बाबू आज बहुत खुश था, नानी ने बताया कि पापा आने वाले हैं। वैसे वह पापा से नाराज़ था, दो महीने से पापा ने फोन पर भी बात नहीं की थी। नानी ने समझाया था कि "बाबू नाराज़ नहीं, होते पापा जल्द ही घर वापिस आ जाएंगे"। "लेकिन मुझसे बात तो कर सकते थे ना? उन्होंने मुझसे गिफ्ट का वादा किया था, और अब बात भी नहीं कर रहे हैं।" नानी ने समझाया था कि जब वह घर आएंगे तो बहुत से गिफ्ट लाएंगे, इसलिए जब से पता चला था कि पापा आने वाले हैं, तभी से वह बहुत खुश था।
उसने जल्दी-जल्दी पापा के बिस्तर को ठीक करना शुरू कर दिया। इतना छोटा होते हुए भी उसे पापा की पसंद-नापसंद याद आने लगी। पापा के पसंद की चादर पलंग पर बिछाई ही थी, कि नानी आकर उसपर बैठ गई। "नानी पलंग पर मत बैठिए, पापा आने वाले हैं, उनको सिलवट वाला बिस्तर पसंद नहीं है। मैंने पीली चादर बिछाई है, पता है यह उनको बहुत पसंद है!" बाबू की बात सुनकर नानी के आंखों में पानी आ गया।
थोड़ी देर बाद घर में औरतों की भीड़ लगनी शुरू हो गई। बाबू परेशान होने लगा कि आखिर यह भीड़ घर में क्यों आ रहीं है। घर में बाबू को छोड़कर कोई भी खुश नज़र नहीं आ रहा था, उन्हे देखकर उसे लगा कि ज़रूर कोई गड़बढ़ है। थोड़ी देर में एक गाड़ी घर के सामने आकर रुकी, जिसे देखते ही सभी लोग झट से बाहर चले गए। थोड़ी देर में लोगों ने पापा को आँगन में लाकर लिटा दिया। बाबू परेशान था कि आखिर पापा ऐसे क्यों लेटे हुए हैं? उनको सफेद कप़ड़े में क्यों लपेटा हुआ है? आखिर वह बात क्यों नहीं करते? लेकिन उसके सवालो का जवाब किसी के पास नहीं था। उसके पापा को दो महीने पहले एक गाड़ी रौंदती हुई निकल गई थी, वह दो महीने तक ज़िंदगी की जंग लड़ते-लड़ते आज हार गए थे। बाबू जैसे कहीं गुम हो गया, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। पापा की कितनी ही यादें चलचित्र की तरह उसकी आंखों के सामने घूम रही थी। बाबू के साथ खेलने वाला, उसके ज़रा से दुख में परेशान हो जाने वाला आज किसी की ज़रा सी लापरवाही की भेंट चढ़ गया है। वहीं दूसरी तरफ उसकी ज़िदंगी में विरानियों को भरने वाला उसका गुनाहगार, उसकी हालत से बेपरवाह, आराम से अपने परिवार और ज़िदंगी की रंगीनियों में व्यस्त है।
बाबू ने बड़ी ही मायूसी में छोटे भाई को बताया कि पापा अब वापिस नहीं आएंगे! उसने बड़ी ही मासूमियत से मालूम किया "तो अब हम किसके साथ खेलेंगे? मेरे खेल में 'अब पापा कौन बनेगा?'
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
(ज़रा सी जल्दी अथवा मस्ती में गाड़ी चलाने के कारण लोग अन्जाने में ही कितने ही बाबू जैसे बच्चों की भावनाओं से खेलते हैं। आखिर कब लोग कानून का पालन करना शुरू करेंगे? क्या इस दौड़ की कोई हद भी है?)
