आम है क्या?
है आज समय जागने का

है आज समय जागने का
है आज समय जागने का,
सो रहे हो आज क्यूँ?
गर हौसलों में दम नहीं तो
जी रहे हो आज क्यूँ?
हो रही मुल्क की दुर्गति,
सब कह रहे हैं प्रगति।
है यही अगर प्रर्गति तो
रो रहे हो आज क्यूँ?
धोखाधड़ी में लीन सब,
है लूटना ही दीन अब।
सब उंगलियां है सामने,
खुद किया क्या है आपने?
है लूटना ही दीन तो
बैचेन फिर हो आज क्यूँ?
हर ओर भ्रष्टाचार है,
सबका यही विचार है।
गर हुए गम से त्रस्त हम,
फिर खुद हुए क्यों भ्रष्ट हम।
है गम का यही सबब तो
गम पी रहे हो आज क्यूँ?
जहां दुकानें है धर्म की,
क्या कीमत होगी कर्म की?
यह मर्म ही पता नहीं,
खुश हो रहे हो आज क्यूँ?
है आज समय जागने का...
- शाहनवाज़ 'साहिल'
Keywords:
Hindi poem, kavita, hai aaj samay jagne ka, rashtra, desh bhakti, jago re, हिंदी
ओबामा पर चढ़ा भारतीय रंग
"सरदार ओबामा सिंह"
हरिभूमि में: "निगम की चाल!"
लेकिन यहां भी डरने की कोई बात नहीं है, ऐसे फालतू लोगो की आवाज़ नक्कार खाने में तूती बजाने जैसी ही होती है।’
रोहतक ब्लोगर मिलन
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| मूंछों में मेरा नया अवतार! | 
संजय भास्कर भाई ने वर्तिनी में होने वाली गलतियों को अपनी कमजोरी बताया, वहीँ राज भाटिया जी भी इसे ही अपनी कमजोरी मानते हैं. उपस्थित सभी साथियों की यही राय थी, कि ब्लोगिंग के ज़रिए ना केवल भाषा में सुधर हो रहा है बल्कि कई और महत्त्वपूर्ण बातों को सीखने का मौका मिल रहा है. नीरज जाट जी जैसे ब्लोगर्स केवल ब्लॉग लेखकों के लिए ही नहीं वरन अलग-अलग क्षेत्रों के ज़रूरतमंद लोगों के लिए वरदान होंगे और हो भी रहे हैं.
योगेन्द्र मौदगिल जी की एकता और सौहार्द पर लिखी लाजवाब पंक्तियाँ "मस्जिद की मीनारें बोलीं, मंदिर के कंगूरों से, संभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से.." पढ़कर सतीश सक्सेना जी ने उनका परिचय कराया. वहीँ पता चला कि केवल राम जी तो ब्लॉग पर पूरी पी.एच.डी. ही कर रहे हैं.
 अजय कुमार झा जी ने बताया कि कैसे अब लोग ब्लोग्वानी की तरह चिटठाजगत की भी टांग खींचने लगें हैं, आखिर यह सब कैसे रुकेगा? उनका सुझाव था कि हमें सभी ब्लॉग-संकलकों पर अपना ब्लॉग सम्मिलित करना चाहिए. ललित जी ने बताया कि कुछ ब्लोगर ब्लोगिंग के ज़रिये अच्छा-खासा पैसा कम रहे हैं, वह जानने के इच्छुक थे कि आखिर कैसे? उनकी इसके लिए एक कार्यक्रम भी रखने की योजना है. वहीँ मैंने बताया कि मेरे ब्लॉग प्रेमरस.कॉम का लक्ष्य तो है प्रेम और सौहार्द फैलाना लेकिन मैं अपनी विज्ञापन पृष्ठभूमि के कारण ब्लॉग जगत में ब्लोगर्स के आर्थिक लाभ की संभावनाओं को तलाशता रहता हूँ. मैंने ललित जी वादा किया कि जल्द ही इस पर पूरी तरह शोध करके सभी संभावनाओं को सबके सामने रखूँगा. हालाँकि मेरा भी यह मानना है कि व्यक्तिगत रूप में हिंदी ब्लॉग जगत में आर्थिक लाभ ढूँढना अभी दूर की कोडी है, लेकिन सामूहिक रूप से प्रयास होने पर यह आज भी असंभव नहीं है. इस पर मेरा विचार यह भी था, कि इस तरह का प्रोग्राम ऐसे डिजाईन होना चाहिए जिससे कि तकनिकी जानकारी ना रखने वाले ब्लोगर बंधू भी आसानी से इसका फायदा उठा सकें.
