ग़ज़ल: जिनके लिए लड़ती है उनकी माँ की दुआएँ

उल्फत में इस तरह से निखर जाएंगे एक दिन
हम तेरी मौहब्बत में संवर जाएंगे एक दिन
एक तेरा सहारा ही बहुत है मेरे लिए
वर्ना तो मोतियों से बिखर जाएंगे एक दिन
हमने बना लिया है मुश्किलों को ही मंज़िल
यूँ ग़म की हर गली से गुज़र जाएंगे एक दिन
जिनके लिए लड़ती है उनकी माँ की दुआएँ
दुनिया भी डुबोये तो उभर जाएंगे एक दिन
यह दिल रहेगा आशना तब तक ही बसर है
वर्ना तेरे शहर से निकल जाएंगे एक दिन
- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी 'साहिल'

(बहर: हज़ज मुसम्मिन अख़रब मक़फूफ महज़ूफ)

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