जिस तरह से मेरा नाम मेरी पहचान है उसी तरह मेरे सरनेम से मेरे खानदान की पहचान जुडी है। इससे मैं किसी से बड़ा या छोटा नहीं होता। कोई भी इंसान बड़ा या छोटा केवल और केवल अपने विचारों और उस पर अमल से होता है। दुनिया में हर इंसान बराबर है। ज़ात/बिरादरी और मज़हब के नाम से जुडी इस छोटे-बड़े की ज़ंजीरों से निजात पाना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
इसके लिए ज़रूरत अपना सरनेम छोड़ने की नहीं बल्कि घटिया विचारों को छोड़ने की है। ऐसी सोच वालों की इस तरह की सोच का खुलकर विरोध कीजिये। जिस तरह मस्जिद में बिना भेदभाव कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होते है, आप ठीक उसी तरह दिलों में सबको बराबरी का भागिदार बनाइये।
उठिए, आवाज़ उठाइये!
विचारणीय
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (05-11-2013) भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर : चर्चामंच 1420 पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
दीपावली के पंचपर्वों की शृंखला में
भइया दूज की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : उर्जा के वैकल्पिक स्रोत : कितने कारगर
नई पोस्ट : कुछ भी पास नहीं है