अजय कुमार झा जी ने बताया कि कैसे अब लोग ब्लोग्वानी की तरह चिटठाजगत की भी टांग खींचने लगें हैं, आखिर यह सब कैसे रुकेगा? उनका सुझाव था कि हमें सभी ब्लॉग-संकलकों पर अपना ब्लॉग सम्मिलित करना चाहिए. ललित जी ने बताया कि कुछ ब्लोगर ब्लोगिंग के ज़रिये अच्छा-खासा पैसा कम रहे हैं, वह जानने के इच्छुक थे कि आखिर कैसे? उनकी इसके लिए एक कार्यक्रम भी रखने की योजना है. वहीँ मैंने बताया कि मेरे ब्लॉग प्रेमरस.कॉम का लक्ष्य तो है प्रेम और सौहार्द फैलाना लेकिन मैं अपनी विज्ञापन पृष्ठभूमि के कारण ब्लॉग जगत में ब्लोगर्स के आर्थिक लाभ की संभावनाओं को तलाशता रहता हूँ. मैंने ललित जी वादा किया कि जल्द ही इस पर पूरी तरह शोध करके सभी संभावनाओं को सबके सामने रखूँगा. हालाँकि मेरा भी यह मानना है कि व्यक्तिगत रूप में हिंदी ब्लॉग जगत में आर्थिक लाभ ढूँढना अभी दूर की कोडी है, लेकिन सामूहिक रूप से प्रयास होने पर यह आज भी असंभव नहीं है. इस पर मेरा विचार यह भी था, कि इस तरह का प्रोग्राम ऐसे डिजाईन होना चाहिए जिससे कि तकनिकी जानकारी ना रखने वाले ब्लोगर बंधू भी आसानी से इसका फायदा उठा सकें. रोहतक के घमासान में भिड़ने वाले पहलवान ब्लोगर्स थे:
खुशदीप सहगल भाई
राज भाटिया जी
योगेंद्र मौदगिल जी
निर्मला कपिला जी
संगीता पुरी जी
सतीश सक्सेना जी
ललित शर्मा जी
नरेश सिंह राठौड़ जी
डॉ अनिल सवेरा जी
डॉ प्रवीण चोपड़ा जी
डॉ अरुणा कपूर जी
अलबेला खत्री जी
अजय कुमार झा
राजीव तनेजा
संजू तनेजा
संजय भास्कर
अंतर सोहिल
नीरज जाट
केवल राम
हरदीप राणा (कुंवर जी)
अगर भूलवश किसी का नाम लिखने से रह गया हो तो कृपया सूचित कर दें.
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| ब्लोगर्स मिलन की लाइव रिपोर्टिंग | 
| पहली रिपोर्ट जांचते राज भाटिया जी.  | 
Keywords: blogger milan, meet, rohtak, tiryal jheel
रोंग नंबर
एक व्यक्ति अपने कार्यालय से घर पर फ़ोन करता है तो एक अजीब महिला जवाब देती है:
महिला: नौकरानी
व्यक्ति: लेकिन हमारे घर पर तो कोई नौकरानी नहीं है?
महिला: मुझे आज सुबह ही घर की मालिकिन ने रखा है.
व्यक्ति: खैर! मैं उसका पति हूँ, क्या वह वहां पर है?
महिला: उम्म्म्म.... परर्रर.... वह तो ऊपर... अपने बेडरूम में किसी और व्यक्ति के साथ है, उनकी आवाजों से तो मुझे लगा कि वह उसका पति है.
इतना सुनकर व्यक्ति को गुस्से में लाल-पीला हो जाता है.
व्यक्ति: सुनो! क्या तुम 50,000 रूपये कमाना चाहती हो?
महिला: (रोमांचित होते हुए) मुझे इसके लिए क्या करना होगा?
व्यक्ति: मैं चाहता हूँ, कि अलमारी में रखी मेरी गन उठाओ और मेरी पत्नी और उस घटिया आदमी को गोली मार दो.
वह महिला फ़ोन नीचे लटका कर चली जाती है... व्यक्ति उसके पैरों की आवाज़ और दो धमाकों की आवाज़ सुनता है. महिला वापिस आकर फ़ोन पर मालूम करती है:
महिला: मृत शरीरों के साथ क्या करना है?
व्यक्ति: इनको स्विमिंग पुल में फेंक दो!
महिला: क्या? लेकिन यहाँ तो कोई स्विमिंग पुल नहीं नहीं!
बहुत देर तक चुप रहने के बाद
व्यक्ति: उह....मम.... क्या यह 25xx43xx न. है?
महिला: नहीं!
