हमारे देश के मुस्लिम समुदाय में विशेषकर उत्तर भारत में लड़कों और खासकर लड़कियों से शादी से पहले अकसर उनकी मर्ज़ी तक मालूम नही की जाती है, एक-दुसरे से मिलना या बात करना तो बहुत दूर् की बात है... रिश्ते लड़के-लड़की की पसंद की जगह माँ-बाप या रिश्तेदारों की पसंद से होते हैं. ऐसी स्थिति में निकाह के समय काज़ी के द्वारा 'हाँ' या 'ना' मालूम करने का क्या औचित्य रह जाता है???
निकाह की 'हाँ'
केजरीवाल जी, यह वक़्त ज़िम्मेदारी निभाने का है
यह वक़्त ज़िम्मेदारी से भागने का नही बल्कि ज़िम्मेदारी निभाने का है. लोकसभा चुनाव नजदीक हैं और अगले 6 महीने में जनता से जो वादे किए हैं उनकी झलक दिखाई जा सकती है. लोकपाल लागू किया जा सकता है, बिजली के दाम कम किए जा सकते हैं, पानी मुफ्त किया जा सकता है, भ्रष्टाचारियों / काला बाज़ारियो पर लगाम लगाई जा सकती है, और सबसे बढ़कर तो यह कि सामाजिक स्तर पर जागरूकता फैलाई जा सकती है. तो फिर आगे बढ़ते क्यों नही?
क्या टीम अरविन्द को मौका मिलना चाहिए?
इसी आधार पर मैं यह मानता हूँ कि मुद्दों पर दोनों के बीच मतभेद हो सकते हैं और मतभेदों का होना गलत भी नहीं हैं। दोनों की राहें जुदा भी हो जाएं मगर फिलहाल तक मंज़िल एक ही नज़र आती है।
घटिया राजनीती - ऊबते लोग
दिल्ली में RaGa और मध्य प्रदेश में NaMo की रैलियों में भीड़ नदारद होने लगी है, लाखों की भीड़ का दावा करने वाले दस-बीस हज़ार लोगो को भी नहीं जुटा पा रहे हैं... यह बताता है कि जनता नेताओं से ऊब रही है... जिस तरह की राजनीती और बयानबाज़ी चल रही है, उससे देख कर यह ऊब जायज़ भी लगती है...
शहादत-ए-हुसैन का पैग़ाम
इंसानी ग़ैर-बराबरी के खिलाफ आवाज़ बुलंद करें
सृजन एवं सर्जक
सत्य में पक्षपात कैसा?
रावण-दहन ना देख पाने की मायूसी
नेताओं की नकली धर्मनिरपेक्षता
हुक़्म नहीं है 'फतवा'
keywords: islamic fatwa is not order
क्योंकि मानसिक विक्षिप्त वोटर नहीं हैं
'बेहया' औरतों का रेप करना मर्दों का हक़ है?
वोटों के लालची इंसानियत की लाश के चीथड़े उड़ा रहे हैं
कहानी हर घर की...
आखिर दूसरों पर अपनी सोच थोपने की जगह सब अपने-अपने 'हिसाब' से क्यों नहीं चलते?
Juvenile Act बदलने के लिए आन्दोलन की आवश्यकता
दामिनी कांड के तथाकथित नाबालिग अभियुक्त को जो सज़ा हुई है, वोह कानून के मुताबिक तो एकदम ठीक हई है, मगर न्याय के एतबार से इस सज़ा को नहीं के बराबर ही कहा जाएगा। मुझे लगता है ध्यान और कोशिश इस सज़ा से भी अधिक ऐसे कानून को बदलने पर होनी चाहिए जिसके तहत रेप विक्टिम को पूर्ण न्याय नहीं मिल पाया। Juvenile Act को बदलने के लिए एक बड़े सामाजिक आन्दोलन की आवश्यकता है।
पश्चिम जगत अब उन्ही आतंकवादियो का समर्थक क्यों है?
प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह
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सभी खास-ओ-आम को यौम-ए-आजादी मुबारक!
बयान और बस बयान
देशभक्ति की नई परिभाषा
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कब बनेंगे इंसान?
कब हर मामले को सभी चश्मे हटाकर इंसानियत की निगाह से देखा जाएगा? धर्मनिरपेक्षता पर लफ्फाजी और राजनीति की जगह इसकी रूह को समझने और अपनाने की ज़रुरत है... यक़ीन मानिये जब तक हम सब इसपर नही चलेंगे, देश में शांति, खुशहाली और तरक्की आ ही नहीं सकती है..
मुसलमान और आज की ज़रूरत
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बेहतरीन इबादत
आस्था या अंध-भक्ति
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हिंसा के कुतर्क
नक्सलवाद या आतंकवाद
बेगुनाहों को क़त्ल करने का किसी को भी कोई हक़ नहीं है बल्कि गुनाहगारों को भी क़त्ल करने का हक़ किसी इंसान को नहीं होना चाहिए। गुनाहगारों को सज़ा हर हाल में कानून के दायरे में ही होनी चाहिए। और अगर किसी गुनाहगार को उसका गुनाह साबित किये बिना ही सज़ा होती है तो मेरी नज़र में वह बेगुनाह ही है।
आखिर इतनी विभत्स तरीके से आतंक फ़ैलाने वाले नक्सलियों को क्यों आतंकवादी नहीं कहा जाता? आखिर क्यों नहीं यहाँ भी कश्मीरी आतंकवादियों को खत्म करने के तरीके की तरह लाखों की तादाद में फौजी भेजे जाते?