उसने जल्दी-जल्दी पापा के बिस्तर को ठीक करना शुरू कर दिया। इतना छोटा होते हुए भी उसे पापा की पसंद-नापसंद याद आने लगी। पापा के पसंद की चादर पलंग पर बिछाई ही थी, कि नानी आकर उसपर बैठ गई। "नानी पलंग पर मत बैठिए, पापा आने वाले हैं, उनको सिलवट वाला बिस्तर पसंद नहीं है। मैंने पीली चादर बिछाई है, पता है यह उनको बहुत पसंद है!" बाबू की बात सुनकर नानी के आंखों में पानी आ गया।
थोड़ी देर बाद घर में औरतों की भीड़ लगनी शुरू हो गई। बाबू परेशान होने लगा कि आखिर यह भीड़ घर में क्यों आ रहीं है। घर में बाबू को छोड़कर कोई भी खुश नज़र नहीं आ रहा था, उन्हे देखकर उसे लगा कि ज़रूर कोई गड़बढ़ है। थोड़ी देर में एक गाड़ी घर के सामने आकर रुकी, जिसे देखते ही सभी लोग झट से बाहर चले गए। थोड़ी देर में लोगों ने पापा को आँगन में लाकर लिटा दिया। बाबू परेशान था कि आखिर पापा ऐसे क्यों लेटे हुए हैं? उनको सफेद कप़ड़े में क्यों लपेटा हुआ है? आखिर वह बात क्यों नहीं करते? लेकिन उसके सवालो का जवाब किसी के पास नहीं था। उसके पापा को दो महीने पहले एक गाड़ी रौंदती हुई निकल गई थी, वह दो महीने तक ज़िंदगी की जंग लड़ते-लड़ते आज हार गए थे। बाबू जैसे कहीं गुम हो गया, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। पापा की कितनी ही यादें चलचित्र की तरह उसकी आंखों के सामने घूम रही थी। बाबू के साथ खेलने वाला, उसके ज़रा से दुख में परेशान हो जाने वाला आज किसी की ज़रा सी लापरवाही की भेंट चढ़ गया है। वहीं दूसरी तरफ उसकी ज़िदंगी में विरानियों को भरने वाला उसका गुनाहगार, उसकी हालत से बेपरवाह, आराम से अपने परिवार और ज़िदंगी की रंगीनियों में व्यस्त है।
बाबू ने बड़ी ही मायूसी में छोटे भाई को बताया कि पापा अब वापिस नहीं आएंगे! उसने बड़ी ही मासूमियत से मालूम किया "तो अब हम किसके साथ खेलेंगे? मेरे खेल में 'अब पापा कौन बनेगा?'
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
(ज़रा सी जल्दी अथवा मस्ती में गाड़ी चलाने के कारण लोग अन्जाने में ही कितने ही बाबू जैसे बच्चों की भावनाओं से खेलते हैं। आखिर कब लोग कानून का पालन करना शुरू करेंगे? क्या इस दौड़ की कोई हद भी है?)
Keywords:
accident, Traffic, संवेदनहीनता
अच्छा संवेदना भरा शिक्षाप्रद कथानक
ReplyDeleteएक दुखद घटना।
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ReplyDeleteलोग या तो पढ़ते नहीं या फिर समझते नहीं हैं ?
ReplyDeleteकोशिश करूँगा कि इस तरह की गलती अपने जीवन में न करूं| और ईश्वर से प्रार्थना है कि किसी के साथ ऐसा ना हो
ReplyDeleteबेहद दुखद है यह आज का सच
ReplyDelete... और उच्च जाति का होने का दम्भ पाले फिरते हैं ।
ReplyDeleteबहुत ही इमोशनल स्टोरी है.... आपका message अच्छा है.
ReplyDeleteशाहनवाज़ भाई, मन को छू गयी यह कथा। बधाई।
ReplyDelete--------
पाँच दिवसीय ब्लॉगिंग कार्यशाला में तरह-तरह के साँप।
बाबु जैसे पता नहीं कितने बच्चे है जो इस दुःख को झेल रहे है
ReplyDeleteकुछ लापरवाह लोगो के कारण !