व्यक्ति: ओह्ह.... माफ़ करना.... रोंग नंबर...
keywords: critics, Wrong Number
ब्लॉगर बिरादरी और उड़न तश्तरी
दिल्ली में दिखाई दे रहा हर ओर उजाला है
इक मायावी तश्तरी ने यहाँ पहरा डाला है
हर ओर बेकरारी है, दीदार-ए-यार की
आंसू वोह गिर रहे हैं, जिन्हें अब तक संभाला है
अंतरजाल पर होते थे हर रोज़ जिसके दर्शन
महबूब-ए-ब्लोग्गिं रु-बरु, बस होने वाला है
दिल्ली के एक नुक्कड़ पर, नुक्कड़ का है आयोजन
सारी ब्लॉगर बिरादरी को, न्यौता दे डाला है
क्या अजब बिरादरी है, ना कोई हिन्दू ना मुसलमाँ
खुशियों में झूमने का यह अवसर निकाला है
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords: ब्लॉगर मिलन, blogger meet
व्यंग्य - जैसे लोग वैसी बातें!
इसी कड़ी में मेरा व्यंग्य आज खबर इंडिया पर प्रकाशित हुआ है, जिसका शीर्षक है:
जैसे लोग वैसी बातें!
दुनिया में लोग भी बड़े अजीब तरह के होते हैं, हमारे देश में अधिकतर लोग तो ऐसे मिलेंगे कि किसी विषय पर जानकारी हो या ना हो मगर अपनी राय देना परमोधर्म! सोचिए ज़रा एक सरकारी बाबू, जिसे अपने कार्यालय की फाईल के स्थान की जानकारी नहीं होती है, किसी पान की दुकान पर खड़े होकर क्रिकेट मैच का लुत्फ लेते समय राय देता है कि अगर फिल्डर गली में ख़ड़ा होता तो कैच ज़रूर लपक सकता था, पता नहीं कैप्टन कैसी कैप्टनशिप कर रहा है? जो लड़का कभी एक भी गर्ल को फ्रैंड नहीं बना पात वह हमेशा दूसरों को सलाह देता है कि फलां लड़की को मनाने के लिए केवल उसका ही आईडिया फिट बैठेगा! और तो और अक्सर लोगों में इस बात पर ही सर-फुटव्वल होता रहता है कि चुनाव में उसकी पसंद का उम्मीदवार ही जीतेगा। अगर किसी ने गलती से दो-चार शेयर ले डाले तो वह समझता है कि शेयर बाज़ार में उससे अधिक किसी को जानकारी हो ही नहीं सकती है।
अच्छा एक हुनर में तो हमारा पूरा देश ही माहिर है और वह है चिकित्सा! हर परिवार के अधेड़ और बुज़ूर्ग तो पहले ही डॉक्टर थे, लेकिन आजकल के चार जमात पास लोग भी पूरी निपुणता के साथ दवाईयों के बारे में सलाह देते नज़र आएंगे। एक बात तो बहुत चैकाने वाली है, सभी कहते मिलेंगे कि झाड़-फूक बाबा दूसरों को लूटने की दुकान चलाते हैं। लेकिन हर अवसर पर उन्हीं से सलाह लेने पहुंच जाएंगे और कहेंगे कि मेरे महान बाबा के जैसा तो पूरी दुनिया में कोई नहीं है। वहीं उन बाबा महोदय को दूसरे बाबा के भक्त दूनिया का सबसे भ्रष्ट बाबा साबित करने पर तुले नज़र आएंगे! इस सब में बच्चे भी किसी से पीछे नहीं है, (जब माहौल ही ऐसा है तो वह भी क्या करें)। परिक्षा के समय बेचारे किताबों से नहीं बल्कि अपने इष्ट देव से सहायता मांगते और उनको प्रसाद का प्रलोभन देते दिखाई देंगे, "हे ईश्वर! इस बार अच्छे नंबर दिलवा दो, सवा सात रूपये का प्रसाद चढ़ाऊंगा!
एक मंत्री महोदय तो राय देने में महान निकले, राष्ट्रमंडल खेलों से पहले सीधे भगवान् को ही सलाह दे रहे थे कि उसको खेलों के बीच में तेज़ बारिश करनी चाहिए, तो वहीं एक टैक्सी चालक की राय थी कि खेल करवाना हमारी सरकार के बस का काम नहीं है। मतलब मंत्री जी को भगवान के और टैक्सी चालक को सरकार के कार्य में निपुणता हासिल होने का यकीन है? वैसे हमारा भारत है बहुत ही महान देश, जहां स्टेडियम की छत का एक टुकड़ा गिरने पर लोग अड़ जाते हैं कि पूरी छत गिरी है और इस बात पर भी शर्त लग जाती है, तो वहीं सट्टा इस बात पर लगता है कि बाढ़ आएगी या नहीं! और अगर आएगी तो कितने घर डूबंगे, कितने लोग मरेंगे? वैसे कुछ लोग तो खेलों की विफलता की प्रार्थना केवल इस लिए कर रहे थे कि सफलता का सेहरा कहीं सरकार को ना मिल जाए! क्या कह रहे हैं.....देश? अब देश का क्या है? उसकी चिंता कौन करे?
