इस फोटो में जो समुन्द्र का लाल रंग दिखाई दे रहा है यह जलवायु के प्राकृतिक प्रकोप के कारण लाल नहीं हुआ है. बल्कि समुन्द्र का यह लाल रंग सभ्य कहलाने वाले मनुष्य नामक प्राणी के द्वारा रोमांच के नाम पर पूरी दुनिया में मशहूर एक अक्लमंद डॉल्फिन "काल्ड्रोन" की सामूहिक और क्रूरतम हत्या के कारण हुआ है. यह घृणित खेल डेनमार्क के "फेरोए आइलैंड" पर हर वर्ष दोहराया जाता है. इस शर्मनाक खेल में नौजवान हिस्सा लेते हैं. पूरी मानवता को शर्मसार करने वाले इस खेल के द्वारा नौजवान अपने वयस्क और परिपक्व होने का सबूत देते हैं. वह दुनिया को अपनी ताकत का प्रदर्शन करके यह जतला देना चाहते हैं कि उनमें कितना दम है!
इस बहुत बड़े समारोह में मस्ती का कोई मौका नहीं छोड़ा जाता है. हर कोई इस प्यारे से प्राणी डॉल्फिन की हत्या नए-नए तरीके से करने की कोशिश करता है या फिर इस शर्मनाक खेल के समर्थन में दर्शक बन कर मज़े लुटते प्रतीत होते हैं.
कैसी विडंबना है?
यहाँ यह बताता चलता हूँ कि "काल्ड्रोन डॉल्फिन" अन्य डॉल्फिन मछलियों की तरह विलुप्त होने की कगार पर है. डॉल्फिन की यह प्रजाति दोस्ती के लिए मनुष्यों के काफी निकट तक आ जाती हैं.
"काल्ड्रोन डॉल्फिन" एकदम से नहीं मरती हैं, इसलिए इनको मोटे हुक से कई बार कांटा जाता है. उस समय डॉल्फिन मौत से बचने की फ़रियाद लिए ऐसे भयंकर तरीके से चिल्लाती हैं कि बड़े-से-बड़ा संगदिल इंसान भी पसीज जाए. लेकिन उनके हत्यारे इसपर और अधिक खुश होते हैं. क्रूर नौजवानों के गर्दिश मारते खून के थोड़े से रोमांच नामक हवस का शिकार होकर यह मासूम प्राणी विश्व में सबसे क्रूरतम तरीके से मार दी जाती हैं.
इस बहुत बड़े समारोह में मस्ती का कोई मौका नहीं छोड़ा जाता है. हर कोई इस प्यारे से प्राणी डॉल्फिन की हत्या नए-नए तरीके से करने की कोशिश करता है या फिर इस शर्मनाक खेल के समर्थन में दर्शक बन कर मज़े लुटते प्रतीत होते हैं.
कैसी विडंबना है?
यहाँ यह बताता चलता हूँ कि "काल्ड्रोन डॉल्फिन" अन्य डॉल्फिन मछलियों की तरह विलुप्त होने की कगार पर है. डॉल्फिन की यह प्रजाति दोस्ती के लिए मनुष्यों के काफी निकट तक आ जाती हैं.
"काल्ड्रोन डॉल्फिन" एकदम से नहीं मरती हैं, इसलिए इनको मोटे हुक से कई बार कांटा जाता है. उस समय डॉल्फिन मौत से बचने की फ़रियाद लिए ऐसे भयंकर तरीके से चिल्लाती हैं कि बड़े-से-बड़ा संगदिल इंसान भी पसीज जाए. लेकिन उनके हत्यारे इसपर और अधिक खुश होते हैं. क्रूर नौजवानों के गर्दिश मारते खून के थोड़े से रोमांच नामक हवस का शिकार होकर यह मासूम प्राणी विश्व में सबसे क्रूरतम तरीके से मार दी जाती हैं.
क्या इन राक्षसों को रोकने का कोई तरीका नहीं है?
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords: Calderon Dolphins Fish, Denmark
मेरा एक ही मानना है कि ऐसा करने वाले नर पिशाचों के पूरे जिस्म पर चाशनी मॉल कर उन्हें लाल चीटियों के ढेर के पास लेटा देना चाहिए. उनकी दोनों आँख के भीतर रह-रह कर पिन चुभनी चाहिए, एक एक कर उनकी उँगलियाँ आलू छीलने वाले चाकू से छीलनी चाहिए.... और हाँ ये सावधानी रहे कि वे जल्दी और आसानी से मर नसकें
ReplyDeleteइंसानियत के नाम पर धब्बा और शर्मसार है यह सब ,बहुत ज्यादा अफ़सोस होता है ऐसे लोगों को देखकर की इन्हें भी हमारी ही तरह इंसान कहा जाता है , काश इनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया जाए तब जाकर इन्हें दर्द और जीवन की अमूल्यता का पता लगेगा
ReplyDeleteबेहद अफ़सोस हो रहा है इन राक्षसी कृत्यों को सुनकर और देखकर
@शाहनवाज़ भाई इन बेजुबानों की पीड़ा को हम तक पहुंचाने के लिए और इनकी आवाज़ बनने के लिए आपका बहुत-२ आभार
महक
Uff!
