प्यार की है फिर ज़रूरत दरमियाँ 
हर तरफ हैं नफरतों की आँधियाँ 
नफरतों में बांटकर हमको यहाँ 
ख़ुद वो पाते जा रहे हैं कुर्सियाँ 
खुलके वो तो जी रहे हैं ज़िन्दगी 
नफ़रतें हैं बस हमारे दरमियाँ 
जबसे देखा है उन्हें सजते हुए 
गिर रहीं हैं दिल पे मेरे बिजलियाँ 
और मैं किसको बताओ क्या कहूँ 
सबसे ज़्यादा हैं मुझी में खामियाँ 
आंखें, चेहरा सब बयाँ कर देते हैं 
इश्क़ को समझों नहीं तुम बेजुबाँ 
जब मुहब्बत का तेरा दावा है तो 
घूमता है होके फिर क्यों बदगुमाँ 
जो मेरा है वो ही तेरा है अगर 
किसको देता है बता फिर धमकियाँ 
- शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल' 
बहर: बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़ 
अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन 
वज़्न: 2122 - 2122 - 212 
 

 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteशुक्रिया संजय भाई
Deleteशुक्रिया दिग्विजय जी
ReplyDeleteवाह !बेहतरीन 👌
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर ग़ज़ल
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