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- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords: khabarindia.com, khabar india, khabar indiya
दैनिक जागरण में: हिंदी से हिकारत क्यों
(यह लेख पहले 14 जुलाई को भी दैनिक जागरण में प्रकाशित हो चुका है)
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मेरे विचार से हमें अपना नजरिया बदलने की जरूरत है। हमें कार्यालयों में ज्यादा से ज्यादा हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए। कोरिया, जापान, चीन, तुर्की एवं अन्य यूरोपीय देशों की तरह हमें भी अपने देश की सर्वाधिक बोले जाने वाली जनभाषा हिंदी को कार्यालयी भाषा के रूप में स्थापित करना चाहिए और उसी स्थिति में अंग्रेजी प्रयोग करने की अनुमति होनी चाहिए, जबकि बैठक में कोई एक व्यक्ति ऐसा हो, जिसे हिंदी नहीं आती हो। कोरिया का उदहारण लें तो वह बिना इंग्लिश को अपनाए हुए ही विकसित हुआ है और हम समझते हैं की इंग्लिश के बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपनी भाषा को छोड़कर दूसरी भाषाओं को अधिक महत्व देते हैं। अंग्रेजी जैसी भाषा को सीखना या प्रयोग करना गलत नहीं है, लेकिन अपनी भाषा की अनदेखी करना गलत ही नहीं, बल्कि देश से गद्दारी करने जैसा है।
 एक बात और, हिंदी किसी एक प्रांत, देश या समुदाय की जागीर नहीं है, यह तो उसकी है, जो इससे प्रेम करता है। भारत में तो अपने देश की संप्रभुता और एकता को सर्वाधिक महत्व देते हुए वार्तालाप करने में हिंदी को प्राथमिकता देनी चाहिए। कम से कम जहां तक हो सके, वहां तक प्रयास तो निश्चित रूप से करना चाहिए। उसके बाद क्षेत्रीय भाषा को भी अवश्य महत्व देना चाहिए। आज महान भाषा हिंदी रोजगार के अवसरों में बाधक केवल इसलिए है, क्योंकि हमें अपनी भाषा का महत्व ही नहीं मालूम है।
एक बात और, हिंदी किसी एक प्रांत, देश या समुदाय की जागीर नहीं है, यह तो उसकी है, जो इससे प्रेम करता है। भारत में तो अपने देश की संप्रभुता और एकता को सर्वाधिक महत्व देते हुए वार्तालाप करने में हिंदी को प्राथमिकता देनी चाहिए। कम से कम जहां तक हो सके, वहां तक प्रयास तो निश्चित रूप से करना चाहिए। उसके बाद क्षेत्रीय भाषा को भी अवश्य महत्व देना चाहिए। आज महान भाषा हिंदी रोजगार के अवसरों में बाधक केवल इसलिए है, क्योंकि हमें अपनी भाषा का महत्व ही नहीं मालूम है। - शाहनवाज़ सिद्दीकी
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Keywords:
Rashtra Bhasha, National Language, Hindi, Dainik Jagran, मातृभाषा, हिंदी
अमीर ‘नहटौरी‘ की दो ग़ज़लें
 पेशे से शिक्षक अमीर 'नहटौरी' उत्तर प्रदेश में बिजनौर जिले के अंतर्गत आने वाले कस्बे नहटौर के रहने वाले हैं तथा जिले में उर्दू अदब के अच्छे जानकारों में शुमार होते हैं. एक समारोह में उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने गजलों से समा बाँध दिया. मालूम करने पर बताते हैं कि ब्लॉग जगत का बहुत नाम सुना है वह खुद भी ब्लॉग जगत में आने के बहुत इच्छुक है, परन्तु अभी तक अपना ब्लॉग नहीं बना पाए हैं. पेश-ए-खिदमत है उनकी दो ग़ज़लें :
