कैसे बनाएं अपना ब्लॉग? - भाग 3

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भाग - 1
भाग - 2


डिज़ाइन (Design): यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कॉलम है, जिसके अंतर्गत साज-सज्जा से सम्बंधित कार्य आते है। "पृष्ठ तत्व" (Page Elements) में ब्लॉग के लेआउट से सम्बंधित कार्य आते हैं, "हैडर" (header) को संपादित (Edit) करके ब्लॉग के मुख्य प्रष्ट के उपरी भाग को डिजाईन किया जाता है, यहाँ आप कोई फोटो अथवा डिजाईन भी लगा सकते हैं। "ब्लॉग सन्देश" (Blog Post) के संपादन के द्वारा अन्य विकल्पों के साथ-साथ यह भी तय किया जा सकता है कि कितनी पोस्ट पहले प्रष्ट पर दिखाई जाएं, इसमें दिए अन्य विकल्पों को स्वयं के संदेशों के साथ अपने पाठकों को दिखाया जा सकता है।

"गैजेट जोड़ें" (Add a Gadget) के द्वारा Follower जैसे अनेकों विकल्पों का चुनाव किया जा सकता है, इसके अंतर्गत आने वाले विकल्प "HTML/JavaScript" के विकल्प पर क्लिक करके खुलने वाली विंडो में बाहरी कोड डाले जाते हैं, जैसे कि ब्लॉग एग्रीगेटर्स, स्टेट काउंटर, किसी अन्य साईट/ब्लॉग का लोगो, विडियो अथवा फोटो इत्यादि के कोड्स।

HTML संपादित करें (Edit HTML) : इसमें अगर कोडिंग की जानकारी है तो ब्लॉग की साज-सज्जा (theme) को पसंद के अनुरूप बदला जा सकता है तथा बाज़ार में मौजूद Themes को ब्लॉग पर लगाया जा सकता है। 

टेम्‍पलेट डिज़ाइनर (Template Designer): इस विकल्प में जाकर blogger के द्वारा उपलब्ध कराई गई अनेकों Themes का प्रयोग किया जा सकता है। 

(Monetize): यह विकल्प गूगल एडसेंस के विज्ञापन के द्वारा आय के लिए होता है, अब हिंदी भाषा के ब्लॉग पर यह सुविधा उपलब्ध है।

आँकड़े (Stats): इस विकल्प से पता चलता है की किसी एक पोस्ट अथवा सम्पूर्ण ब्लॉग पर किस दिन/सप्ताह/माह में कितने पाठक आए और कहाँ से आए।



आइए वर्डप्रेस के बारे में जाने:

वर्डप्रेस ब्लॉगर के मुकाबले अधिक सुविधाएं उपलब्ध करता है, वर्डप्रेस ब्लॉग्स के लिए संकलक का कार्य भी करता है। अंग्रेजी के लिए wordpress.com तथा हिंदी के लिए hi.wordpress.com पर जा सकते हैं। वर्डप्रेस के मुख्य प्रष्ट पर पहुँच कर "Sign Up Now!" पर क्लिक करना है तथा खुलने वाले प्रष्ट में ब्लोगर की ही तरह सम्बंधित जानकारयाँ भर कर ब्लोगिंग का आनंद ले सकते हैं। इस प्रष्ट के द्वारा आप मुफ्त अकाउंट के साथ-साथ डोमेन नेम खरीदकर भी अपना ब्लॉग शुरू कर सकते हैं। 

फार्म भरने के बाद Sign-up पर क्लिक करना है, वर्डप्रेस एक ईमेल आपके ईमेल पते भर भेजता है जिसके द्वारा आप अपना अकाउंट सक्रीय कर सकते हैं। यहाँ यह याद रखना आवश्यक है कि वर्डप्रेस का अकाउंट मेल में भेजे लिंक पर क्लिक करके दो दिन के भीतर ही सक्रीय करना आवश्यक है, अन्यथा फिर से अकाउंट बनाना पड़ेगा। अकाउंट सक्रीय करने के बाद रजिस्ट्रेशन वाले प्रष्ट पर वापिस आकर अपने बारे में जानकारी भरकर "Save Profile" पर क्लिक करना है, जिसके बाद लोगिन करके ब्लोगिंग शुरू की जा सकती है।