ReplyDeleteओह!! दुखद और अफसोसजनक! इन्सानियत मर गई है.
ReplyDeleteचिंताजनक!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
हिन्दी भारत की आत्मा ही नहीं, धड़कन भी है। यह भारत के व्यापक भू-भाग में फैली शिष्ट और साहित्यिक भषा है।
बहुत ही खतरनाक बात है. ऐसे लोगों को सख्त से सख्त सजा देनी चाहिए.
ReplyDeleteआपकी ईमेल तो रात को ही मिल गई थी, लेकिन अभी कमेन्ट दे पाया हूँ. मेल पढ़ते ही दिल आह कर उठा था, कितने बेदर्द लोग है.
ReplyDeleteऐसे लोगो को तिल-तिल मरने की सजा देनी चाहिए, इनको भी पता चलना चाहिए की ऐसी मौत क्या होती है.
ReplyDeleteवाह रे मानव !!
ReplyDeleteतेरे दुष्कृत्यों का तो पार भी नहिं
खेल और जरा से विकृत आनंद के लिये घृणित कृत्य!!
महान मानव जन्म पाकर भी इन में दया,करूणा,प्रेम जाग्रत नहिं होता।
Un salo ki to gan...... main Perol dal karke aag laga dena chahiye..
ReplyDeleteThanks For This
शाह जी इंसान ही इस प्रक्रति का सबसे बड़ा दुश्मन साबित होता जा रहा है
ReplyDeleteफिर मर गई इन्सानियत
http://siratalmustaqueem.blogspot.com/2010/09/blog-post.html
ReplyDeleteघृणित।
ReplyDeleteकुछ समय पहले मैने भी टी वी पर इस घ्रानित खेल का समाचार देखा था .... ये धब्बा हैं इंसानियत के नाम पर .... क्या अब पर्यावरण वाले या वाइल्ड लाइफ वालों को दिखता नही है ये .... पता नही कैसी सभ्यता है ये ....
ReplyDeleteशाहनवाज़ जी मैंने आपके काफी ब्लॉग पढ़े हैं,उन्हें देखकर लगता है की आपकी सोच ठीक है, लेकिन क्या आपको भंदाफोदु नाम के ब्लॉग में लिखी जा रही लोगो को बेवक़ूफ़ बनाने वाली बातों के बारे में जानकारी नहीं है? आप लोग उसका डट कर जवाब क्यों नहीं देते हैं? बल्कि आपने शायद ऐसे लोगों से डरकर ही अपने ब्लॉग पर ऊपर लिखा है की आप उन ब्लॉग को नहीं पढेंगे जहाँ किसी धर्म के खिलाफ लिखा जाता है. आपको तो ऐसे लोगो को सही अंदाज़ में और सही-सही जवाब देना चाहिए. क्या आप भी इज्ज़त-बेईज्ज़ती से डरते हैं?
ReplyDeleteमहक जैसे अक्लमंद लोग भी भन्दा फोडू की गन्दी बातों को भी कुरुतियाँ मिटने वाली समझकर उसकी तारीफ करते है. यह इसलिए क्योंकि आप लोगो को बताते नहीं है की क्या गलत है और क्या सही. आप को इस्लाम के खिलाफ झूटी बाते लिखने वालो से भी सबूत के साथ बात करनी चाहिए. मेरे पास इन्टरनेट पर आने का समय बहुत थोडा होता है, फिर भी मैं इंशाल्लाह इसकी कोशिश करूँगा.
इस पर कुछ साल पहले पाबंदी लग चुकी है भाई... ६ महीने पहले भी किसी ने ऐसी ही पोस्ट लगाईं थी.. लेकिन पाबंदी लगे २ साल से ऊपर हो चुका है..
ReplyDeleteओह! आज वास्तव में इन्सानियत मर चुकी है...सिर्फ कहने भर को एक शब्द मात्र रह गया है.....कोरा शब्द!
ReplyDeleteIt is an shamefull act of High class . High class means a class of senseless and greedy people . Very sad .
ReplyDeleteउफ़्फ़...
ReplyDeleteबहुत घृणास्पद -कैसे रुकेगा ये ?
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteओह ! बहुत ही दुखद और खतरनाक बात है!
बहुत मार्मिक !