पेशे से शिक्षक अमीर 'नहटौरी' उत्तर प्रदेश में बिजनौर जिले के अंतर्गत आने वाले कस्बे नहटौर के रहने वाले हैं तथा जिले में उर्दू अदब के अच्छे जानकारों में शुमार होते हैं. एक समारोह में उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने गजलों से समा बाँध दिया. मालूम करने पर बताते हैं कि ब्लॉग जगत का बहुत नाम सुना है वह खुद भी ब्लॉग जगत में आने के बहुत इच्छुक है, परन्तु अभी तक अपना ब्लॉग नहीं बना पाए हैं. पेश-ए-खिदमत है उनकी दो ग़ज़लें :----------------------------- (1) ------------------------------
तुमने कहा बस रिश्ता टूटा
हमसे पूछो क्या-क्या टूटा
दिल टूटा तो आपको क्या ग़म
जिसका टूटा उसका टूटा
तरक-ए-ताल्लुक यूं लगता है
रूह से जैसे नाता टूटा
दर्द ने ली अंगड़ाई ऐसी
ज़ख्म का इक-इक टांका टूटा
वोह भी पत्थर बनके बरसा
मैं भी शीशे जैसा टूटा
मैं मिट्टी का एक खिलौना
जितना बचाया उतना टूटा
हमसें जूनूं में अक्सर यारो
जो भी टूटा अपना टूटा
देखा अमीर इस राहे वफा में
क्या-क्या छूटा, क्या-क्या टूटा
- अमीर 'नहटौरी'
----------------------------- (2) ------------------------------
अपनों के कुछ ऐसे करम थे बेग़ानों को याद किया
देख के अपने घर की तबाही, वीरानों को याद किया
देखें छलकते आँख से आंसू, पैमानों को याद किया
होश में रहने वालों ने भी, मयख़ानों को याद किया
गुलशन में जब कलियां महकी, भंवरों का भी ज़िक्र छिड़ा
महफिल में जब शम`आ जली तो, परवानों को याद किया
फैलाए जब जाल हवस ने हुस्न को तब एहसास हुआ
सच्चाई ने आँखें खोली, दिवानो को याद किया
प्यार का नग़मा फिर से ज़बां पर, आज हुआ क्या हमको ‘अमीर’
दर्द भरे कुछ भूले बिसरे, अफ़सानों को याद किया।
- अमीर 'नहटौरी'
Keywords: Ameer Nehtauri, Gazal, Urdu Adab
यह दिल्ली को क्या हुआ?
अच्छा वैसे तो शहर में पुलिस नज़र आती ही नहीं है, ट्रैफिक पुलिस भी पेड़ के पीछे छुप कर शिकार करती है! लेकिन यहां का नज़ारा देखकर दिल घबराने लगा, चप्पे-चप्पे पर पुलिस देखकर पेट में घुड़घुड़ाहट होने लगी! कहीं फिर से शहर में कोई आतंकवादी हमला तो नहीं हो गया है? फिर दिमाग ने थोड़ी मेहनत करके सुझाया कि झगड़े होने का खतरा लगता है! "हंस क्यों रहे हो? कभी-कभी अपना दिमाग़ भी मेहनत कर लेता है यार! अब इसमें कोई कूडा़ थोड़े ही भरा है?" कूड़े से सड़क पर ध्यान गया और उछल कर सर ऑटो की छत पर जा लगा! यह क्या? कहीं दूर-दूर तक कूडे का नामोनिशान तक नहीं है। हमारा नगर निगम और इतनी सफाई! ऊपर से सड़क पर इतनी कम भीड़ कि चलने का मज़ा ही किरकिरा हो जाए! गाड़ियों के हार्न से मनोरंजन के इतने आदि हो चुके हैं कि संगीत की ज़रूरत ही महसूस नहीं होती। लेकिन ना जाने क्यों शोर बिलकुल नहीं है? लाल बत्ती तक पर आज किसी को पहले भागने की जल्दी नहीं है। कितनी जिंदादिल थी दिल्ली? कुछ तो जोश में हरी बत्ती हुए बिना ही निकल जाते हैं, लेकिन लोगों में जोश गायब है, आज दिल्ली में कितना नीरसपन है? दिल्ली पहले कितनी हंसीन थी!

राष्ट्रमंडल खेल
शर्म का समय                                    या                                 गर्व का समय 

मेहमान घर पर हैं...
और हम अपने घर का रोना 
दुसरो के सामने रो रहे हैं 
वह हमारे रोने पर हंस रहे हैं और 
हम उनके हंसने पर खुश हो रहे हैं...
लड़ते तो हम हमेशा से आएं हैं
लेकिन समय हमेशा के लिए हमारे पास है
गलत बातों के विरुद्ध लड़ने के 
नैतिक अधिकार की भी आस है
लेकिन.......
हमें फिर भी लड़ने की जल्द बाज़ी है, 
क्योंकि मेहमान हमारे घर पर हैं
हमें बदनाम करने पर वह राज़ी हैं
सारा का सारा देश राजनीति का मारा है
'अभी नहीं तो कभी नहीं' हमारा नारा है
देश का क्या है? 
