उल्फत में इस तरह से निखर जाएंगे एक दिन
हम तेरी मौहब्बत में संवर जाएंगे एक दिन
एक तेरा सहारा ही बहुत है मेरे लिए
वर्ना तो मोतियों से बिखर जाएंगे एक दिन
वर्ना तो मोतियों से बिखर जाएंगे एक दिन
हमने बना लिया है मुश्किलों को ही मंज़िल
यूँ ग़म की हर गली से गुज़र जाएंगे एक दिन
यूँ ग़म की हर गली से गुज़र जाएंगे एक दिन
जिनके लिए लड़ती है उनकी माँ की दुआएँ
दुनिया भी डुबोये तो उभर जाएंगे एक दिन
दुनिया भी डुबोये तो उभर जाएंगे एक दिन
यह दिल रहेगा आशना तब तक ही बसर है
वर्ना तेरे शहर से निकल जाएंगे एक दिन
वर्ना तेरे शहर से निकल जाएंगे एक दिन
- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी 'साहिल'
(बहर: हज़ज मुसम्मिन अख़रब मक़फूफ महज़ूफ)
वाह, बहुत सुंदर भाव की ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद एम वर्मा जी... 🙏
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 15/04/2019 की बुलेटिन, " १०० वीं जयंती पर भारतीय वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह जी को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद शिवम भाई... 🙏
Deleteबहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे... बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद संजय भाई... 🙏
DeleteVery nice post.
ReplyDeleteSugar & Coco
बहुत उम्दा ग़ज़ल, बधाई.
ReplyDeleteआप यहाँ बकाया दिशा-निर्देश दे रहे हैं। मैंने इस क्षेत्र के बारे में एक खोज की और पहचाना कि बहुत संभावना है कि बहुमत आपके वेब पेज से सहमत होगा।
ReplyDeleteBA 2nd year timetable
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