24 मार्च तक बहुत सारे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में लोग सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद आ-जा रहे थे और इस कारण लॉक डाउन होने पर फंस गए। क्योंकि तब तक सरकार ही गंभीर नहीं थी, प्रदर्शन चल रहे थे, सामाजिक-राजनैतिक समारोह / पार्टियाँ आयोजित हो रही थीं, सरकारें गिर रही, बन रही थीं, संसद सत्र चल रहा था। सरकारी गंभीरता अचानक 20-21 मार्च से नज़र आनी शुरू हुई।
हजूर साहिब, महाराष्ट्र में फंसे ऐसे ही तीर्थयात्री...
फ़ासिज़्म के पेरुकार
-
फ़ासिज़्म की एक पहचान यह भी है कि इसके पेरुकार अपने खिलाफ उठने वाली आवाज़ को
बर्दाश्त नहीं कर सकते, हर हाल में कुचल डालना चाहते हैं!