मज़बूत लोकतंत्र और भारतीय संस्कृति का संगम विश्व को नई राह दिखा सकता है

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  • Shah Nawaz
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  • यह बेहद फख्र की बात है कि हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं। मतलब देश के हर हिस्से में किसी ज़ोर-ज़बरदस्ती की नहीं बल्कि जनता की मर्ज़ी से चुनी हुई सरकार प्रशासक का काम करती है। देश के किसी भी हिस्से में चाहे किसी भी दल की सरकार हो, वो उस हिस्से के हर नागरिक की सरकार होती है। और हर नागरिक का यह फ़र्ज़ है कि नीचा दिखाने की नीयत की जगह सुधार की नीयत से कमियों को सामने लाए। जो कि किसी भी सरकार के पक्ष की ही बात है, क्योंकि जब तक कमिंयाँ सामने नहीं आएंगी, तब तक सुधार कैसे होगा? ऐसे ही देश की हर सरकार को जनता के हर सवाल का जवाब देना चाहिए, जहाँ सरकार की गलती है उसे ठीक करने की कोशिश होनी चाहिए और जहाँ जनता के तथ्य गलत हैं, वहाँ असली तस्वीर सामने रखनी चाहिए।

    लोकतंत्र का मतलब ही यही है कि अगर सरकार जनता के हित में सुधार करती है तो ठीक है, वरना अगले चुनाव में हिसाब कर लिया जाता है। हालांकि लोकतंत्र का असल मक़सद तभी कामयाब होगा जबकि देश में पूर्णत: साक्षरता होगी। तभी देश का हर नागरिक अपने वोट की कीमत समझ पाएगा, धार्मिक, जातीय, आर्थिक प्रलोभनों या फिर भावनाएँ भड़काने वालो के बहकावे में आए बिना अपने भविष्य के लिए वोट करके सक्षम सरकार बनाने में योगदान दे पाएगा।

    देश को वापिस विश्वगुरु बनाना है तो देश की जनता में इतनी जागरूकता होना ज़रूरी है। विश्व ने पूंजीवादी और साम्यवादी दोनो तरह के मॉडल फेल हो चुके हैं। विश्व अब किसी नई व्यवस्था की तलाश में है और आज पूरा विश्व हमारी ओर देख रहा है। देश मे विश्व को नई व्यवस्था देने की पूरी काबिलियत मौजूद है। माँ भारती के बेटे-बेटीयाँ मिलकर विश्व को एक ऐसी व्यवस्था दे सकते हैं जो मनुष्य को विकास की एक अलग परिभाषा सीखा सकती है। जिसमें विश्व के हर जीव ही नहीं बल्कि प्रकृति के भी उद्धार की संभावनाएं हों। जो अमीर-गरीब, काले-गोरे, धर्म-जाती के भेदभाव को समाप्त करके सारी मनुष्य जाति को समकक्ष ला सकती है। और ऐसी व्यवस्था बनाने में लोकतंत्र का हमारा मॉडल कामयाब भूमिका बना सकता है, बशर्ते कि हम इसे सही तरह से लागू कर पाएं, अर्थात लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका के प्रति जागरूकता ला पाएं।

    विश्व की व्यवस्थाओं के ध्वस्त होने का कारण उनके अंदर का कट्टरपन है। हर व्यवस्था सिर्फ अपने को ही सर्वोपरि समझती और दूसरे को कुचलती आई है। जबकि छोटी-मोटी कमियों के बावजूद भी भारतीय संस्कृति में कट्टरता का स्थान कभी नहीं रहा, हम हमेशा ही दूसरे विचारों को सम्मान देते और अपनाते आए हैं, और कारण रहा कि यहाँ कट्टरता की हर कोशिश समय-समय पर हारती आई है। हम कट्टरता की जगह सबको साथ लेकर चलने वाले अर्थात वसुधैव कुटुम्बकम की बात करने वाले लोग हैं, यही हमारी संस्कृति की सच्चाई है।

    एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण होगा जहाँ अमीर-गरीब का भेद इतना ज़्यादा ना हो कि अमीर बेहद अमीर हों और गरीब को जीना दूभर हो जाए। ऐसी व्यवस्था बनानी होगी कि धरती पर जो भी बच्चा पैदा हुआ है उसे दूसरे बच्चों के बराबर ही आगे बढ़ने का मौक़ा मिले। हमारे देश में प्राकृतिक संसाधन पुरे विश्व से ज़्यादा हैं और इसीलिए हमें ऐसी व्यवस्था बनाई होगी जो प्रकृति की रक्षा करती हो और प्रकृति का फायदा बिना अमीरी-गरीबी के भेदभाव के हर उस बच्चे को मिल सके जो आगे बढ़ने की योग्यता रखता हो।

    पूरे विश्व को इस तरह की एक नई व्यवस्था देने के सारे गुण हमारे देश की संस्कृति और आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था के समागम में मौजूद है, आवश्यकता उनमें आई कमियों को दूर करने भर की हैं। जैसा कि मैंने ऊपर बताया कि लोकतंत्र के मॉडल में आई कमियों को दूर करने के लिए और साथ ही साथ समाज में फैलने शुरू हुए कट्टरपंथ के वायरस को दूर करने के लिए जागरूकता की आवश्यकता है। अगर हम इसमें कामयाबी पा लेते हैं तो नई राह बनाई जा सकती है और विश्व पटल पर एक नया मॉडल पेश किया जा सकता है। कामयाबी अवश्य प्राप्त होगी, पर सामूहिक प्रयास करना होगा, ऐसी कोशिशें अब देश के हर समाज और हर वर्ग को मिलकर करनी होगी।

    जय हिंद

    We can show a new path to the world through the combination of our rich Indian culture and strong democracy.

    11 comments:

    1. बहुत अच्छा लिखा है, देश की व्यवस्था बदलने की जरूरत है, इसके लिए जनता को पार्टी पॉलिटिक्स से अलग होना होगा!

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      1. बिल्कुल,देश हित में सोचना होगा

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    2. सहमत....देश की व्यवस्था को सार्थक तरीके से बदलने के लिए यहाँ की जनता का पढ़ा लिखा होना बेहद ज़रूरी है।

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      1. सही कहा राजीव भाई

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    3. व्यवस्था में। डाला। के लिए शिक्षा का प्रसार बहुत बारूदी है और वो भी रेशनल शिक्षा का ... स्वतंत्रता का भाव लाना ज़रूरी है ... शायद तभी मानसिकता बादल सके और देश का सही अर्थ में विकास हो ...

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    4. देश की व्यवस्था को सम्पूर्ण तरीके से बदलने की ज़रुरत है. हर राज्य या देश में नागरिकों द्वारा ही सरकार चुनी जाती है, लेकिन पदस्थापित होते ही नज़रिया बदल जाता है. जनता चुने भी तो किसे? जबतक समाजवादी सोच विकसित नहीं होगा सार्थक परिवर्तन संभव नहीं. बहुत अच्छा और विचारणीय आलेख.

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    5. लोकतंत्र की संभावनायें बहुत बिस्तृत है, अगर संविधान का सम्मान करते हुए चलें तो विश्व का श्रेष्ठ. लोकत्तंत्र होगा ।

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    6. लोकहित में सब लोग पूर्वाग्रह छोड़कर जुट जाएँ तो सब संभव है.

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    7. सम्पूर्ण तरीके से बदलने की ज़रुरत है देश की व्यवस्था को

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