दिल्ली और बाहर से आए हुए ब्लॉगर्स के मिलन से शुरू हुए दिल्ली ब्लॉगर्स सम्मेलन का अंत एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण मोड पर समाप्त हुआ। जहां सारे ब्लॉगर्स श्री अविनाश वाचस्पति और श्री जय कुमार झा की इस राय पर एक मत थे कि एक ऐसा संगठन बनना चाहिए जो ना केवल ब्लॉग लेखकों के लिए काम करे बल्कि साथ ही साथ सामाजिक ज़िम्मेदारियों को निभाने के लिए भी लेखकों की भूमिका तैयार करे। एक सदस्य की राय थी कि ब्लॉगस्पाट अथवा डोमेन पंजिकरण करा कर संगठन का अधिकृत वेब प्रष्ठ भी बनाया जाना चाहिए। वहीं कई दूसरें सदस्यों की राय थी कि पहले संगठन का उद्देश्य तय होना चाहिए। अर्जुन को मछली की आँख ही नज़र नहीं आएगी तो उसका तीर भी लक्ष्य रहित रहेगा। एक सदस्य ने सबके सामने संगठन के कुछ उद्देश्यों को भी लक्षित किया।
आज अधिकतर हिन्दी ब्लाक लेखकों के लेखन का उद्देश्य हिन्दी भाषा और समाज का विकास ही है। विश्व का कोई भी देश अपनी भाषा और संस्कृति के बिना विकास की राह में आगे नहीं बढ़ पाया है। लेकिन हमारे देश की यही विडंबना है कि हम अपनी भाषा को महत्त्व ना देकर अंग्रेज़ी जैसी भाषा के सहारे आगे बढ़ना चाहते हैं। हालांकि विश्व भाषा का दर्जा मिलने के कारणवश अंगेज़ी को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन अपनी सशक्त भाषा के उपर महत्त्व दिया जाना अफसोस जनक है। मेंरे विचार से संगठन का सबसे अहम मक़सद हिन्दी और सामाजिक विकास होना चाहिए। इस विषय पर ही मशहूर कार्टनिस्ट श्री इरफान ने बताया कि किस तरह उन्होने बिजली कम्पनी के तेज़ दौड़ते मीटरों के द्वारा अधिक बिल दिए जाने के मुद्दे पर अकेले ही संघर्ष किया। आज ऐसे सामाजिक संघर्षों के लिए एकजुटता की आवश्यकता है।
मनोवैज्ञानिक स्तर पर देखा जाए तो पता चलता है कि कोई भी मनुष्य जब किसी भी संगठन से जुड़ता है तो अपने आप उसके अंदर ज़िम्मेदारी आ जाती है। क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए हर एक को समाज के प्रति जवाबदेह होना आवश्यक है। हालांकि लेखक तो जल प्रवाह की तरह होता है जो आवेग के साथ और अविकल बहता है। उस पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है और ना ही लगना चाहिए। परंतु लेखन प्रतिबंधों के साथ ना सही ज़िम्मेदारी के साथ तो होना ही चाहिए। कलम की धार तलवार की धार से भी तेज़ होती है और इसका वार किसी बड़े से बड़े विस्फोट से भी तेज़ होता है, इसलिए इसका प्रयोग भी सही दशा और दिशा में होना आवश्यक है।
ना केवल सामाजिक स्तर बल्कि ब्लॉग जगत में भी अनेकों मुद्दे एकजुटता की आवश्यकता दर्शाते हैं। श्री खुशदीप सहगल का विचार था कि ब्लाग जगत से नापसंद के चटके जैसे विकल्पों को समाप्त किया जाना चाहिए। जिसको भी लेख पर कोई आपत्ति हो वह टिप्पणी के माध्यम से अपनी बात रख सकता है। आज नापसंद का चटका दुर्भावनापूर्वक अच्छे लेखों को भी पाठकगण तक ना पहुंचने देने का हथियार भर बन कर रह गया है। मेरे विचार से अन्य क्षेत्रों के तरह यहां भी उपभोक्ता अर्थात पाठकों को ही निर्धारित करना चाहिए कि कौन से लेख अच्छा है अथवा कौन सा नहीं। आज ब्लॉग ही तो वह मंच है जहां पाठकों को भी अपनी बात रखने का अधिकार है।