जब पहले नहीं सोचा 
तो अब ही क्यों?
 जय हो!
एक नज़र यहाँ भी: राष्ट्रमंडल खेलों के स्थल की तस्वीरें
मंदिर-मस्जिद बहुत बनाया
हर मज़हब को बहुत सजाया, आओ मिलकर देश सजाएँ
मंदिर-मस्जिद के झगड़ों ने लाखों दिल घायल कर डाले
अपने ख़ुद को बहुत हंसाया, आओ मिलकर देश हसाएँ
मालिक, खालिक, दाता है वो, सदा रहे मन-मंदिर में
उसका घर है बसा बसाया, आओ मिलकर देश बसाएँ
गाँव, खेत, खलिहान उजड़ते, आँखे पर किसकी नम है
इतना प्यारा देश हमारा, आओ मिलकर देश चलाएँ
अपने घर का शोर मचाया, दुनिया के दिखलाने को
अपने घर को बहुत दिखाया, आओ मिलकर देश दिखाएँ
नफरत के तूफ़ान उड़ा कर, देख चुके हैं जग वाले
प्रेम से कोई पार न पाया, आओ मिलकर प्रेम बढाएँ
मंदिर-मस्जिद पर मत बाँटो, हर इसाँ को जीने दो
भारत की गलियों में 'साहिल', चलो ख़ुशी के दीप जलाएँ
- शाहनवाज़ 'साहिल'
Keyword: bharat, india, mandir, masjid, friendship, love, war
व्यंग्य: निगम की तर्ज़ पर सफाई
 अपने एक मित्र के घर जाना हुआ, घर की साफ-सफाई देखकर दिल खुश हो गया। फोन पर बात करते हुए एक कोने में गया तो देखा परदे के पीछे कूड़ा भरा हुआ था। मतलब मेहमान की आमद पर कूड़े-करकट को छुपाया गया था। देखकर अहसास हुआ कि यह तो हमारे नगर निगम की नकल है! हमारी कॉलोनी में भी तो ठीक इसी तरह सफाई रहती है, लेकिन सड़क पर एक बड़ा सा बदबूदार कूड़ादान बनाया हुआ है। मज़े की बात तो यह है कि कूड़ा कू़ड़ेदान की जगह सड़क पर भरा रहता है। ज़रा सोचिए सड़क को खाली रखने के लिए क्या बेहतरीन योजना बनाई गई है। सड़क गंदी होगी तो लोग सड़क पर से गुज़रेंगे ही नहीं।
अपने एक मित्र के घर जाना हुआ, घर की साफ-सफाई देखकर दिल खुश हो गया। फोन पर बात करते हुए एक कोने में गया तो देखा परदे के पीछे कूड़ा भरा हुआ था। मतलब मेहमान की आमद पर कूड़े-करकट को छुपाया गया था। देखकर अहसास हुआ कि यह तो हमारे नगर निगम की नकल है! हमारी कॉलोनी में भी तो ठीक इसी तरह सफाई रहती है, लेकिन सड़क पर एक बड़ा सा बदबूदार कूड़ादान बनाया हुआ है। मज़े की बात तो यह है कि कूड़ा कू़ड़ेदान की जगह सड़क पर भरा रहता है। ज़रा सोचिए सड़क को खाली रखने के लिए क्या बेहतरीन योजना बनाई गई है। सड़क गंदी होगी तो लोग सड़क पर से गुज़रेंगे ही नहीं।- शाहनवाज़ सिद्दीकी
(दैनिक हरिभूमि के आज [20 सितम्बर] के संस्करण में प्रष्ट न. 4 पर मेरा व्यंग्य)
व्यंग्य: युवराज और विपक्ष का नाटक
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
भूकंप की अफवाह!
अब तक नींद तो उड़ ही चुकी थी, इसलिए सोचा ब्लॉग जगत में देखते हैं. देश में सबसे जागरूक ब्लॉगर ही होते हैं! [:-)] लेकिन चिटठा जगत पर एक भी पोस्ट भूकंप से सम्बंधित नहीं थी. जब कुछ नहीं मिला तो नवभारत टाइम्स और आजतक जैसी वेबसाइट खंगाली. यहाँ तक कि गूगल बाबा पर भी खोजने की कोशिश की, भूकंप विभाग की साईट पर भी देखा, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. अब खीज बढ़ रही थी, सुबह-सुबह ऑफिस के निलना होता है और इस भूकंप के खतरे ने नींद उड़ा दी थी. इसलिए दुबारा वहीँ फ़ोन कर के मालूम किया कि आखिर उन्हें किसने बताया कि भूकंप आने वाला है, लेकिन वहां भी किसी को खबर नहीं थी कि यह खबर आखिर किसने दी. हर कोई यही कह रहा था, कि उनको किसी रिश्तेदार अथवा जान-पहचान वाले ने बताया और वह स:परिवार डर के मारे घर से बाहर निकल आए.