लोगिन के बाद खुलने वाले प्रष्ट पर पहुँच कर एक और ब्लॉग बनाया जा सकता है अथवा ऊपर "My Account" पर क्लिक करके प्रोफाइल जैसे विकल्पों में बदलाव किए जा सकते हैं। "My Blog" पर क्लिक करके डेश बोर्ड पर पहुंचा जा सकता है या फिर नई पोस्ट के विकल्प पर सीधे पहुंचा जा सकता है।  डेश बोर्ड पर पहुँच कर पोस्ट टेब के अंतर्गत "Add  New" पर क्लिक करके नई पोस्ट लिखी जा सकती है। यहाँ पर पोस्ट लिखने का तरीका काफी कुछ ब्लोगर जैसा ही है, ऊपर बने बॉक्स में शीर्षक तथा नीचे पोस्ट का विषय लिखना है। दाई ओर बने बॉक्स में Tag के कॉलम में पोस्ट से सम्बंधित Tag लिखे जाते हैं तथा Category कॉलम में पोस्ट के विषय से सम्बंधित श्रेणी पर क्लिक किया जाता है।  "Posts" में ही "Add New"  के नीचे लिखे Category पर क्लिक करके पोस्ट के लिए विषय से सम्बंधित अलग-अलग श्रेणियां बनाई जा सकती हैं। 

Apprearance के अंतर्गत Themes के विकल्प में जाकर पसंद के अनुसार सज-सज्जा (Theme) बदली जा सकती है। Widgat में पहुँच कर एक ओर "Available Widgets" दिखाई देगा, जिसमें विजेट के विकल्प दिखाई देंगे तथा दूसरी ओर लिखे "Primary Widget Area" में अपनी पसंद के विजेट को उठा कर रखना है।

User में पहुंचकर दुसरे लेखकों को अपने ब्लॉग में लिखने के लिए निमंत्रित किया जा सकता है तथा अपनी प्रोफाइल इत्यादि में बदलाव किए जा सकते हैं। Tools में पहुँच कर Iimport / Export के विकल्पों के द्वारा ब्लॉग की XML फाइल को निर्यात अथवा किसी दुसरे ब्लॉग की XML फाइल को आयात किया जा सकता है।  तथा Setting में उपलब्ध अनेकों विकल्पों में आवश्यकता के अनुरूप बदलाव किए जा सकते हैं।






[नोट: नीचे टिप्पणियों का विकल्प पोस्ट के विषय (ब्लॉग बनाने) से सम्बंधित विचार-विमर्श के लिए ही खुला हुआ है, विषय से अलग टिप्पणियों को आप मेरे ईमेल-पते shnawaz(at)gmail.com पर भेज सकते हैं]

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कब तक लड़ेंगे अपनी-अपनी लड़ाई?

अक्सर गुजरात दंगों की बात गोधरा काण्ड पर आकर रुक जाती है और यह दलील दी जाती है कि गुजरात दंगे गोधरा काण्ड की क्रिया की प्रतिक्रिया थे। या फिर यह मालूम किया जाता है कि आप गुजरात पर तो बोल रहे हैं, पर गोधरा कांड पर आपके क्या विचार हैं? बात चाहे गोधरा काण्ड, गुजरात दंगे, या फिर भारत अथवा विश्व की किसी भी घटना की हो, किसी भी हत्या की वारदात का बदला हत्यारों से लेना ही इन्साफ है। बेगुनाहों का कत्लों-आम या आतंकित करने को किसी भी कारण से जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है।
किसी एक समुदाय से सम्बंधित गुनाहगारों का बदला पूरे समुदाय से लिए जाने की सोच समाज में आम है और लोग इसे जायज़ ठहराते हुए आसानी से नज़र आ जाएँगे। वहीँ अक्सर लोग आरोपी को खुद सजा देने के फ़िल्मी तरीके को भी सही ठहराते देखे जा सकते हैं और यही सोच आतंकवादी मानसिकता के फलने-फूलने में भी सहायक होती हैं। इसमें किसी की भी दो राय नहीं हो सकती है कि सज़ा देने का हक केवल नयायालय को होता है और वह भी पूरी तरह न्यायिक प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद।
अगर कोई भी मुसलमान इस बात का विरोध करता है तो उसे इस्लामिक उसूल पता ही नहीं है, वह खामखा ही अपने आप को मुसलमान समझने का गुमान रखे हुए है, यह जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि 'इंसाफ' इस्लाम की रूह है।

अगर न्यायिक प्रक्रिया में दोष है तो ख़ुद न्याय देने की कोशिश की जगह न्यायिक प्रक्रिया को बदलने की कवायद होनी चहिए, और लोग अगर जागरूक हो जाएँ तो लोकतंत्र में ऐसा करना बहुत मुश्किल भी नही है!

