हालाँकि प्रशासक के तौर पर प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह मेरी पसंद नहीं हैं, लेकिन प्रधानमंत्री होने के नाते और देश के तरक्की की राह पर अग्रसर होने में उनकी महत्तवपूर्ण भूमिका के कारण में उनकी इज्ज़त करता हूँ। हालांकि इस इज्ज़त का मतलब नाकामयाबियों पर चुप रहना भी नहीं हो सकता है।
उनके कार्यकाल के पहले आठ वर्ष बेहतरीन रहे हैं, जिसमें देश ने आर्थिक तौर पर तरक्की की नयी उचाईयों को छुआ है... और इसका क्रेडिट उनको मिलना चाहिए। चाहे जो भी कारण रहे हों, लेकिन उनके कार्यकाल में ना सिर्फ कश्मीर जैसे अशांत क्षेत्रों में हिंसा में कमी आई, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी आतंकवादी वारदातों में काफी कमी आई। उनके ही कार्यकाल में आरटीआई, नरेगा, शिक्षा का अधिकार और डायरेक्ट कैश ट्रान्सफर जैसे अनेकों महत्त्वपूर्ण निर्णय हुए हैं। हालाँकि बाद के दिनों में अर्थव्यवस्था की हालत नाज़ुक हुई, मगर इसके लिए सरकारी निर्णयों के साथ-साथ वैश्विक आर्थिक परिस्थितियां भी ज़िम्मेदार कही जा सकती हैं।
लेकिन इसके बावजूद प्रशासक के तौर पर उन्हें अक्षम ही कहा जाएगा। और इसी कमी के कारण वह भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहे हैं। सरकारी तंत्र की क्या बात की जाए, जबकि स्वयं उनके मंत्रियों पर ही भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगे हों। हालाँकि जिन मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, उनको पद मुक्त किया गया और उन पर पुलिस कार्यवाही भी हुई। लेकिन सरकारी तौर पर उनको बचाने के भी भरपूर प्रयास हुए।
देश का प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की तरह ज़मीन से जुड़ा हुआ और इंदिरा गाँधी जैसा अच्छा प्रशसक होना चाहिए। ऐसा व्यक्ति जो देश की अखंडता, आंतरिक सुरक्षा और देश के सामाजिक ताने-बाने को और मज़बूत करने एवं रखने में आगे बढ़कर नेतृत्व कर सके। केवल देश को तरक्की की राह पर अग्रसर रखने वाला ही नहीं बल्कि उस तरक्की को आम आदमी तक पहुचाने वाला भी होना चाहिए। अच्छे अर्थशास्त्री को तो देश का वित्त मंत्री बना कर भी काम चलाया जा सकता है।
लोग अक्सर डॉ मनमोहन सिंह के कम बोलने का मज़ाक उड़ाते हैं, मगर मेरा मानना है कि देश को ज्यादा बोलने वाले और तेज़-तर्रार नेताओं ने ही डुबोया है, ज़रूरत बोलने वालो की नहीं बल्कि कम बोलने और ज्यादा काम करने वालो की है… फर्क बोलने ना-बोलने से नहीं बल्कि काम करने ना-करने से पड़ना चाहिए!
Keywords: leader, prime minister, dr manmohan singh, india, politics, corruption, patriotism, administrative