बटला हाउस इनकाउंटर हो या मालेगाँव ब्लास्ट, मामला चाहे इशरत जहाँ का हो या फिर साध्वी प्रज्ञा का, सबको अपने-अपने धर्म के चश्मे से देखा जाता है। मीडिया जिसके सपोर्ट में रिपोर्ट दिखाए वोह खुश दूसरों के लिए बिकाऊ मिडिया बन जाता है... कितने ही इन्सान मर गए या मार दिए गए, मगर किसी को गोधरा का ग़म है तो किसी को गुजरात दंगो का...
कब हर मामले को सभी चश्मे हटाकर इंसानियत की निगाह से देखा जाएगा? धर्मनिरपेक्षता पर लफ्फाजी और राजनीति की जगह इसकी रूह को समझने और अपनाने की ज़रुरत है... यक़ीन मानिये जब तक हम सब इसपर नही चलेंगे, देश में शांति, खुशहाली और तरक्की आ ही नहीं सकती है..
कब हर मामले को सभी चश्मे हटाकर इंसानियत की निगाह से देखा जाएगा? धर्मनिरपेक्षता पर लफ्फाजी और राजनीति की जगह इसकी रूह को समझने और अपनाने की ज़रुरत है... यक़ीन मानिये जब तक हम सब इसपर नही चलेंगे, देश में शांति, खुशहाली और तरक्की आ ही नहीं सकती है..