जैसा कि मैं पहले भी अपनी पोस्ट में बता चूका हूँ कि इस्लाम के अनुसार अन्य जानवरों के साथ-साथ पेड़-पौधों में भी जीवन होता है , चाहे जानवर हो या पेड़-पौधे, दोनों को ही दुःख का अहसास होता है, यह अलग बात है की वह अपने दुःख का प्रदर्शन करने में असमर्थ हैं। अन्य जानवरों की ही तरह पेड़-पौधों का साँस लेना, खाना-पीना, प्रकृति को आगे बढाने के लिए अंडे देना बिलकुल अन्य जीवों की ही तरह होता है और यह केवल इस्लाम ही नहीं बल्कि हिन्दू धर्म तथा विज्ञान का भी मत है। लेकिन हर एक जीव को जीवित रहने के लिए दूसरे को भोजन बनाना प्रकृति का नियम है। ठीक इसी तरह मरने के बाद दफ़नाने के विधि में शरीर ज़मीन के अन्दर रहने वाले दूसरे जीवों के भोजन के काम में आता है।
अगर बात कुर्बानी की करें तो इसमें एक बात तो यह है कि मुसलमान कुर्बानी केवल ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) पर ही नहीं बल्कि आम जीवन में अक्सर करते रहते हैं। जो कि कई तरह की होती है जैसे इमदाद के लिए जानवर की कुर्बानी, सदके के लिए कुर्बानी और ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) पर कुर्बानी इत्यादि।
- इसमें से इमदाद अर्थात मदद करने की नियत से की गई कुर्बानी के द्वारा अपने घर वालों, रिश्तेदारों, पडौसियों और अन्य गरीबों के लिए भोजन की व्यवस्था की जाती है और इस तरह के भोजन को केवल घरवालो को ही नहीं खिलाया जाता बल्कि गरीब रिश्तेदारों, पडौसियों और अन्य गरीबों को भी भोजन कराया जाता है।
- दूसरी तरह की कुर्बानी अर्थात सदके के लिए की गई कुर्बानी से बनने वाले भोजन को केवल और केवल गरीब लोगों को खिलाया जाता है, इसमें घरवालों का हिस्सा नहीं होता।
- तथा तीसरी तरह की कुर्बानी अर्थात ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) वाली कुर्बानी के लिए अच्छा तरीका यही है कि मांस अथवा पके हुए भोजन के तीन हिस्से किये जाए और उसमें से एक हिस्सा अपने घर वालों के लिए, दूसरा हिस्सा गरीब रिश्तेदारों के लिए तथा तीसरा हिस्सा अन्य गरीब लोगों के लिए निकाला जाए। हालाँकि इसमें कोई ज़बरदस्ती नहीं है, बल्कि जिसकी जैसी आस्था है वह उस हिसाब से भी बंटवारा कर सकता है।
कुर्बानी क्या है?
इसमें बहुत सी अन्य दलीलों के अलावा एक बात यह भी है कि इन तीनो ही तरीकों में कोई भी मर्द / औरत चाहता / चाहती तो उसके द्वारा अपने जानवर अथवा पैसे को खुद अपने काम में प्रयोग किया जा सकता था। लेकिन उसने अपने अन्दर के लालच को कुर्बान करके अपने घरवालो, गरीब रिश्तेदारों तथा अन्य गरीबों को लिए भोजन की व्यवस्था की।
अगर बात कुर्बानी के तरीके की जाए तो यह जान लेना आवश्यक है कि मुसलमान हर एक धार्मिक कार्य पैगम्बर मुहम्मद (स.) के तरीके पर करते है, जिसे कि सुन्नत अथवा सुन्नाह कहा जाता है। सुन्नत के अनुसार ऊपर के दोनों तरीकों में भोजन के लिए मांसाहार अथवा शाकाहार दोनों में से किसी भी तरीके को अपनाया जा सकता है, लेकिन ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) के मौके पर केवल कुछ जानवरों को ही भोजन के तौर पर प्रयोग करने की इजाज़त है और वह भी कुछ शर्तों के साथ।
साथ ही यह बात भी जान लेना आवश्यक है कि इस्लाम में जानवरों और पेड़-पौधों पर खासतौर पर रहम और मुहब्बत का हुक्म है और भोजन जैसी आवश्यकता को छोड़कर उनका वध करना वर्जित है। यहाँ तक कि इसको बहुत बड़ा गुनाह और नरक में पहुंचाने वाला बताया गया है। बल्कि पेड़ों को पानी डालना तथा प्यासे जानवर को पानी पिलाने जैसे कामों के बदले में बड़े-बड़े गुनाहों को माफ़ करने जैसे ईनाम है।
बढिया जानकारी।
ReplyDeleteईद की मुबारक बाद।
