हर शय से दिलनशी है, यह बागबाँ हमारा
हर रंग-ओ-खुशबुओं से हर सूं सजा हुआ है
गुलशन सा खिल रहा है, हिन्दोस्ताँ हमारा
हो ताज-क़ुतुब-साँची, गांधी-अशोक-बुद्धा
सारे जहाँ में रौशन हर इक निशाँ हमारा
हिंदू हो या मुसलमाँ, सिख-पारसी-ईसाई
यह रिश्ता-ए-मुहब्बत, है दरमियाँ हमारा
सारे जहाँ में छाया जलवा मेरे वतन का
हर दौर में रहा है, भारत जवाँ हमारा
हमने सदा उठाया इंसानियत का परचम
हरदम ऋणी रहा है, सारा जहाँ हमारा
- शाहनवाज़ 'साहिल'
आपने लिखा...
ReplyDeleteऔर हमने पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 27/01/2016 को...
पांच लिंकों का आनंद पर लिंक की जा रही है...
आप भी आयीेगा...
धन्यवाद!
Deleteबेहतरीन-----जय हिन्द
ReplyDeleteधन्यवाद कंचनलता चतुर्वेदी जी!
Deletekhoobsoorat vichaar....:)
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