अब तक रात के 3.15 बज चुके थे, पत्नी ने कहा परेशान क्यों हो रहे हैं, 3.30 होने वाले हैं, 15 मिनट ही तो इंतज़ार करना है, परिवार के साथ घर के बाहर चलते हैं. मेरे गुस्से का परा चढ़ चूका था, अब 15 मिनट तो क्या एक मिनट भी इंतज़ार नहीं कर सकता था. पत्नी से कहा सो जाओ और स्वयं भी चादर तान कर सो गया. सुबह उठकर देखा कि खुदा का शुक्र है सब-कुछ ठीक-ठाक है. अब तो पत्नी भी मान गई थी कि वाकई यह भूकंप की अफवाह भर थी [:-)]. लेकिन बेचारे मुरादाबाद और आस-पास के क्षेत्र के लोग, रात भर जिस डर से जागते रहे, वह एक झूटी अफवाह भर निकली! क्या मिलता है किसी को अफवाह फैला कर?
लोगो को भी चाहिए कि अगर कोई खबर पता चले तो सबसे पहले उसकी छानबीन करें तभी दूसरों तक पहुँचाएँ, वर्ना यूँ ही अफवाह फैलती आईं हैं और फैलती रहेंगी.
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords: Earthquake, moradabad, rampur, amroha, भूकंप, ज़लज़ला, हाल्ला
आपकी आँखों से आंसू बह गए
आपकी आँखों से आंसू बह गए,
हर इक लम्हे की कहानी कह गए।
मेरे वादे पर था एतमाद तुम्हे,
और सितम दुनिया का सारा सह गए।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
ईद मुबारक!
वैसे तो ईद का मतलब त्यौहार होता है और इस लिहाज़ से हर त्यौहार ईद ही कहलाएगा। चाहे वह यौम-ए-आज़ादी (स्वतत्रंता दिवस) हो अथवा दीपावली। मतलब अरबी में दीपों के त्यौहार को ईद-उल-दिवाली कहा जाएगा!
इस ईद है इसका नाम है ईद-उल-फित्र, यानी रमज़ान के पवित्र महीने के सभी रोज़े रखने की ख़ुशी मानाने का त्यौहार। यह ईद माह-ए-रमज़ान के बाद आती है और रोज़ेदारो के लिए तोहफा होती है। रमज़ान के महीने में रोज़े रखे जाते हैं जिनके द्वारा धैर्य, विन्रमता और अध्यात्म को आत्मसात किया जाता है।
रोज़े रखने के मक़सदों में से एक अहम मकसद ज़कात की अदायगी भी है। हर मुसलमान को रमज़ान के महीनें में अपनी ज़कात का पूरा-पूरा हिसाब लगा कर उसे अदा करना होता है, जो कि कुल बचत की 2.5 प्रतिशत होती है। जब कोई रोज़ा रखता हैं तो और बातों के साथ-साथ उसे भूख का भी अहसास होता है और साथ ही साथ अहसास होता है कि जो लोग भूखे-प्यासे हैं, अपनी बचत में से उन तक उनका हक यानि ज़कात पूरी-पूरी पहुचाई जाए। और इस अहसास के बाद यह आशा की जाती है कि सभी अपनी पूरी ज़कात अच्छी तरह से हिसाब लगा कर हकदारों तक पहुंचाएगा। अगर ज़कात बिना हिसाब-किताब के केवल अन्दाज़ा लगा कर ही दे दी गई तो ज़कात अदा नहीं होती है। वहीं अगर उसके हकदार यानि सही मायने में ज़रूरत मंद तक नहीं पहुंचाई गई और यूँ ही दिखावे करके मागने वालों को दे दी गई तब भी वह अदा नहीं होती है।
इसका मतलब यह हुआ कि बिना सोचे समझे ज़कात दे देने से फर्ज़ अता नहीं होता है। अगर किसी को अपनी कमाई में से हिस्सा दिया जाता है तो पूरी तरह छानबीन करके ही दिया जाना चाहिए। अक्सर लोग यतीम और गरीब बच्चों की पढ़ाई और पालन-पोषण में लगे मदरसों को ज़कात देना उचित समझते हैं। लेकिन वहां भी यह देखा जाना ज़रूरी है कि वहां पढ़ाई तथा रहन-सहन उचित तरीके से हो रहा हो। अर्थात पैसों का सदुपयोग सुनिश्चित होना आवश्यक है, वर्ना ज़कात अदा नहीं होगी और दुबारा देनी पड़ेगी।