लेकिन इंसाफ का मतलब ऐसा इंसाफ नहीं जो कि मुझे या आपको पसंद हो! कुछ चाहते हैं कि जिन पर आरोप लगे हैं उनको सजा मिले, वहीँ कुछ चाहते हैं जिन पर आरोप लगे हैं वह बेक़सूर निकले। यह दोनों सिर्फ चाहत हैं और कुछ भी नहीं। जबकि इंसाफ का मतलब है जिसने गुनाह किया उन्हें सजा मिले, चाहे आपको बुरा लगे या मुझे बुरा लगे। हालाँकि अदालतों के काम करने का तरीका सबसे सही है, फिर भी यह ज़रूरी नहीं कि हर अदालत में इन्साफ ही हो! क्योंकि अदालते सत्य पर नहीं बल्कि सबूतों पर चलती हैं और यह ज़रूरी नहीं हुआ करता कि हर बात का सबूत मौजूद हो। इसलिए अगर किसी अदालात ने फैसला दिया है तो उसके ऊपर की अदालत में केस चलाया जाता है। अक्सर निचली अदालतों के गुनाहगार उपरी अदालतों से बरी हो जाते हैं। कई बार उन्हें साजिशन फंसाया जाता है और कई बार अलग-अलग कारणों से पूरा इन्साफ नहीं हो पाता है। इसके उल्टा भी होता है, जो बच गए थे, उन्हें उपर की अदालत सजा देती है।
जब भी गुजरात दंगो में इन्साफ की बात की जाती है तो सवाल होता है कि गोधरा दंगो में इन्साफ की बात क्यों नहीं की जाती। या फिर गोधरा कांड के आरोपियों को सज़ा मिलने पर सवाल उठता है कि गुजरात दंगों के आरोपियों को सज़ा कब मिलेगी? लोग अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक होने के नाते इंसाफ ना मिलने की बात करते हैं, हर इक अपने-अपने इंसाफ के लिए आवाज़ बुलंद करता दिखाई देता है।
हिन्दू समुदाय के लोग गोधरा के लिए लड़ते हैं और मुसलमान समुदाय गुजरात दंगो के लिए, इसके अलवा और भी कई अलग-अलग लड़ाईयाँ चल रही हैं। सवाल यह है कि आखिर यह लड़ाई इन्साफ के लिए कब लड़ी जाएगी? कब हम सब कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर एक भारत वासी के दुःख को अपना दुःख समझेंगे?




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खतरनाक आयटम!


मम्मी के हाथों कुछ ही देर पहले पिटा बच्चा पिता के आते ही उनसे बोला- 


"डैडी! क्या आप कभी अफ्रिका गए हो?"


 पिता ने फ़ौरन जवाब दिया - 


"नहीं बेटा! आज तक कभी नहीं गया।"

 


बच्चे ने बहुत ही मासूमियत से मालूम किया - 


"तो फिर इतनी खतरनाक आयटम आप कहां से लाए?"



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धोखा और विश्वास

किसी शहर में एक प्रेमी और उसकी प्रेयसी रहा करते थे, दोनों का एक-दुसरे पर परस्पर विश्वास और प्रेम दिन-प्रतिदिन परवान चढ़ रहा था। उसी शहर में एक बाबा भी रहते थे, सामाजिक और धार्मिक कार्यों में अपने दायित्वों के निर्वाहन के चलते अक्सर बाबा की उस युवक से मुलाकात होती थी।  सामाजिक कार्यों में युवक की भागदौड़ और उसकी सोच को देखते हुए एक दिन  बाबा ने सोचा कि उसको  उनके साथ उनके आश्रम में रह कर जीवन यापन करना चाहिए। बाबा का मानना था कि इस तरह मानवता की सेवा में पूर्णत: अपना जीवन लगा कर उसका उद्धार हो जाएगा।