अच्छी जानकारी है. "मांसाहार और शाकाहार दोनों में ही जीव हत्या होती है" सही है लेकिन "चाहे जानवर हो या पेड़-पौधे, दोनों को ही बराबर दुःख का अहसास होता है", ठीक नहीं है. दुःख के अहसास की मात्रा जीव के तत्व के अनुसार अलग अलग होती है. पौधों को एक तत्व का जीव माना गया है उनमे "मन" की मात्र न के बराबर होती है. पेड़ के काटने पर पेड़ का एहसास एक इन्सान के एह्सास से कम होगा अगर हम आदमी की हत्या करते हैं तो. इसीलिए धर्मग्रंथों में शाकाहार की इज़ाज़त है लेकिन मांसाहार की नहीं क्योंकि जानवर को मारने का पाप एक पौधे को मारने के पाप से अधिक है क्योंकि एक जानवर में मन का तत्व एक पौधे से अधिक होता है. उदाहरण के तौर पर अगर हम किसी के खेत से एक मूली उखाड़ते हैं, या किसी की मुर्गी मार देते हैं, या किसी की गाय मार देते हैं, या किसी व्यक्ति की हत्या करते हैं तो सरकार के क़ानून के अनुसार अलग अलग सजा दी जायेगी.. मूली उखाड़ने के लिए शायद केवल चेतावनी मिले और आदमी को मारने के लिए शायाद फांसी भी हो जाये. उसी तरह शाकाहार और मांसाहार से चढ़ने वाले पाप में भी अंतर है. बराबर नहीं है!
ReplyDeleteसामयिक जानकारी।
ReplyDeleteआभार।
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कितना अच्छा लगता है...
इतनी घृणा कहाँ से लाए पाण्डे जी?
@ राजीव भरौल जी ! किसने कह दिया है कि पेड़ पौधों में एक तत्व होता है ?
ReplyDeleteपेड़ पौधों में जल, वायु, मिट्टी, अग्नि और आकाश सभी तत्व पाए जाते हैं।
1. पेड़ पौधों में रस होता है तो जल की सिद्धि हो गई।
2. कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन का आदान भी पेड़ पौधे करते हैं, सो वायु भी इनमें होती है।
3. पेड़ पौधों में मिट्टी का अंश मैगनीज़ आदि के रूप में मिलता है।
4. पेड़ पौधों में ऊष्मा भी होती है। सो अग्नि तत्व भी विद्यमान है।
5. पेड़ पौधों की कोशिकाओं के बीच में अवकाश अर्थात स्पेस भी होता है। सो पेड़ पौधों में आकाश भी होता है।
पशु पक्षियों में भी इसी प्रकार पांचों तत्व मिलते हैं।
हिंदू दर्शन की आवागमन की मान्यता के अनुसार एक ही आत्मा इन सभी में कर्मानुसार चक्कर काटती रहती है तो फिर कैसे कहा जा सकता है कि दर्द का अहसास किसी को कम और किसी को ज़्यादा होता है ?
http://vedquran.blogspot.com/2011/11/qurbani.html
Rajeev Bharol जी,
ReplyDeleteजिस तरह आपने टिपण्णी करी, यही तरीका होता है अपनी बात कहने का. आपने कहा कि "दुःख के अहसास की मात्रा जीव के तत्व के अनुसार अलग अलग होती है. पौधों को एक तत्व का जीव माना गया है उनमे "मन" की मात्र न के बराबर होती है. पेड़ के काटने पर पेड़ का एहसास एक इन्सान के एह्सास से कम होगा" और मैंने कहा था कि पूरा अहसास होता है... किसकी बात सही है यह अलग बात है, इसमें एक बात तो यह कि आपने जो कहा वह आपका मत है और मैंने जो कहा वह मेरा, क्या आपको इसमें कहीं भी कोई लड़ाई वाली अथवा कटु बात नज़र आती है?
आप मेरी बात को पूरी तरह ठीक नहीं मानते और मैं आपकी... लेकिन दोनों ही कम से कम इतनी बात पर तो एक मत हैं ही कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है और थोडा ही सही, परन्तु अहसास होता है.
हमने ऐसी शिक्षा व्यवस्था बनाई है कि हिंदुओं को इस्लाम के संबंध में इल्म नहीं होता और मुसलमान हिन्दुओं के बारे में नहीं जान पाते, ऐसे प्रयास मुगलों ने किए थे, दुर्भाग्य से दारा शिकोह जैसे लोग बढ़ नहीं पाए, आपने अच्छी पहल की है इससे हम इस्लाम के बारे में जान पाएंगे और इसका दर्शन भी समझ पाएँगे। आभार
ReplyDeleteAp to kitti achhi jankari dete hain...!!
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