भारत में मुस्लिम प्रजनन दर 1992 में 4.4 थी जो कि 2019 में गिरकर 2.4 हो गई। वहीं हिन्दू प्रजनन दर जो कि 1992 में 3.3 थी वो 2019 में गिरकर 1.9 हो गई है। अगर सरकार के इस आंकड़ें को देंखेंगे तो मुस्लिम प्रजनन दर में जितनी तेज़ी से गिरावट आई है, उतनी किसी और समाज में नहीं आई है।
अभी सभी समुदायों की प्रजनन दर तक़रीबन 2 के आसपास है। जिसका अर्थ है 2 लोगों (पति-पत्नि) के द्वारा जन्म दिए बच्चों की संख्या 2 के आसपास है और इसका अर्थ है कि भविष्य में जल्दी ही ऐसा समय आने वाला जबकि देश की जनसख्या बढ़ने की जगह घटने लग जाएगी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हर समुदाय में शिक्षा का स्तर बढ़ा है। आप शिक्षा के असर का इससे अंदाज़ा लगाइये कि शहरों में प्रजनन दर 1.6 रह गई है, जबकि गांवों में यह 2.1 प्रतिशत है। अगर राज्यों की बात करें तो बिहार 3, मेघालय में 2.9, यूपी में 2.4, झारखंड 2.3 और मणिपुर में 2.2 है।
जन्मदर का ताल्लुक शिक्षा के स्तर से होता है, पर बेशर्मी यह है कि भाजपा इसके हल अर्थात शिक्षा के स्तर को बढ़ाने पर मंथन करने की जगह इसे भी नफरत का हथियार बनाती है।
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