उस युवक से मिलने पर बाबा ने अपने प्रवचनों के द्वारा युवक का मन बनाने की कोशिश की, परन्तु युवक अपना निर्धारित समय समाज सेवा में लगा कर सदैव अपने घर लौट जाया करता था। बाबा को महसूस हुआ कि उसका मन धर्म और समाज की सेवा में पूर्णत नहीं लगता है, उनके अनुभव ने उन्हें आभास कराया कि ज़रूर यह युवक सामाजिक बन्धनों में बंधा हुआ है। गहन छानबीन से बाबा को युवक और उसकी प्रेयसी की प्रेमकथा के बारे में पता चला। यह सुनकर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया, उन्हें लगा कि युवक की धर्म-कर्म से इस दूरी का कारण उसकी प्रेयसी ही है। इस पर उन्होंने उन दोनों के रिश्तों में दरार डालने की योजना बना ली। बाबा ने ऐसा जाल बुना जिससे युवती को लगे कि युवक उसको धोखा दे रहा है। बाबा ने युवक के जीवन के तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर युवती के पास पहुँचाया, जिससे युवती विचलित हो उठी। युवक यह जानकार बहुत दुखी हुआ, यहाँ तक कि उसका मन सामाजिक और धार्मिक कार्यों में भी नहीं लग रहा था। वह इस विचार में लीन था कि उसकी प्रेयसी उसके प्रेम और विश्वास का साथ देगी या झूठे बहकावे में आ जाएगी।

गहन विचार के बाद युवती ने युवक के साथ ही रहने का फैसला किया, क्योंकि उसके ह्रदय ने उत्तर दिया कि प्रेम का दूसरा नाम विश्वास है!

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तूफ़ान और बाड़!

आजादी की खबर सुनकर हर व्यक्ति खुश था, जगह-जगह दिवाली और ईद मनाई जाने लगी। देशभक्ति के नारे लगाए जा रहे थे। वहीँ इन सब से दूर एक फ़कीर गहरे चिंतन में डूबे हुए थे। उनके पास से एक युवक गुज़रा,  फ़कीर को गंभीर मुद्रा में चिंतन करते देख उसने मालूम किया - "बाबा! क्या आप आजादी से खुश नहीं हैं?" उस युवक के प्रश्न से वह फ़कीर बोले "आज़ादी! ख़ाक आजादी! पहले तूफ़ान खेत को लूटता था, परन्तु अब बाड़ ही खेत को लूटेगी।"

"मैं समझा नहीं!" - युवक ने प्रश्न किया।

फ़कीर ने कहा - "पहले अँगरेज़ हमें लूटते थे इसलिए हमें रक्षक और भक्षक का फर्क महसूस हो जाता था, मगर अब यह फर्क करना मुश्किल है, क्योंकि अब हमें लूटने वाले हमारे अपने ही होंगे और हममें से ही होंगे। मतलब अब खेत को तूफ़ान नहीं बल्कि तूफ़ान से हिफाज़त करने वाली बाड़ ही लुटेगी।"

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तीन बातें

तीन बातें चरित्र को गिरा देती हैं - चोरी, निंदा और झूठ। 


तीन चीज़ों को कभी छोटा मत समझो - कर्जा, दुश्मन और बीमारी। 


तीन चीज़ें हमेशा पर्दा चाहती हैं - दौलत, खाना और शरीर। 


तीन चीज़ें हमेशा दिल में रखनी चाहिए - नम्रता, दया और माफ़ी। 


तीन चीज़ें कोई चुरा नहीं सकता - अक्ल, हुनर और शिक्षा। 


तीन चीज़ों पर कब्ज़ा करो - ज़बान, आदत और गुस्सा। 


तीन चीज़ों से दूर भागो - आलस्य, खुशामद और बकवास। 


तीन चीज़ों के लिए मर मिटो - धेर्य, देश और मित्र। 


तीन बातें कभी मत भूलें - उपकार, उपदेश और उदारता। 


तीन चीज़ें इंसान की अपनी होती हैं - रूप, भाग्य और स्वभाव।


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कपिल सिब्बल है इस हंगामे के ज़िम्मेदार



वैसे इस प्रकरण में सबसे बड़ी गलती मैं कपिल सिब्बल की मानता हूँ... ना वोह बाबा का समझौते वाला ख़त मीडिया को दिखाते और ना बात इतनी बिगडती। बाबा ने वादा किया था, दोपहर तक अनशन समाप्त करने का, थोड़ी सी देर क्या हुई, कांग्रेस हांफने लगी??? अरे थोडा सा इंतज़ार तो किया होता, बाबा अपने वादे से पीछे हटने वाले थोड़े ही हैं!