और सबसे अजीब बात यह है की अन्य आतंकवादी घटनाओं पर खौलने वाला खून आज ठंडा क्यों पड़ा है???
इश्क-ए-हक़ीकी और उसकी नाराजगी
पति-पत्नी: आज की ज़रूरत
हालाँकि सच यही है कि वैवाहिक रिश्ता एक-दूसरे से मुहब्बत और अपने 'हक़' की कुर्बानी पर ही टिका होता है। मगर कडुवी सच्चाई यह है कि अक्सर यह कुर्बानी लड़कियाँ ही ज्यादा देती हैं।
सख्त कानून और पुलिस की मुस्तैदी भर से रुक जाएगी महिलाओं के प्रति दरिंदगी?
दिल्ली में घूमती हैवानो की भीड़
दिल्ली के बाशिंदे हैवानियत की सारी सीमाएँ रोंदते जा रहे हैं, आखिर इसका ज़िम्मेदार कौन है? हर बलात्कारी को पता है कि वह एक ना एक दिन पकड़ा ही जाएगा, उसके बावजूद बलात्कार की घटनाएं इस कदर तेज़ी से बढ़ रही हैं।
जागते रहो
'जागते रहो' कि सदा लगाने वाले का मकसद कम-अज़-कम खुद को जगाने का तो होता ही है...
तो क्या डंडों से सफाया होगा आतंकवाद का?
हद है... सीआरपीएफ के जवानों को कश्मीर पुलिस द्वारा घाटी में बिना हथियारों के लड़ने पर मजबूर किया जा रहा है। मतलब आधुनिक हथियारों से लैस आतंकवादियों से लड़ने के लिए लकड़ी का डंडा??? इससे वह खुद की सुरक्षा करेंगे या आम जनता की?
ईनाम की इच्छा
स्वर्ग तो अच्छे कर्म करने वालों के लिए रब की तरफ से ईनाम है और ईनाम की लालसा में अच्छे कर्म करने वाला श्रेष्ठ कैसे हुआ भला? हालाँकि फायदे या नुक्सान की सम्भावना आमतौर पर मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रोत्साहित अथवा हतोत्साहित करती ही हैं।
लेकिन मेरी नज़र में तो बुरे कर्म से अपने रब की नाराजगी का डर और अच्छे कर्म से अपने रब के प्यार की ख़ुशी ही सब कुछ है।
मैं अपने पैदा करने वाले और मेरे लिए यह दुनिया-जहान की अरबों-खरबों चीज़ें बनाने वाले का शुक्रगुज़ार ही नहीं बल्कि आशिक़ हूँ, फिर जिससे इश्क होता है उसकी रज़ा में लुत्फ़ और नाराज़गी ही से दुःख होना स्वाभाविक ही है।
और मेरे नज़दीक आशिक के लिए माशूक़ से मिलने से बड़ा कोई और ईनाम क्या हो सकता है?
ज़ालिम का विरोध और मजलूम का समर्थन
यह तेरा घर, यह मेरा घर?
नफरत की सौदागरी
आतकवाद क्यों और कब तक?
जिस तरह से जल्दबाजी में जाँच और मिडिया ट्रायल का सिलसिला चलता है, यह बेहद खतरनाक है। कभी इस समुदाय को कभी उस समुदाय को निशाना बनाया जाता है। अगर किसी समुदाय में से कोई गुनाहगार निकलता है तो पुरे समुदाय को ही ज़िम्मेदार ठहराया जाने लगता है। आज यह विचार करना पड़ेगा आखिर क्या वजह है कि जिस संदिग्ध को पकड़ा गया है, उससे सम्बंधित समुदाय के 90-95 प्रतिशत लोग उसे बेक़सूर समझते हैं? मेरी नज़र में इसके पीछे एक बड़ी वजह आतंकवाद जैसे संगीन अपराध में पकडे गए मुलजिमों का लम्बी अदालती कार्यवाहियों से गुज़रना और अक्सर का बाद में बेक़सूर निकलना हैं।
सरकारे अपनी लाज बचाने के लिए असंवेदनशीलता बरतती है। आखिर क्यों हमारी जाँच एजेंसियां ऐसे मामलों में शुरुआत से ही लीपापोती की जगह ठोस जाँच नहीं करती? क्यों सारा ठीकरा केवल दूसरे देश में बैठे आकाओं पर फोड़ कर इतिश्री पा ली जाती है? सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर जाँच के नाम पर ऐसा कब तक चलता रहेगा? क्या सरकार इस कारण नौजवानों में बढ़ते हुए आक्रोश को नहीं पहचान पा रही है? या फिर जान बूझ कर ऑंखें बंद किये बैठी है?
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धार्मिकता और धर्मनिरपेक्षता
उनका अहसान फ़र्ज़, हमारा फ़र्ज़ अहसान
अगर समाज में सभी रिश्ते एक-दूसरे के हक को समझे, दूसरों के अहसान को अहमियत दें रिश्तों में कडवाहट नहीं बल्कि मिठास जागेगी। बहु को अहसास होना चाहिए की उसके सास-ससुर के उस पर कितने अहसान हैं, वहीँ सास-ससुर को अपनी बहु के एहसानों पर मुहब्बत की नज़र रखनी चहिये। जैसे पत्नी पति के रिश्तों को अहमियत देती है, ठीक उसी तरह पति को भी अपनी पत्नी के रिश्तों को उतनी ही अहमियत देनी चहिये।
एक दूसरे पर अहसान दर-असल एक दूसरे से मुहब्बत की अलामत है।