इंसान अकेला ही इस दुनिया में आया है और अकेला ही जाएगा... एक मशहूर कहावत है कि "खाली हाथ आएं है और खाली हाथ जाना है।" फिर भी हम हर वक्त, इसी जुस्तजू में रहते हैं कि कैसे हमारा माल एक का दो और दो का चार हो जाएँ! जबकि सभी जानते हैं कि हम एक मुसाफिर भर हैं, और सफ़र भी ऐसा कि जिसकी हमने तमन्ना भी नहीं की थी। और यह भी पता नहीं कि कब वापिसी का बुलावा आ जाए! और वापिस जाना-ना जाना भी हमारे मर्ज़ी से नहीं है। कितने ही हमारे अपने यूँ ही हँसते-खेलते चले गए। वापिस जाने वालों में ना उम्र का बंधन होता है, ना रुतबे-पैसे का। इस दुनिया का एक बहुत बड़ा सच यह है कि यहाँ गरीब बिना इलाज के मर जाते हैं और अमीर इलाज करा-करा कर।
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं,
आज पैसे और रुतबे के लोभ में इंसान बुरी तरह जकड़ा हुआ है। इस लोभ ने हमें इतना ग़ुलाम बना लिया है कि आज हर कोई बस अमीर से अमीर बन जाना चाहता है। और इस दौड़ में किसी के पास यह भी देखने का समय, या यूँ कहें कि परवाह नहीं है कि पैसा किस तरीके से कमाया जा रहा है। एक ही कोशिश है कि चाहे किसी भी तरह हो, बस कमाई होनी चाहिए। चाहे हमारे कारण कोई भूखा सोए या किसी के घर का चिराग बुझ जाए। हमें इसकी परवाह क्यों हो? मेरे घर पर तो अच्छे से अच्छा खाना बना है, पड़ौसी भूखा सो गया तो मुझे क्या? मेरे बच्चे बढ़िया स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं, खूबसूरत लिबास उनके शरीर की शोभा बढ़ा रहे हैं। कोई अनाथ हो तो तो हो? भीख मांगने पर मजबूर हो तो मेरी बला से? मेरे और मेरे परिवार के लिए तो अच्छा घर, आरामदायक बिस्तर मौजूद है न, तो क्या हुआ अगर कुछ गरीब सड़कों पर सोने के लए मजबूर हैं। और यही सोच है जिसने आज ईमानदारी को बदनाम कर दिया है। आज के युवाओं की प्रेरणा के स्त्रोत मेहनत और ईमानदारी नहीं रही बल्कि शॉर्टकट के द्वारा कमाया जाने वाला पैसा बन गया है। बल्कि ईमानदारों को तो आजकल एक नया ही नाम मिल गया है और वह है "बेवक़ूफ़"!
"इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में थकना मना है" कि तर्ज़ पर आज के समाज का फंडा है कि "इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में सोचना मना है।" इतने व्यस्त रहो कि यह सोचने का मौका ही ना मिले कि हमने गलत किया है या सही। लेकिन इस व्यस्तता में इंसान को यह भी पता नहीं चलता कि उसकी ज़िन्दगी की दौड़ खत्म हो गयी और अब पछताने का भी समय नहीं मिला, अगर समय मिला भी तो पछताने का कोई फायदा नहीं रहा। क्योंकि बेईमानी से जो कमाया था उसपर लड़ने के लिए और मौज उड़ाने के लिए तो अब दूसरे लोग तैयार हैं। इंसान तो खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही जाएगा...
क्या शक्कर मिसरी क़ंद गरी,
क्या सांभर मीठा-खारी है
सामान सौ बरस का है, पल की खबर नहीं।
"इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में थकना मना है" कि तर्ज़ पर आज के समाज का फंडा है कि "इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में सोचना मना है।" इतने व्यस्त रहो कि यह सोचने का मौका ही ना मिले कि हमने गलत किया है या सही। लेकिन इस व्यस्तता में इंसान को यह भी पता नहीं चलता कि उसकी ज़िन्दगी की दौड़ खत्म हो गयी और अब पछताने का भी समय नहीं मिला, अगर समय मिला भी तो पछताने का कोई फायदा नहीं रहा। क्योंकि बेईमानी से जो कमाया था उसपर लड़ने के लिए और मौज उड़ाने के लिए तो अब दूसरे लोग तैयार हैं। इंसान तो खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही जाएगा...
इस मौजूं पर नज़ीर अकबराबादी की बंजारानामा में लिखी एक बहुत ही महत्वपूर्ण रचना याद आ रही है।
गर तू है लक्खी बंजारा
और खेप भी तेरी भारी है
और खेप भी तेरी भारी है
ऐ ग़ाफ़िल तुझसे भी चढ़ता
इक और बड़ा ब्योपारी है
इक और बड़ा ब्योपारी है
क्या शक्कर मिसरी क़ंद गरी,
क्या सांभर मीठा-खारी है
क्या दाख मुनक़्क़ा सोंठ मिरच,
क्या केसर लौंग सुपारी है
क्या केसर लौंग सुपारी है
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।
तू बधिया लादे बैल भरे,
जो पूरब-पच्छिम जावेगा,
या सूद बढ़ा कर लावेगा,
या टोटा घाटा पावेगा
कज्ज़ाक अज़ल का रस्ते में
जब भाला मार गिरावेगा,
धन दौलत, नाती-पोता क्या,
एक कुनबा काम न आवेगा,
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।
तू बधिया लादे बैल भरे,
जो पूरब-पच्छिम जावेगा,
या सूद बढ़ा कर लावेगा,
या टोटा घाटा पावेगा
कज्ज़ाक अज़ल का रस्ते में
जब भाला मार गिरावेगा,
धन दौलत, नाती-पोता क्या,
एक कुनबा काम न आवेगा,
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।
आपका यह लेख दिल की गहराइयों को छूने में कामयाब है शाहनवाज भाई !