ReplyDeleteशाहनवाज़ जी..ऐसा कृत्य जघन्य अपराध है फिर भी वहाँ की सरकार चुप है...विश्व समुदाय के शीर्ष नेतृत्व को इसका विरोध करना चाहिए ताकि बात ज़ोर-शोर से बात वहाँ के सरकार तक पहुँचे और कुछ सार्थक पहल हो...
ReplyDeleteशाह नवाज जी, आपका सन्देश मिला. मन गदगद है. इनदिनों मैं सक्रिय ब्लोगरी नहीं कर रहा हूँ... कारण बहुत से हैं, फिर भी हर संभव कोशिश होती है ब्लॉगजगत के स्नेही साथियों के बीच उपस्थिति बनी रहे.
ReplyDeleteपिछले दिनों आप भी दुखी थे... ये शोक करने की घडी नहीं है. अरे हम लोग तो पहले सामाजिक कार्यकर्ता हैं (ब्लोगर बाद में)
आप अपना ख्याल रक्खें और खूब तरक्की करें और इसी प्रकार अपने आलेखों के माध्यम से लोगों को जागरूक करें.
अपना मिलना जुलना जारी रहेगा.
--
डेनमार्क में ऐसा क्रूर खेल चल रहा है, इसकी उम्मीद नहीं थी.
शहरयार भाई,
ReplyDeleteगली के आवारा कुत्ते भोंकते हैं तो क्या तुम भी भौंकने लगते हो? या फिर डंडा उठा कर मारने के लिए दौड़ते हो? या फिर उन्हें समझाने बैठ जाते हो? एक बात और है, दुनिया में हज़ारों लोग रोजाना इस तरह के सवाल करते रहते हैं, अगर लोग इनके पास जा-जाकर इनको जवाब देने लग जाएँगे तो कुछ और नहीं कर पाएंगे. हाँ अगर किसी को कोई शंका अथवा प्रश्न है तो वह मुझसे आकर कभी भी मालूम कर सकता है. अगर मेरे पास उत्तर होगा तो मैं दे दूंगा वर्ना किसी मुफ्ती से जवाब दिलवाने की कोशिश करूँगा.
आपकी बात को संज्ञान लेते हुए मैंने अपने ब्लॉग मधुर सन्देश" में एक पोस्ट इस्लाम धर्म से सम्बंधित प्रश्न एवं उनके उत्तरों के लिए बना दी है. अगरी किसी को भी कोई शंका है तो वह वहां आकर मालूम कर सकता है.
मैं अपनी बात पर कायम हूँ, फ़ालतू की बहस और धर्म अथवा व्यक्ति विशेष के खिलाफ लिखने वालो ब्लोग्स पर नहीं जाऊंगा. आप किसी भी समय मुझे मेरे ईमेल shnawaz@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं.
धन्यवाद!
bht hi sharm-naak hai,main toh maanti hun ki sabse bada jaanwar khud insaan hi hai....
ReplyDeletebaghwaan ne insaan ko sabse alag banaya hai,usse bolne ki shakti,haat-pair,samvedana de hai...taaki wo apne saat-2 anya paraniyo ki bhi raksha kar sake...par yahan toh insaan poora daanav ban chuka hai...main toh kahungi ki eshwar un jaanwaro,ko itni shakti de ki wo hi en logo kr itne tukde kare ki aage se kisi ki bhi himmat na ho en parkarti (nature) paraniyo ko choo (touch) bhi sake... ek geet yaad aaya es artical ko padkar....
*duniya banane wale kya tere mann me samayi ....tune kahe ko duniya banayi*
well great ...shah nawaaz ji
aap har baar kuch naya likhte hai...
.
ReplyDeletePathetic !
.
ye to krurta ki had bhi paar kar gaye hai!
ReplyDeletebahut afsos hai aur chinta bhi!
मैंने यह पोस्ट पहले पढ़ी थी
ReplyDeleteमुझे लगा कि टिप्पणी भी दी होगी
पर टिप्पणी वाला लिंक नहीं खुला होगा
मारना किसी को भी
खुद को मारना हो
तो कोई कभी न ऐसा करेगा
चाहे डरे, चाहे न डरे
पर करेगा तो खुद ही मरेगा।
जघन्य अपराध ! मेरी नई पोस्ट "फ़ितरा " देखें drayazahmad.blogspot.com
ReplyDeleteरोंगटे खड़े हो गए थे जब मैंने इस लेख को पढ़ा था लेकिन कमेन्ट करने की हिम्मत नहीं जुटा सका..आज इतने दिनों बाद हिम्मत जुटा पाया हूँ...मेरा बस चले तो इन इंसानों की हत्या ऐसे ही करूँ जैसे ये लोग डालफिन की करते हैं...शर्म नाक वाकया...
ReplyDeleteनीरज
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