आज कल चारो ओर नफ़रत की खेती हो रही है और लोग मुहब्बत के फूल खिलने के इंतज़ार में हैं... जब से होश संभाला है तब से मेरा पाला अक्सर इन दो सोच वालों से पड़ता है, आपका भी पड़ता होगा... एक यह कि भाजपा आएगी तो मुसलमान बर्बाद हो जाएँगे और दूसरी यह कि कांग्रेस हमारी छुपी दुश्मन है, इसने कभी हमारा भला नहीं किया। और मुझे शुरू से चिढ़ होती है इस तरह की सोच से। इस बात से डरना छोड़ दो कि कोई आएगा तो हम ख़त्म हो जाएँगे...
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन दौरें-जहाँ हमारा।।
हमें अपने दिल में यह गाँठ बांधनी होगी कि हम कोई स्पेशल नहीं हैं, कोई मोदी/राहुल/मुलायम/माया हमारी मदद करने नहीं आएगा, बल्कि अपनी मदद हमें खुद ही करनी होगी।
मुसल्मानों को सबसे ज़्यदा नुक्सान जिस सोच ने किया है, मानता हूँ कि उसे भाजपा की नीतियों ने बढने में मदद की और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने बढ़ने दिया है, लेकिन इसके लिए ज़िम्मेदार हम ही हैं। नफरत की शुरुआत तो एकतरफ़ा हो सकती है, लेकिन नफ़रत कभी भी एकतरफा नहीं फ़ैल सकती।
हम अपने दिल पर हाथ रख कर विचार करें कि इन नफरतों / अविश्वास को ख़त्म करने की कितनी ईमानदार कोशिश हमने की। दोस्तों मेरे नबी ने बुराई का विरोध करना सिखाया है, बुरों से नफ़रत करना हरगिज़-हरगिज़ नहीं सिखाया।
मक्का वालों ने आप (सल.), आपके घरवालों और साथियों को बेईज्ज़त करने और जान से मारने की हर संभव कोशिश की। जब आप नमाज़ के लिए खड़े होते थे तो ऊंट की आंतडियाँ आपके ऊपर डाल दी जाती थीं, रास्ते से गुज़रते थे तो कूड़ा डाला जाता था। यहाँ तक कि आपको खुद अपने ही शहर को छोड़कर मदीना जाना पड़ा। याद नहीं है कि आप (सल.) के चाचा हमज़ा (रज़ी) की हत्या करने के बाद उनका सीना चीर कर दिल और जिगर को निकाला गया था? मगर मक्का फतह पर जानते हो मुहम्मद (सल.) ने क्या किया? क्या उन्होंने उन ज़ालिमों से बदला लिया? नहीं... बल्कि हर एक ज़ुल्म की आम माफ़ी दे दी।
कसम से यह सारी नफ़रतें मठाधीशों ने फ़ैला रखी हैं, सिर्फ अपनी-अपनी दूकानदारियाँ चलाने के लिए। मज़हब तो नफ़रतें फैला ही नहीं सकते। इसलिए अगर जिंदगी से नफ़रतें ख़त्म करना चाहते हो तो इनकी ग़ुलामी से आज़ाद हो जाओ और जुट जाओ समाज से नफ़रत के खात्में में।