
आजकल महसूस हो रहा है कि यह बीमारी ब्लॉग जगत को भी घेर रही है. चंद लेखक अपने-अपने धर्म की दुकानों को चलाए हुए हैं. हालाँकि इन दुकानों से किसी को भी परेशानी नहीं होनी चाहिए, परेशानी शुरू होती है इनके द्वारा अपने धर्म अथवा समाज की अच्छी बातों को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने की जगह दूसरों की आस्थाओं के अन्दर बुराइयाँ निकालने की प्रवत्ति से. अगर कोई ऐसी दुकान चलता भी है तो होना तो यह चाहिए कि पूरी मानवता के हित के लिए कार्य किये जाएं, लेकिन अगर यह नहीं हो पाता है तो कम से कम अपने समाज के हित के कार्य किये जाएं. अगर अपने समाज में कोई बुराई उत्पन्न हो गई है तो उसे दूर करने की कोशिश की जाए. अगर कोई उसकी अच्छाइयों को बुराई कहकर दुष्प्रचार कर रहा है तो समाज के बीच सही बात को बताया जाए, जिससे की सभी धर्मों की बीच सौहार्द उत्पन्न हो और एक दुसरे को अच्छे तरीके से जाना जा सके. लेकिन कुछ लोगो को तो दूसरों के धर्म में सारी बुराइयाँ नज़र आती हैं तथा कुछ लोगो को केवल दुसरे धर्म को मानने वाले लोगो में ही दुनिया की सारी कमियां नज़र आती हैं. हालाँकि समाज में नज़र दौडाओ तो पता चलता है कि बुराइयाँ हर समाज में हैं, लेकिन मुसलमान हमेशा हिन्दुओं को तथा हिन्दू हमेशा मुसलमानों को संदेह की निगाह से देखते हैं! कभी किसी ने सोचा है ऐसा क्यों? क्योंकि रह-रह कर कुछ लोग एक-दुसरे धर्म के अनुयायिओं के बारे में दुष्प्रचार करते रहते हैं, बल्कि यह कहें कि अपनी दुकानदारी चलाते रहते हैं.
मेरी नज़र में बुराई इन लोगो में नहीं बल्कि कहीं न कहीं हमारे अन्दर है, हम ऐसे लेखों को जहाँ दूसरों को गलियां दी जा रही हो, मज़े ले-लेकर पढ़ते हैं. क्या कभी हमने विरोध की कोशिश की? आज समय दूसरों को बुरा कहने की जगह अपने अन्दर झाँक कर देखने का है, मेरे विचार से शुरुआत मेरे अन्दर से होनी चाहिए.
दुनिया में कोई भी मस्जिद या मंदिर किसी एक इंसान की इज्ज़त से बढ़कर नहीं हो सकता फिर जान से बढ़कर कैसे हो सकता है?
मैं एक मुसलमान हूँ इसलिए उपरोक्त वाक्य कुरआन और हदीस की रौशनी में बता रहा हूँ, आपका सम्बन्ध जिस धर्म से हैं, अगर आप उसमे किसी भी ऐसी बात की जानकारी रखते हैं तो उसे यहाँ अवश्य लिखें, ताकि पुरे समाज में जागरूकता लाई जा सके.
सुज्ञ के अनुसार:
पूरे जगत में धरती का कोई कण ऐसा नहिं है,जहां से महापुरूषों ने जन्म धारण न किया हो,या ऐसा कोई अणु नहिं जिसका उपयोग महापुरूषों नें ग्रहण व विसर्जन करने में न किया हो।
अर्थार्त जगह विषेश किसी भी कारण से पूज्य या अपूज्य नहिं हो जाती।
धर्म स्थलों का उद्देश्य मानव के हितार्थ,शान्त चित से चिन्तन मनन के हेतू है। मानवता को उंचाईयां प्रदान करने हेतू साधना आराधना करें।
यही लक्षय है,और इसी कारण से महत्व होना चाहिए।
मैंने यह लेख "ब्लॉग संसद" पर लिखा है, पढने के लिए यहाँ क्लिक करें.
मेरी नज़र में बुराई इन लोगो में नहीं बल्कि कहीं न कहीं हमारे अन्दर है, हम ऐसे लेखों को जहाँ दूसरों को गलियां दी जा रही हो, मज़े ले-लेकर पढ़ते हैं. क्या कभी हमने विरोध की कोशिश की? आज समय दूसरों को बुरा कहने की जगह अपने अन्दर झाँक कर देखने का है, मेरे विचार से शुरुआत मेरे अन्दर से होनी चाहिए.
दुनिया में कोई भी मस्जिद या मंदिर किसी एक इंसान की इज्ज़त से बढ़कर नहीं हो सकता फिर जान से बढ़कर कैसे हो सकता है?
मैं एक मुसलमान हूँ इसलिए उपरोक्त वाक्य कुरआन और हदीस की रौशनी में बता रहा हूँ, आपका सम्बन्ध जिस धर्म से हैं, अगर आप उसमे किसी भी ऐसी बात की जानकारी रखते हैं तो उसे यहाँ अवश्य लिखें, ताकि पुरे समाज में जागरूकता लाई जा सके.
सुज्ञ के अनुसार:
पूरे जगत में धरती का कोई कण ऐसा नहिं है,जहां से महापुरूषों ने जन्म धारण न किया हो,या ऐसा कोई अणु नहिं जिसका उपयोग महापुरूषों नें ग्रहण व विसर्जन करने में न किया हो।
अर्थार्त जगह विषेश किसी भी कारण से पूज्य या अपूज्य नहिं हो जाती।
धर्म स्थलों का उद्देश्य मानव के हितार्थ,शान्त चित से चिन्तन मनन के हेतू है। मानवता को उंचाईयां प्रदान करने हेतू साधना आराधना करें।
यही लक्षय है,और इसी कारण से महत्व होना चाहिए।
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bharat, Hindu-Muslim, India, Mandir, Masjid, Mosque, Temple, ब्लॉग संसद