiklai janab SAHNAWAZ bhai , MARZ ka pata apne diye aur dusron ne bhi pehle bata chuke lekin kisi ne us MARIEZ ko DAWA nahi de sake ..yeh DOCTOR ki kami hai . "" from 1947 to till date "".SATTA K BHOGI zummedar hai ...
ReplyDeleteaap ne koi nayi bat nahi khoj niiklai janab SAHNAWAZ bhai , MARZ ka pata apne diye aur dusron ne bhi pehle bata chuke lekin kisi ne us MARIEZ ko DAWA nahi de sake ..yeh DOCTOR ki kami hai . "" from 1947 to till date "".SATTA K BHOGI zummedar hai ...
ReplyDeleteशाह नवाज जी बहुत ही खूबसूरत लेख है|आपने बहुत ही व्य्ख्यां तरीके पूरी चीज़ों को उजागर किया है| यह केवल आपसी भाईचारे से ही मिटाया जा सकता है| आप ऐसी ही खूबसूरत रचनाएं शब्दनगरी पर भी प्रकाशित कर सकते हैं| वहां भी आप ऐसी ही रचनाएं आतंकवाद तेरे कितने रूप ? लिख व् पढ़ सकते हैं|
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