ReplyDeleteअपने अपने मद में डूबे हम लोगों के पास इतना समय ही नहीं कि अंतिम दिन के बारे में सोंचे ....जीते ऐसे हैं कि इस ठाठ को ऊपर वाले को भी जाकर दिखायेंगे कि ऐसा तेरे पास भी नहीं !
आभार आपका !
सब भूल जाते हैं कि कफ़न में ज़ेब नहीं होती...
ReplyDeleteजय हिंद...
शाहनवाज़ भाई,
ReplyDeleteजहां समाप्ति की नियति है, वहां हर कर्म क्षणिक और अपने लिए गढ़ा गया हर अभिप्राय भ्रम है. यदि बगैर भ्रम को पाले हुए जीवन जीना हो तो जीवन को छोटा सा सफ़र मानना चाहिए . यदि देर-सबेर यह बात मन में उग आये की एक-दिन हर किसी को उतर जाना है तो बस यही सोचकर जीना चाहिए कि जीतनी देर रहे हर किसी को प्यार देते रहें . उन्हें अपने स्नेह से अभिसिंचित करते रहें. क्योंकि जीवन में प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं. यही सच है.
नवरात्री की ढ़ेरों शुभकामनाएँ..
ReplyDeleteअब ना वो हलाकू है और ना उसके साथी हैं
ReplyDeleteजंगो-जूं पोरस है और ना उसके हाथी है
प्रणाम
बहुत बढ़िया शाहनवाज भाई
ReplyDeleteकाफी दिनों बात कोई कमेन्ट कर रहा हूँ
bahut badiya marmsaprshi prastuti hetu aabhar..
ReplyDeleteNavratri kee shubhkamnayen..
कल 30/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
आपकी पोस्ट पढकर ताऊजी की एक पोस्ट याद आ गयी "बिणजारी ए हंस हंस बोल..
ReplyDeleteटांडो लद ज्यासी..."
और ये सूफी गाना "बिणजारी ए हंस हंस बोल..
टांडो लद ज्यासी..."आप यहाँ सुन सकते है
सब ठाठ पड़ा रह जाएगा------ सच है। लेकिन लोग नहीं समझते। एकत्र करने पर लगे हैं। मन की खुशी का किसी को पता नहीं बस तन की खुशी के लिए पागल हुए जा रहे हैं। बढिया चिंतन।
ReplyDeleteसब ठाठ पड़ा रह जावेगा
ReplyDeleteसच में, समझ लें यही सभी।
क्या बात है शाहनवाज़ भाई आज तो हिला के रख दिया. एक बेहतरीन लेख
ReplyDeleteठाठ के भी गजब ठाठ है,
ReplyDeleteठाठ छोड़कर ठाठ चल पड़ता है।
बस निरा ठाठ ही ठाठ है।
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
ReplyDeleteसत्य यही है... बहुत अच्छा लेख..
जानते सब हैं पर समझना नहीं चाहता कोई भी ..
ReplyDeleteगहरे में उतरती हुई
ReplyDeleteयदि आदमी अपनी हिरस पर लगाम लगाए तो सभी चिंताएं दूर हो जाएगी। बंजारा निश्चिंत ठाठ से चला जाएगा॥
ReplyDeleteइस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में सोचना मना है मगर, आपके इस लेख ने सोचने पर मजबूर तो कर ही दिया भाईजान। सब ठाठ पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेगा बँजारा।
ReplyDeleteबढिया सीख देती रचना।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढकर विश्वविजयी सम्राट अशोक का कहीं पढा किस्सा याद आ गया, कि जब उनकी मौत होने वाली थी तो उन्होंने कहा कि मौत के बाद उनकी अर्थी से उनके दोनों हाथों को बाहर रख दिया जाए ताकि लोग यह देख सकें कि जाना खाली हाथ ही पडता है....
बेहतरीन प्रस्तुति....
आभार.....
सम्राट अशोक नहीं वह सिकंदर था शायद
Deleteशाहनवाज़ भाई बेहतरीन लेख
ReplyDeleteकुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 25 दिनों से ब्लॉग से दूर था
देरी से पहुच पाया हूँ
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
नमस्कार मित्र आईये बात करें कुछ बदलते रिश्तों की आज कीनई पुरानी हलचल पर इंतजार है आपके आने का
ReplyDeleteसादर
सुनीता शानू
काश इतनी सी बात याद रखे हर कोई
ReplyDeleteओह! बहुत ही सुन्दर.
ReplyDeleteगजब का लेखन है आपका.
सुनीता जी की हलचल का दिल से आभार
जिसने मुझे यहाँ पहुँचाया
मत पूछियेगा मुझे से शाह नवाज भाई कि
मैंने आपकी इस पोस्ट से क्या क्या नही है पाया
जीवन दर्शन को प्रस्तुत करती आपकी लेखनी को सादर सलाम.
Jab laad chalega banjara- bahut sundar
ReplyDeleteमैं जानूं हर बात समझना चाहूँ ना
ReplyDeleteक्या ले जाना साथ समझना चाहूँ ना
सार्थक लेखन....
सादर.
Janeshwar Mishra Park
ReplyDeleteMount Abu
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