सम्मेलन में श्री पवन चंदन, श्री एम वर्मा, श्री राजीव रंजन, श्री ललित शर्मा तथा संगीता पुरी सहित सभी सदस्यों ने अपनी बाते रखीं और अंत में श्री अजय कुमार झा जी ने कई महत्त्पूर्ण सुझाव दिए।
वहीं व्यक्तिगत वार्तालाप के माध्यम से भी अनेकों लेखकों के संबंध प्रगाढ़ हुए। मैं स्वयं भी श्री जय कुमार झा, श्री विनाद कुमार पांडे, श्री सुलभ जायसवाल, श्री अंतर सोहिल जैसे कई ब्लागर्स से मिला, बल्कि मेरे लिए तो यह एक दम नया और विरला अनुभव था।
सम्मेलन में ब्लॉग लेखकों के खान-पान की भी उचित व्यवस्था की गई थी। यह सम्मेलन मेहमान नवाज़ी में कई कदम आगे था। जहां एक तरफ जय कुमार झा जी ने अपनी मुस्कान के साथ और राजीव तनेजा जी ने गर्मजोशी से नए-पुराने लेखकों का स्वागत किया, वहीं राजीव जी के सुपुत्र माणिक ने सेवा भाव और विनादी स्वाभाव से सब का मन मोह लिया। उचित व्यवस्था के लिए पूरी प्रबंधन टीम बधाई की पात्र है।
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(क्योंकि यह मेरा पहला ब्लॉगर्स सम्मेलन था इसलिए सभी ब्लॉग लेखकों के नाम याद नहीं रख पाने के लिए क्षमा का प्रार्थी हूँ। मेरी तथा अन्य लोगो की सुविधा के लिए नीचे दिए फोटो में जो भी जिस व्यक्ति को जानता हो तो उसका नाम अवश्य इंगित कर दे।)
जिनको मैं पहचान पाया वह इस प्रकार हैं:
सबसे नीचे, बाएँ से: (1) श्री इरफ़ान, (2) श्रीमती संगीता पूरी, (3) श्री अविनाश वाचस्पति (4) डॉ. वेद व्यथित (5) ज्ञात नहीं (6) बागी चाचा और अंत में (7) सुलभ जायसवाल.
नीचे से दूसरी लाइन में: (1) सुश्री प्रतिभा कुशवाहा, (2) श्रीमती संजू तनेजा, (3) आशुतोष मेहता (4) श्री खुशदीप सहगल (बीच में गाढ़ी नीले रंग की कमीज़ में) (5) श्री नीरज जाटजी, ब्लॉग: मुसाफिर हूं यारों (टोपी लगाये हुये) तथा अंत में मैं शाहनवाज़ सिद्दीकी.
नीचे से तीसरी लाइन में: (1) चंडीदत्त शुक्ल (2) श्री ललित शर्मा, उनके बराबर में (3) श्री अजय कुमार झा, (4) श्री मयंक सक्सेना और अंत में (5) श्री नवाब मियां.
नीचे से चौथी लाइन में: (1) श्री योगेश गुलाटी, (2) डॉ. प्रवीण चोपड़ा, (3) श्री उमाशंकर मिश्र (लाल टी शर्ट में), (4) श्री राजीव रंजन, (5) श्री रतनसिंह शेखावत (ब्लॉग: ज्ञान दर्पण), (6) श्री मयंक, ब्लॉग: ताजा हवा (गले में गमछा डाले हुये) अंत में (7) श्री जय कुमार झा.
सबसे ऊपर आखिरी लाइन में: (1) श्री राजीव तनेजा, (2) श्री अंतर सोहिल, (3) ज्ञात नहीं, (4) श्री पवन चंदन, (5) श्री अजय यादव, इनके थोडा पीछे और श्री पवन चंदन के साथ (6) ज्ञात नहीं.
जिस नंबर के आगे "ज्ञात नहीं" लिखा है, उन्हें मैं पहचान नहीं पाया हूँ, आप पहचानते हैं तो अवश्य बताइए। अगर त्रुटीवश किसी को पहचानने में गलती हो गयी हो तो कृपया उसे भी इंगित कर दें। धन्यवाद!