उधर कपिल सिब्बल उनके साथ इतना बड़ा धौखा कर रहे थे और इधर बाबा इस सबसे अनजान, सरकार के द्वारा मांगे माने जाने की ख़ुशी का ऐलान कर रहे थे... वक़्त ने बहुत बड़ा सितम किया कांग्रेस के साथ! काश इतना उतावलापन नहीं दिखाती यह पार्टी तो आज सबकुछ सामान्य होता।

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क्या कांग्रेस ने बनाया बाबा को मोहरा?

मुझे पहले ही लग रहा था कि बाबा रामदेव और सरकार के बीच समझौता हो चुका है, लेकिन जनता नाराज़ ना हो जाए इसलिए, एक-दो दिन तक अनशन को चलाया जाएगा। मैंने ऐसी ही एक टिप्पणी परसों सुबह प्रवीण जी एक पोस्ट पर भी की थी, शाम होते-होते मेरा शक सही भी निकल गया। हालाँकि सरकार और बाबा के सूत्रों ने यही बताया था कि वार्ता अभी पूरी तरह सफल नहीं हुई है, बातचीत आगे भी की जाएगी। जबकि बाबा रामदेव एक दिन पहले ही सरकार को अगले दिन दोपहर तक अनशन समाप्त होने का आश्वासन दे चुके थे, लिखित में आश्वासन? क्या यह कुछ अजीब नहीं लगता? और अगर आश्वासन दिया था तो फिर अनशन समाप्त क्यों नहीं हुआ?

अचम्भे की पराकाष्टा तो रात को हुई, जब ब्रेकिंग न्यूज़ देखी कि ज़बरदस्ती अनशन समाप्त कर दिया गया। मैंने उसी समय सोचा था कि आखिर कांग्रेस सरकार बाबा रामदेव को ज़बरदस्ती हीरो क्यों बनाना चाहती है? जबकि उसके पास पूरा मौका था बाबा के लिखे ख़त को भुनाने का। वैसे भी चिट्ठी प्रकरण के बाद मीडिया ने इस अनशन के औचित्य पर जोर-शोर से सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। क्या आपको लगता है कि सरकार ऐसे में इतना बेवकूफी भरा और आत्मघाती कदम उठा सकती है? जबकि सरकार कांग्रेस की हो? उस कांग्रेस की जिसमें एक से बढ़कर एक कुटिल राजनेता  भरे पड़े हैं! कहीं ऐसा तो नहीं नहीं कि कांग्रेस राज ठाकरे की ही तरह बाबा को भी हीरो बना कर अपने हित साधने के ख्वाब देख रही है और इसलिए जानबूझकर ऐसा कदम उठाया गया है।

अगर पुरे प्रकरण पर नज़र डालें तो साफ़ पता चलता है कि सरकार ने अपने बचाव के सारे रास्ते शुरू से ही अपनाये हुए थे। कुछ दिनों के बाद वह यह बात जोर-शोर से उठाई जाएगी कि हमने तो पहले ही बाबा की सारी मांगे मान ली थी, सरकार स्वयं ही भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। सरकार ने इस कदम से अपने वोट बैंक को मज़बूत रखने और बाबा की राजनैतिक जड़ों को मज़बूत करने का काम किया है। ज़रा सोचिए कि अगर बाबा राजनीति में आते हैं तो इसका सबसे ज्यादा फायदा किस पार्टी को होगा? बाबा रामदेव के सबसे ज्यादा समर्थक भारतीय जनता पार्टी के वोटर हैं और कांग्रेस की नज़र भी इन्ही वोटों पर होगी। अगर कांग्रेस पार्टी की राजनीति पर नज़र डालें तो पता चलता है कि यह पहले भी इस तरह की कूटनीति को अंजाम देती रही है।

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