हिन्दू की बात हो, ना कोई मुसलमान की
अब तो हर इक बात हो बस ईमान की
हिन्दू-मुसलिम की जगह सत्य की तरफदारी होनी चाहिए। अक्सर लोग ऐसा करते भी हैं, मगर कुछ लोगो को छोड़कर। जिनके लिए सही-गलत को देखने का चश्मा धार्मिक अथवा जातीय भेदभाव से प्रभावित होकर गुज़रता है। कुछ अज्ञानतावश ऐसा करते हैं तो कुछ राजनैतिक दुष्प्रचार के कारण पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर।
इस हालात से तभी निजात पाई जा सकती है, जबकि देश को धर्मों-जातियों में बाटने की राजनीति का देश से खात्मा कर दिया जाए!
हम शौक़ से हिन्दू या मुसलमान बनें
कुछ भी बन जाएँ मगर पहले इक इंसान बनें।
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