प्यार की है फिर ज़रूरत दरमियाँ
हर तरफ हैं नफरतों की आँधियाँ
नफरतों में बांटकर हमको यहाँ
ख़ुद वो पाते जा रहे हैं कुर्सियाँ
खुलके वो तो जी रहे हैं ज़िन्दगी
नफ़रतें हैं बस हमारे दरमियाँ
जबसे देखा है उन्हें सजते हुए
गिर रहीं हैं दिल पे मेरे बिजलियाँ
और मैं किसको बताओ क्या कहूँ
सबसे ज़्यादा हैं मुझी में खामियाँ
आंखें, चेहरा सब बयाँ कर देते हैं
इश्क़ को समझों नहीं तुम बेजुबाँ
जब मुहब्बत का तेरा दावा है तो
घूमता है होके फिर क्यों बदगुमाँ
जो मेरा है वो ही तेरा है अगर
किसको देता है बता फिर धमकियाँ
- शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'
बहर: बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
वज़्न: 2122 - 2122 - 212
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 12 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया दिग्विजय जी
Deleteहर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteशुक्रिया संजय भाई
Deleteवाह !बेहतरीन 👌
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गजल है आदरणीय |
ReplyDeleteHindi Vyakran