क्या विकास का फटा ढोल बजाने वाली सरकारों के पास सड़कों पर दर-बदर की ठोकरे खाने वाले मानसिक विक्षिप्त लोगो के लिए कोई प्लान नहीं है? उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है? उनकी मदद के लिए कोई बजट नहीं? या कोई ऐसा बिल जो मंत्रिमंडल समूह ने अप्रूव कर दिया हो या लोकसभा/राज्यसभा में हो? 
कुछ मानवीय संवेदनाएं बची हैं या बस वोटरों को ही लुभाया जाएगा? 
नहीं, बस यूँ ही मालूम कर लिया... सुना है आजकल 'भारत निर्माण' हो रहा है..
 

 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
मानसिक रूप से विक्षिप्त थोकबंद वोटों की जमात नहीं हैं शाहनवाजजी,इसलिए वे भारत निर्माण में हिस्सेदार भी नहीं हैं.
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