बहुत ही अच्छी प्रेरक और सामाजिक सोच को सार्थकता प्रदान करने की कोशिस करती पोस्ट ,इसी का नाम है ब्लोगिंग और ब्लोगिंग का असल उद्देश्य ,वाह-वाह शाहनवाज जी शानदार ..आपके इस पोस्ट से कुछ बच्चों का तो भला जरूर होगा ...
ReplyDeleteमार्मिक कथा....
ReplyDeleteएक मार्मिक कहानी. अगर हम एक सभ्य और संवेदनशील समाज का निर्माण कर पाते तो ऐसी कितनी ही दुर्घटनाये टाली जा सकती.
ReplyDeleteबढ़िया सन्देश देती लघुकथा.. ऐसी ही रचनाओं कि जरूरत है..
ReplyDeleteएक मार्मिक कहानी.....
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक और सही सन्देश देती हुई पोस्ट , शाहनवाज़ भाई इसके लिए आपका आभार
ReplyDeleteऔर स्वयं भू सत्य गौतम थोड़ी शर्म करो , इस दुखद घटना में भी तुम उच्च जाती और निम्न जाती जैसी घटिया सोच ला रहे हो
महक
बहुत ही मार्मिक और संवेदनीय लेख
ReplyDeleteसन्देशपरक बेहद मार्मिक लघुकथा...!
ReplyDeleteमित्रों आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteयह भी खुदा का करिश्मा ही है कि आज मैंने अपने लेख के लिए जिस विषय का चयन किया अर्थात "लापरवाहियों से होती दुर्घटना" खुद उसी से मुझे दो-चार होना पड़ा. यह तो उसका करम और आप लोगों की दुआएं हैं कि खुछ अधिक नुक्सान नहीं हुआ.
हुआ यह कि मैं जुमा की नमाज़ के लिए अपने दफ्तर से बहार गया था, मैं अपने एक मित्र की गाडी में था और हम एक सीधी सड़क पर बहुत धीमी गति से चल रहे थे, कुछ दूर पर एक तिराहा पड़ा. उस तिराहे पर दूसरी तरफ से एक महिला बहुत तेज़ी से आई और तेज़ी के चक्कर में वह हमें देख ही नहीं पाई और इसी कारणवश हमारी गाडी को साइड से टक्कर मार दी. खुदा का शुक्र है मुझे तो अधिक छोट नहीं लगी लेकिन मेरे मित्र के सीने में चोट आई और गाडी काफी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई.
marmikta se bharpoor sandesh deti laghukatha sochne ko vivash karti hai........kash sab ye samajh pate.
ReplyDeleteशिक्षाप्रद कथानक
ReplyDeleteकिसी की लापरवाही का मार्मिक पक्ष।
ReplyDeleteमार्मिक ।
ReplyDeleteलेकिन लोगों को जाने कब अक्ल आएगी ।
बहुत अच्छा. आपको पहली बार पढ़ा. ऐसे ही लेखन की ब्लॉग जगत को जरूरत है.
ReplyDeleteगलदश्रु भावुकता से भर दिया इस कथा ने .इसे लघु मत कहिये इसके अर्थ व्यापक हैं अपने फलक में भी सम्पूर्ण है!!
ReplyDeleteपिछले दिनों हुए हादसे ने ज़ेहन में आकर रूह को शल कर दिया !! अब जिस्म की क्या बिसात !!!!!
......?????
ReplyDeleteबहुत अच्छा.संवेदना भरा
ReplyDeleteलघुकथा के रूप में --------एक सच्ची घटना......कभी न भूल पाने वाली.........
ReplyDeleteसार्थक और मार्मिक ....
ReplyDeleteभाई सत्य गौतम ने एक टिप्पणी की है कि मैंने इस लघुकथा को घटना लिखा है। तो भाई यह घटना ही है लघुकथा नहीं। लघुकथा का एक सांचा होता है, जैसे पद्य में दोहे या शेर का वैसे ही गद्द में लघुकथा का होता है। मैंने पूर्व में इसलिए नहीं लिखा था कि लेखक का उत्साह भंग होगा।
ReplyDeleteएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं!
दौड़ रूपी होड़ का यह कोढ़ खत्म नहीं हो सकता।
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