ईद की खुशियां चांद देखकर मनाई जाने लगती हैं। ईद का चांद बेहद खूबसूरत और नाज़ूक होता है, तथा थोड़ी देर के लिए ही नमूदार (दिखाई) होता है। ईद के चांद और चांदरात पर तो शायरी की ढेरों किताबें लिखी गई हैं। इस दिन सभी लोग सुबह जल्दी उठ कर नहाने के बाद फज्र की नमाज़ अता करते हैं। क्योंकि यह दिन रमज़ान के महीने की समाप्ती पर आता है इसलिए इस दिन रोज़ा रखना मना होता है। इसलिए सुबह थोड़ा बहुत नाश्ता किया जाता है, इसमें सिवंईया, खजला, फैनी, शीर तथा खीर जैसे मीठे-मीठे पकवान बनाए जाते हैं। उसके बाद ईद की नमाज़ की तैयारी की जाती है। ईद की नमाज़ से पहले हर इन्सान का फितरा अता किया जाना आवश्यक होता है। फितरा एक तयशुदा रकम होती है जो कि गरीबों को दी जाती है। ईद की नमाज़ वाजिब होती है, अर्थात इसको छोड़ना गुनाह होता है। ईद की नमाज़ पूरी होने के बाद सिलसिला शुरू होता है एक-दुसरे से गले मिलने का, जो कि ख़ास तौर पर पुरे दिन चलता है और बदस्तूर पुरे साल जारी रहता है। और हाँ, घर पहुँच कर बच्चे ईदी के लिए झगड़ने लगते हैं, इस प्यार भरी तकरार के ज़रिये बच्चों को पैसे अथवा तोहफा के रूप में ईदी लेने में बड़ा मज़ा आता है। जब दोस्तों और रिश्तेदारों के घर जाते हैं तो वहां भी बच्चों को ईदी दी जाती है।
ईद खुशियां और भाईचारे का पैग़ाम लेकर आती है, इस दिन दुश्मनों को भी सलाम किया जाता है यानि सलामती की दुआ दी जाती है और प्यार से गले मिलकर गिले-शिकवे दूर किए जाते हैं।
ब्लॉग जगत के सभी लेखकों, टिप्पणीकारों तथा पाठकों को ईद-उल-फित्र की दिल से मुबारकबाद!
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords: Eid Mubarak, Festival, Eid Greetings
कैसी कैसी फितरत!
लड़के (नर्क में): यार यमराज की लड़की क्या माल है बाप! चलती है तो लगता है फूल गिर रहे हैं। नर्क के सारे लड़के उसके ही पीछे है, एक बार बात करने का मौका मिल जाए!
(संदेशः छिछौरे नर्क में भी छिछौरे ही रहते हैं!)
लड़कियां (स्वर्ग में): इस अप्सरा की नेल पाॅलिश क्या टैकी है यार और वोह ड्रेस देखी उसकी! यह इतनी पतली कैसे है? मैं तो डाईटिंग कर-कर के थक गई, फिर भी वेट (वज़न) कम ही नहीं होता।
(संदेशः यहां भी दूसरी से जलन)
 अधेड़ उम्र के साथी (नर्क में): अरे भाई, कल पड़ोस के आग के पार्क में सुबह-सुबह जौगिंग कर रहा था, (बाई आंख मारते हुए) वोह लल्लन की छोरी आग में भी गुलज़ार लग रही थी।
अधेड़ उम्र के साथी (नर्क में): अरे भाई, कल पड़ोस के आग के पार्क में सुबह-सुबह जौगिंग कर रहा था, (बाई आंख मारते हुए) वोह लल्लन की छोरी आग में भी गुलज़ार लग रही थी। पहलाः अरे मिंया अब इतनी उम्र कहाँ कि उस नवयौवना का पीछे कर पाते, आंखो से ही दूर तक छोड़ आए।
(संदेशः इस उम्र में भी....!)
 बाप और बेटा (धरती पर): प्रभु हमें कहां छोड़ दिया? वोह दोनों चाहे जैसी भी थी, लेकिन............. नौटंकी के बिना अब तो खाना भी हज़म नहीं होता है! प्लीज़ हमें भी उनके पास भेज दीजिये!
बाप और बेटा (धरती पर): प्रभु हमें कहां छोड़ दिया? वोह दोनों चाहे जैसी भी थी, लेकिन............. नौटंकी के बिना अब तो खाना भी हज़म नहीं होता है! प्लीज़ हमें भी उनके पास भेज दीजिये!...
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Keywords: Hindi Critics, फितरत
 


























 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
